संदिग्ध फंड, कोई नियामक तंत्र नहीं
कई मिनिस्ट्रीज का दावा है कि प्रार्थना मुफ्त में की जाती है, लेकिन सभाओं के दौरान अनुयायियों को ‘चर्च में बीज बोने’ – जिसका अर्थ है दान करना – के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इन मिनिस्ट्रीज के सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए भी खुलेआम चंदा मांगा जाता है. ऐसे संकेत भी हैं कि कम-से-कम कुछ मिनिस्ट्रीज नकदी में पैसा उगाह रहे हैं. अगस्त 2021 की पंजाब खुफिया रिपोर्ट – जो दिप्रिंट के द्वारा भी देखी गई है – के अनुसार, दो शीर्ष मिनिस्ट्रीज – जालंधर स्थित पैगंबर बजिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज और अपोस्त्ले अंकुर योसेफ नरूला मिनिस्ट्रीज – ने सामूहिक रूप से पिछले पांच वर्षों में अपने बैंक खातों में 60 करोड़ रुपये से अधिक की राशि प्राप्त की है.
अंकुर नरूला मिनिस्ट्रीज को 36 करोड़ रुपये और बजिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज को 24.5 करोड़ रुपये मिले; इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि हरप्रीत देओल खोजेवाला मिनिस्ट्रीज को भी 5.42 करोड़ रुपये मिले.
दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से अंकुर नरूला और बजिंदर सिंह से संपर्क करने के कई प्रयास किए, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हुई.
पेंटेकोस्टल मसीह महासभा (पेंटेकोस्टल प्रचारकों की परिषद), पंजाब के अध्यक्ष जॉन कोटली, जो नरूला के करीबी सहयोगी होने का दावा करते हैं, ने कहा कि प्रार्थना सभाओं में आम तौर पर गरीब लोग शामिल होते हैं जो प्रति व्यक्ति 10 या 20 रुपये से अधिक दान नहीं करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘जो भी दान एकत्र किया जाता है, और जैसा कि आपने उल्लेख किया है यह 36 करोड़ रुपये भी हो सकता है, उसका उपयोग बहुत सारे सामाजिक सेवा कार्यों हेतु किया जाता हैं.’
फिर भी, ऐसे सभी प्रमुख पादरी फैंसी कपड़ों, बड़ी कारों और लम्बी-चौड़ी निजी सुरक्षा के साथ एक शानदार जीवन शैली प्रदर्शित करते हैं. खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, वे अपने मिनिस्ट्रीज के तहत और अधिक निजी चर्च बनाने के लिए राज्यभर में सम्पत्तियां भी खरीद रहे हैं.
अकेले नवंबर और दिसंबर के महीनों में जालंधर, पटियाला, पठानकोट, मोहाली, जीरकपुर, नवांशहर, नकोदर, राजपुरा और लुधियाना में प्रमुख मिनिस्ट्रीज की कई नई शाखाएं खोली गईं हैं.
बढ़ती संख्या वाली ये मिनिस्ट्रीज स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं और इस क्षेत्र के दो मुख्य चर्चों – चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया (सीएनआई), जिसके तहत उत्तर भारत के अधिकांश प्रोटेस्टेंट चर्च आते हैं, और डायोसिस ऑफ़ जालंधर, जिसके अधिकार क्षेत्र के तहत पंजाब के 23 जिलों में से 15 जिलों साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के चार जिलों के में रोमन कैथोलिक चर्च भी आते है – में से किसी से भी संबद्ध नहीं हैं.
सीएनआई के तहत आने वाली अमृतसर डायोसिस के बिशप डॉ. प्रदीप कुमार सामंत राय ने दिप्रिंट को बताया कि ये ‘स्वतंत्र चर्च’ अपने अलावा किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं. उन्होंने उनकी तुलना डेरों से भी की जो ऐसे धार्मिक संप्रदाय है जो सिख धर्म की मुख्यधारा से बाहर काम करते हैं, लेकिन फिर भी उनके बड़े पैमाने पर अनुयायी हैं.
उन्होंने कहा, ‘वे ईसाई धर्म में डेरा संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं. शुरुआत में, जब घुमन्तू प्रचारक और फेथ हीलर्स ने अपना काम शुरू किया था तो वे सेवा करने और लोगों को स्वस्थ करने की सच्ची इच्छा से प्रेरित थे. लेकिन अब जो हम देख रहे हैं वह सब व्यावसायिक हितों से प्रेरित लगता है.’
बिशप ने आगे कहा, ‘मैं सीएनआई का मॉडरेटर (मध्यस्थ) रहा हूं, जिसके पास भारत के लगभग तीन-चौथाई हिस्से में 27 डायोसिस हैं, लेकिन मैंने स्वतंत्र चर्चों के इस पैमाने पर संचालन को पंजाब के अलावा कहीं और नहीं देखा है.’
सामंत राय ने कहा कि वह इस तथ्य से चिंतित हैं कि मिनिस्ट्रीज ‘उपचार के नाम पर पैसे मांग रहे हैं’. उनके अनुसार यही कारण है कि वह इन मिनिस्ट्रीज को फेथ हीलर्स नहीं बल्कि फेक (नकली) हीलर्स की तरह देखते हैं.
बिशप सामंत राय ने कहा कि इन मिनिस्ट्रीज के कामकाज की निगरानी के लिए एक नियामक तंत्र समय की मांग है.
