अश्विनी उपाध्याय : धर्म पालन एवं धार्मिक प्रचार की स्वतंत्रता को लेकर संवैधानिक प्रविधानों की आड़ में ही मतांतरण के अभियान भी चलते हैं। स्थिति यह हो गई है कि कहीं काला जादू दिखाकर, तो कहीं किसी लाभ का लालच देकर और कहीं डरा- धमकाकर जबरन मतांतरण का अभियान चल रहा है। संविधान प्रलोभन देकर मतांतरण की अनुमति नहीं देता है। इसके बावजूद मतांतरण को गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। कुछ राज्यों ने मतांतरण के विरुद्ध कानून बनाए हैं और वहां इस पर कुछ रोक भी लगी है, लेकिन केंद्रीय स्तर पर कानून नहीं होने से ठोस समाधान नहीं निकल सका है।
संविधान रीतियों का अधिकार देता है, कुरीतियों का नहीं। संविधान में प्रथा के पालन का अधिकार है, कुप्रथा का नहीं। मतांतरण को लेकर भी देश के स्तर पर स्पष्ट रूप से कानून होना चाहिए। जब संविधान ने कानून के समक्ष सबको समान मानने का सिद्धांत दिया है, तो फिर इस संबंध में राज्यवार कानूनों का क्या औचित्य रह जाता है। राज्यवार कानूनों का दुष्प्रभाव यह है कि उत्तर प्रदेश में मतांतरण रोधी कानून है, इसलिए गाजियाबाद और नोएडा में जबरन मतांतरण अपराध है, लेकिन दिल्ली में यह अपराध नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि यदि उत्तर प्रदेश में कोई किसी के जबरन मतांतरण के प्रयास में लिप्त पाया जाए, तो वह अपराधी होगा और उसे सजा मिलेगी, लेकिन कोई व्यक्ति यदि दिल्ली में यही करे, तो वह अपराधी नहीं होगा। यह किस तरह की न्याय की समानता है? यह कैसे हो सकता है कि एक राज्य में अपराधी को सजा हो, दूसरे में उसे निर्दोष माना जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि मतांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। यह समझना होगा कि जबरन मतांतरण किसी राज्य या जिले की समस्या नहीं है, यह राष्ट्रीय समस्या है। जबरन मतांतरण कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो रहा है। यह पंजाब की भी समस्या है और बंगाल, बिहार एवं झारखंड की भी। इसके शिकार केरल में भी हैं और मध्य प्रदेश में भी। देशव्यापी कानून इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि राज्यों में बने कानूनों में अंतर भी है। इनमें मतांतरण की परिभाषा अलग है और अपराध पर सजा भी अलग-अलग हैं। यह कानून के समक्ष सभी को समान मानने की संविधान की व्यवस्था का उल्लंघन है। जबरन मतांतरण के विरुद्ध कठोर कानून जरूरी है और वह कानून केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर बनाए।
एक और बात, कानून इस समस्या के समाधान का एक भाग है। इसके अलावा भी कई स्तर पर नकेल कसनी होगी। विदेशी चंदे पर नियंत्रण के लिए भी सख्ती आवश्यक है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि किस तरह मतांतरण में लिप्त मिशनरियों को फंडिंग होती है। अंधविश्वास के माध्यम से लोगों को बहकाकर मतांतरण करने वालों पर भी नकेल कसनी होगी। ऐसे कई वीडियो सामने आते हैं, जिनमें किसी धर्म विशेष की प्रार्थना सभा में नपुंसकता, बांझपन और कैंसर जैसी बीमारियां दूर करने के बहाने गरीब तबके को धार्मिक पहचान बदलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई का प्रविधान होना चाहिए। छल, प्रपंच और भय के इस जाल को तोड़ने के लिए केंद्र सरकार को सख्त कानून बनाना होगा।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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