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इमरजेंसी का वो पौधा जो भारतीय राजनीति में मिसाल बना…

June 25, 2025 By News Bureau

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फिर अपनी ही गलती से कैसे सूख गया

1975 में लगी इमरजेंसी के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया, जिसने कांग्रेस को झटका दिया। विभिन्न विचारधाराओं वाले दल एकजुट होकर जनता मोर्चा बनाए और 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। हालांकि, आंतरिक कलह के कारण यह प्रयोग विफल रहा और बाद में बीजेपी सहित कई दलों का उदय हुआ।

नई दिल्ली : आज ही के दिन 1975 की आधी रात को इमरजेंसी लगाई गई थी। इसके बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व सभा करने के संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई, कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करने की न्यायपालिका की शक्ति को सीमित कर दिया गया। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया। इंदिरा गांधी ने 26 जून को आकाशवाणी पर राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ ‘गहरी और व्यापक साजिश’ का हवाला देते हुए इमरजेंसी को उचित ठहराया। हालांकि जिस तरह से आपाताकाल अचानक से लगाया गया था वैसे ही इसके हटाने की घोषणा भी हुई। गांधी ने 18 जनवरी 1977 को चुनाव कराने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने की घोषणा की।
इमरजेंसी के बाद बदल गई राजनीति

इमरजेंसी के बाद देश की राजनीति पूरी तरह से बदल गई। यह बदलाव कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। दरअसल, इमरजेंसी के दौरान अलग-अलग विचारधारा और लक्ष्यों वाले दल एक साथ आए। इन लोगों ने इंदिरा गांधी का विरोध करने के लिए हाथ मिलाया। इससे पहले 1974 में यूपी विधानसभा चुनाव में विपक्ष ने एकजुट होने की कोशिश की लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं हुआ। जबकि 1975 में अलग-अलग दलों ने जनता मोर्चा के रूप में चुनाव लड़ा और कांग्रेस को हराया। इमरजेंसी के बाद जनता मोर्चा विपक्षी एकता का मॉडल बन चुका था।

जनता पार्टी को मिली बड़ी जीत

इस प्रयास ने ही देश की राजनीति में जनता पार्टी को जन्म दिया। जनता पार्टी में चार बड़ी और कई छोटी पार्टियां एक साथ आईं। 31 मार्च, 1976 को चरण सिंह ने लखनऊ में लोक पक्ष नामक एक पार्टी बनाने की घोषणा की। इसमें भारतीय लोकदल, बीजेएस, कांग्रेस (ओ) और सोशलिस्ट पार्टी शामिल थीं। ये पार्टियां जनता पार्टी का मुख्य हिस्सा थीं। 1977 में आपातकाल हटने के बाद हुए चुनावों में जनता पार्टी को बड़ी जीत मिली। जनता पार्टी से जुड़े उम्मीदवारों ने 542 लोकसभा सीटों में से 298 पर जीत हासिल की। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन यह सरकार अधिक दिन नहीं चली। 28 जुलाई, 1979 को, जनता पार्टी के प्रयोग के अंत को चिह्नित करते हुए, चरण सिंह ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली।

जनता पार्टी में पनपने लगा असंतोष

जनता पार्टी के गठन के एक साल के भीतर, समाजवादी दिग्गज मधु लिमये ने सवाल उठाया कि मोर्चे के सदस्य RSS की गतिविधियों में कैसे भाग ले सकते हैं। यह लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे बीजेएस के नेताओं पर सीधा हमला था। जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने RSS नेताओं से मुलाकात की और सुझाव दिया कि निर्वाचित बीजेएस प्रतिनिधियों, जैसे सांसदों और विधायकों को RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई जानी चाहिए। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड ने फैसला किया कि इसके कोई भी पदाधिकारी RSS की दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते हैं।

इस तरह से हुई बीजेपी की शुरुआत

लगभग दो सप्ताह बाद, 6 अप्रैल को, भारतीय जनसंघ ने दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में वाजपेयी को अपना अध्यक्ष चुना और ‘वास्तविक जनता पार्टी’ का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया। बीजेएस और जनता पार्टी दोनों के दावों पर विचार करने के बाद, चुनाव आयोग ने 24 अप्रैल, 1980 को वाजपेयी समूह को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अंतरिम मान्यता दी। इस गुट के आगे ‘भारतीय’ शब्द जोड़ा गया। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का जन्म हुआ।

1980 में ही जनता पार्टी में मतभेद बढ़ गए। बाद में चंद्रशेखर धड़े को चुनाव आयोग ने जनता पार्टी के रूप में मान्यता दी। इसका एक धड़ा जनता दल बना। जनता दल 1989 में सत्ता में आया। चंद्रशेखर ने जनता दल तोड़कर जनता दल सेक्यूलर का गठन किया। उन्होंने 64 सांसदों और कांग्रेस के बाहरी समर्थन से वी पी सिंह सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाई। चंद्रशेखर ने कुछ महीनों के भीतर, 15 मार्च, 1991 को इस्तीफा दे दिया। बाद में जनता दल के विभाजन से कई दल बने। इसमें जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेक्युलर), समता पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और बीजू जनता दल शामिल हैं। इस तरह जनता पार्टी एक तरह से खत्म हो गई।

जनता पार्टी से राजनीति का सबक

जनता पार्टी के प्रयोग से देश को यह भी पता चला कि राजनीतिक दलों को अपने सिद्धांतों पर कायम रहना चाहिए। जनता पार्टी में कई ऐसे नेता थे, जिनके विचार अलग-अलग थे। इन नेताओं ने अपने विचारों को त्यागकर एकजुट होने का फैसला किया। यह एकता ज्यादा समय तक नहीं चल पाई, क्योंकि नेताओं के बीच मतभेद बने रहे। जनता पार्टी के प्रयोग से यह भी पता चलता है कि राजनीति में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं। चरण सिंह प्रधान मंत्री बनना चाहते थे, लेकिन वे कभी भी इस पद तक नहीं पहुंच पाए। उनकी महत्वाकांक्षाओं ने जनता पार्टी को कमजोर कर दिया।

आज, देश में कई राजनीतिक दल हैं जो जनता पार्टी के सिद्धांतों का पालन करने का दावा करते हैं। हालांकि, इन दलों में से कई अपने सिद्धांतों से भटक गए हैं। जनता पार्टी के प्रयोग से देश को कई सबक मिले। इन सबकों को याद रखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी गलतियां न हों।

सौजन्य : नवभारत टाइम्स


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