उन्होंने कहा, ‘इसके दो पहलू हैं. पहला है धर्म, इसके प्रति आस्था, उसकी शिक्षाएं और इसकी परम्पराएं . दूसरा पहलू है व्यवस्था या अनुशासन या ऐसे प्रणाली जो पारदर्शी और जवाबदेह दोनों होनी चाहिए. इस मुद्दे पर सभी चर्च ऑर्डर्स को एक साथ आने चाहिए और इन मिनिस्ट्रीज के कामकाज के लिए एक ऐसे तंत्र का निर्माण करना चाहिए जो इसे विनियमित कर सके.’
रोमन कैथोलिक जालंधर सूबा के जनसंपर्क अधिकारी फादर पीटर कवुमपुरम ने दिप्रिंट को बताया कि ये मिनिस्ट्रीज स्वतंत्र रूप से करते हैं और उनका से कोई संबंध नहीं था. उन्होंने कहा, ’हम उनके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करते हैं, हम केवल अपने चर्चों के साथ मतलब रखते हैं,’
फादर कवुमपुरम ने कहा, ‘अगर वे (मिनिस्ट्रीज) चर्च या इसके धर्म सिद्धांत या फिर इसकी आस्था के सिद्धांत के खिलाफ मौलिक रूप से कुछ भी करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से उनका विरोध किया जाएगा. तब तक, वे जो कुछ भी कर रहे हैं उसका मार्गदर्शन उनके विवेक पर निर्भर है. जो उन पर विश्वास करते हैं उन लोगों के प्रति वे स्वयं जवाबदेह हैं.’
साल 2019 में, राज्य के ईसाई समुदाय ने शिरोमणि चर्च प्रबंधक समिति (एससीपीसी) की स्थापना के साथ इन मिनिस्ट्रीज के कामकाज को विनियमित करने का प्रयास किया, लेकिन यह अल्पकालिक प्रयास साबित हुआ.
क्रिश्चियन यूनाइटेड फेडरेशन, पंजाब के अध्यक्ष अल्बर्ट दुआ ने एससीपीसी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि यह संस्था वर्तमान में ‘निष्क्रिय’ है क्योंकि सदस्यों के बीच मतभेदों के कारण ‘कोई सहमतिपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सका.
उन्होंने कहा, ‘हमें जानकारी है कि ये मिनिस्ट्रीज क्या कर रहे हैं और हमें उनकी बहुत सारी शिकायतें भी मिलती हैं, लेकिन जब तक हमारे पास कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है, तब तक हम कुछ खास नहीं कर सकते हैं.’
दुआ का मानना है कि इन मिनिस्ट्रीज की निगरानी के लिए एक नियामक संस्था स्थापित करने के लिए राज्य सरकार को चर्चों और ईसाई निकायों के साथ सहयोग करना चाहिए, लेकिन उन्हें इस बारे में को ज्यादा उम्मीदें भी नहीं हैं.
दुआ ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि मुख्यधारा के चर्चों या फिर पारंपरिक ईसाई निकायों को मजबूत करने के बजाय, सरकारी प्रतिनिधि इन मिनिस्ट्रीज को संरक्षण दे रहे हैं.’
वर्तमान में, इन मिनिस्ट्रीज के निगरानी निकाय के रूप में काम कर सकने वाली के सबसे नज़दीकी संस्था पेंटेकोस्टल चर्च प्रबंधक समिति (पीसीपीसी) है, जिसे नवंबर 2021 में पादरी हरप्रीत देओल खोजेवाला मिनिस्ट्रीज द्वारा स्थापित किया गया था. इस निकाय का उद्देश्य मिनिस्ट्रीज को स्व-विनियमन में मदद करना है.
पीसीपीसी का शुभारंभ करने के दौरान खोजेवाला ने घोषणा की थी, ‘अगर किसी को किसी (मिनिस्ट्रीज) के बारे में देने के लिए कोई शिकायत है, तो कृपया हमें बताएं.’
फिरोजपुर में ‘चर्च ऑफ होप’ के वरिष्ठ पादरी और पीसीपीसी की कार्यकारिणी के सदस्य कुलदीप मैथ्यू ने दिप्रिंट को बताया कि 980 संगठन पहले ही संस्था के साथ अपना पंजीकरण करा चुके हैं.
मैथ्यू ने कहा, ‘अगर किसी के खिलाफ शिकायत प्राप्त होती है, तो हम मामले की जांच करते हैं और फिर अन्य सदस्यों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करते हैं. अगर कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता है, तो हम ऐसा भी करते हैं.’
हालांकि, पारदर्शिता अभी बहुत दूर की कौड़ी है.
इन मिनिस्ट्रीज के कामकाज के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, सिवाय इसके कि वे अपनी वेबसाइटों और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर अपने बारे में क्या साझा करते हैं.
बजिंदर सिंह और अंकुर नरूला के अलावा, दिप्रिंट ने अन्य सभी लोकप्रिय पादरियों – जिसमें हरप्रीत देओल, अमृत संधू, मनीष देओल, कंचन मित्तल, रमन हंस, दविंदर सिंह और हरजीत सिंह शामिल हैं- से भी फोन कॉल और मोबाइल संदेशों के माध्यम से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने कोई भी नहीं जवाब दिया.
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