भविष्य के लिए बड़ा खतरा; भारत में भूगर्भ जल का सर्वाधिक इस्तेमाल
18 नवंबर, 2024 – नई दिल्ली : भारत, चीन और अमेरिका पानी के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। भारत में भूगर्भ जल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। निकाले जाने वाले कुल भूगर्भ जल में से 89 फीसदी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता है। चीन दूसरा सबसे अधिक पानी का उपयोग करने वाला देश है।
निया भर में फसल उगाने के लिए 72 फीसदी मीठा पानी इस्तेमाल किया जाता है। 1990 के बाद मुख्य फसलों को उगाने के लिए पानी की खपत में करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और इसमें लगातार वृद्धि जारी है। इस वजह से दुनिया भर में पहले से मौजूद पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में बढ़ोतरी और गंभीर रूप ले रही है।
यह जानकारी ट्वेन्टे विश्वविद्यालय (यूटी) नीदरलैंड के शोधकर्ताओं की ओर से किए गए एक नए अध्ययन में सामने आई है। एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में इसका प्रकाशन हुआ है। अध्ययन में 1990 से 2019 के दौरान 175 फसलों को उनके हरे और नीले जल पदचिह्नों के आधार पर इसकी पड़ताल की गई है। हरा पानी यानी बारिश से आने वाला पानी और नीला पानी सिंचाई और उथले भूजल से आता है। इन दो तरह के पानी के प्रकारों के बीच अंतर इसलिए जरूरी समझा गया, क्योंकि वे पारिस्थितिकी तंत्र और समाज में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं।
भारत में भूगर्भ जल का सर्वाधिक इस्तेमाल सिंचाई में
भारत, चीन और अमेरिका पानी के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। भारत में भूगर्भ जल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। निकाले जाने वाले कुल भूगर्भ जल में से 89 फीसदी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता है। चीन दूसरा सबसे अधिक पानी का उपयोग करने वाला देश है। चीन में नदियाँ, झीलें और समुद्री जल का व्यापक उपयोग होता है। चीन में हाइड्रोपावर ऊर्जा उत्पादन, कृषि, औद्योगिक उपयोग और जलयानों के लिए भी भूगर्भीय जल का उपयोग होता है।
दुनिया के सामने खड़ा हो सकता है भयावह संकट
शोधकर्ता अपने निष्कर्ष में कहते हैं कि आने वाले दशकों में लोग फसल उत्पादन के लिए पानी की खपत को लगातार बढ़ाते जाएंगे। इस वजह से दुनिया भर में सीमित हरे और नीले जल संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ेगा और दुनिया के सामने पानी का भयावह संकट खड़ा हो सकता है।
इन कारणों से हो रही पानी के इस्तेमाल में ज्यादा खपत
शोधकर्ताओं के अनुसार 2000 से 2019 के बीच फसलों के उत्पादन के लिए पानी के इस्तेमाल में लगभग 90 फीसदी की वृद्धि हुई। ऐसा तीन मुख्य सामाजिक-आर्थिक कारकों की वजह से हुआ। पहला, तेजी हो रह वैश्वीकरण और आर्थिक विकास है। इस वजह से विभिन्न आयातित फसलों और फसल उत्पादों की खपत में भारी वृद्धि हुई। दूसरा वैश्विक आहार जैसे पशु उत्पाद, मीठे पेय, शर्करा और वसायुक्त खाद्य पदार्थों की ओर स्थानांतरित हो गए।
- इन सब उत्पादों के लिए पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है। तीसरा, कई सरकारों के ऊर्जा सुरक्षा और ग्रीन एजेंडे ने फसल आधारित जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा दिया। दुनिया के ऊर्जा उत्पादन में हर साल लगभग 52 बिलियन क्यूबिक मीटर ताजे पानी की खपत होती है।
सौजन्य : अमर उजाला
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