जगदीश वासुदेव
आओ करे श्री गणेश! नव राष्ट्र का!! हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। मान्यता है कि जो भी गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करता है या उनके पूजन के लिए 11 दिनों तक उनको अपने घर या मोहल्ले में विराजमान करता है, वह व्यक्ति अपने जीवन से सारे विघ्नों और कष्टों को दूर कर लेता है। उसके जीवन में शुभता का आगमन शुरू हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को बहुत भाग्यशाली माना जाता है। भगवान गणेश शुद्धता के प्रतीक हैं। उनके आने से मांगलिक कार्यों का आरंभ होता है।
गणेशोत्सव को पूरे उमंग और उल्लास के साथ देशभर में मनाया जाता है। मगर क्या आप जानते हैं इसको मनाने की परंपरा सर्वप्रथम कहां से शुरू हुई? गणेश उत्सव की शुरुआत सबसे पहले महाराष्ट्र से हुई। गणेश चतुर्थी के दिन से इसका आरंभ होता है और फिर 11वें दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ इसका समापन होता है।भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। शिव पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस त्योहार को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। भारत के दक्षिण और पश्चिम राज्यों में इस त्योहार की विशेष धूमधाम रहती है। भारत में जब पेशवाओं का शासन था, तब से वहां गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। सवाई माधवराव पेशवा के शासन में पूना के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्यों पर अधिकार कर लिया। तब से वहां इस त्योहार की रंगत कुछ फीकी पड़ना शुरू हो गई। लेकिन कोई भी इस परंपरा को बंद नहीं करवा सका।
अंग्रेजों के सत्तासीन होने के बाद हिंदुओं पर पाबंदियां लगाने लगे। इतिहास में बताया गया है कि कुछ शासकों के गलत निर्णयों के चलते हिंदुओं में अपने ही धर्म के प्रति कड़वाहट पैदा हो गई और लोगों में धर्म के प्रति उदासीनता बढ़ती चली गई। उस समय महान क्रांतिकारी व जननेता लोकमान्य तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को कैसे संगठित किया जाए? लोकमान्य तिलक ने विचार किया कि श्रीगणेश ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जो समाज के सभी स्तरों में पूजनीय हैं।उन्होंने हिंदुओं को एकत्र करने के उद्देश्य से पुणे में सन 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की।
तब यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए और बाद में इसी गणेशोत्सव की मदद से आजादी की लड़ाई भी मजबूत की गई. दरअसल वीर सावरकर और कवि गोविंद की तरफ से नासिक में गणेशोत्सव मनाने के लिए एक संस्था बनाई थी जिसका नाम मित्रमेला रखा गया. इस संस्था में लोगों मं देशभक्ति का भाव जगाने के लिए राम-रावण कथा के आधार पर देशभक्ति से भरे मराठी गीतों को काफी आकर्षक तरीके से सुनाया जाता था. जिसे लोग काफी पसंद करते थे. धीरे-धीरे ये संस्था लोगों में काफी लोकप्रिय हो गई जिसके बाद अन्य कई शहरों में भी गणेशोत्सव के जरिए आजादी का आंदोलन छे़ड़ दिया गया।ऐसे पूरे देश में यह उत्सव मनाया जाने लगा। आज भी गणेश उत्सव राष्ट्र जागरण का उत्सव बनना चाहिए।भगवान श्री गणेश सभी देवों में प्रथम पूज्य हैं। शिव के गणों के अध्यक्ष होने के कारण इन्हें गणेश और गणाध्यक्ष भी कहा जाता है। भगवान श्री गणेश मंगलमूर्ति भी कहे जाते हैं क्योंकि इनके सभी अंग जीवन को सही दिशा देने की सिख देते हैं।
बड़ा मस्तक
गणेश जी का मस्तक काफी बड़ा है। अंग विज्ञान के अनुसार बड़े सिर वाले व्यक्ति नेतृत्व करने में योग्य होते हैं। इनकी बुद्घि कुशाग्र होती है। गणेश जी का बड़ा सिर यह भी ज्ञान देता है कि अपनी सोच को बड़ा बनाए रखना चाहिए।
छोटी आंखें
गणपति की आंखें छोटी हैं। अंग विज्ञान के अनुसार छोटी आंखों वाले व्यक्ति चिंतनशील और गंभीर प्रकृति के होते हैं। गणेश जी की छोटी आंखें यह ज्ञान देती है कि हर चीज को सूक्ष्मता से देख-परख कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता।
लंबे कान
अंग विज्ञान के अनुसार लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेश जी के लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं फिर अपनी बुद्धि और विवेक से निर्णय लेते हैं।
बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने के भी संकेत देते हैं। गणेश से यह शिक्षा मिलती है कि जो भी बुरी बातें आपके कान तक पहुंचती हैं उसे बाहर ही छोड़ दें। बुरी बातों को अपने अंदर न आने दें।
गणपति की सूंड
गणेश जी की सूंड हमेशा हिलती डुलती रहती है जो उनके हर पल सक्रिय रहने का संकेत है। यह हमें ज्ञान देती है कि जीवन में सदैव सक्रिय रहना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे कभी दुखः और गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता है।
शास्त्रों में गणेश जी की सूंड की दिशा का भी अलग-अलग महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति सुख-समृद्वि चाहते हो उन्हें दायीं ओर सूंड वाले गणेश की पूजा करनी चाहिए। शत्रु को परास्त करने एवं ऐश्वर्य पाने के लिए बायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणेश की पूजा लाभप्रद होती है।
बड़ा उदर
गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी कारण इन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वे हर अच्छी और बुरी बात को पचा जाते हैं और किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं।
अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली का प्रतीक होता है। गणेश जी का बड़ा पेट हमें यह ज्ञान देता है कि भोजन के साथ ही साथ बातों को भी पचाना सीखें। जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है वह हमेशा ही खुशहाल रहता है।
एकदंत
बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुराम जी से युद्घ हुआ था। इस युद्घ में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। इस समय से ही गणेश जी एकदंत कहलाने लगे। गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत से महाभारत लिख डाला
चार भुजाधारी गणपति जी के चारों हाथ चार दिशाओं के सूचक है यानी सफलता प्राप्त करनी है तो चहुंमुखी प्रयास करना चाहिए ! चारों हाथों में से एक में पाश, दूसरे में अंकुश, तीसरे में मोदक और चौथा हाथ अभय की मुद्रा में होता है ! सफल प्रबंधन के लिए यह चारों ही गुण अनिवार्य हैं!
नियमों का पाश हो, अनियमताओं पर अंकुश हो, श्रेष्ठ कार्यकर्ता को पुरस्कार स्वरूप मीठा प्रसाद यानी मोदक और कार्य करने की आजादी यानि अभय का अवसर भी मिले ! यही है गणेश जी का सुप्रबंधन !
मूषक अत्यंत छोटा प्राणी है उसे अपना वाहन बनाकर गणपति जी ने उसकी गरिमा को बढ़ाया और यह संदेश दिया कि छोटे से छोटे व्यक्ति के प्रति भी हमें स्नेहभाव रखना चाहिए ! *पुराण के अनुसार गज शब्द दो व्यंजनों से बना है – “ग” यानी गति या गंतव्य और “ज” अर्थात जन्म अथवा उद्गम यानि ऐसी ईश्वरी शक्ति, जो उत्पत्ति से लेकर अंत तक जीवन के मूल लक्ष्य का बोध जगाए रखें! आओ सब मिल कर करे नव राष्ट्र का निर्माण! श्री गणेश !!
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