01 अगस्त, 2022 – आम आदमी पार्टी की सरकार के दावों के बावजूद भी अमृतसर के दो सरकारी अस्पतालों की हालत में सुधार नहीं दिखाई दे रहा है। जलियांवाला बाग मेमोरियल सिविल अस्पताल और मेडिकल कॉलेज अमृतसर के साथ संबंधित गुरु नानक देव अस्पताल में साफ सफाई और प्रबंधों की हालत दयनीय है। गुरु नानक देव अस्पताल को तो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनाया जा रहा है। जबकि सिविल अस्पताल पर पहले ही काफी पैसे समय-समय की सरकारों की ओर से खर्च किए जा चुके हैं।
गुरु नानक देव अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर से लेकर तीसरी मंजिल पर शौचालयों की साफ सफाई की तरफ कोई भी सार्थक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कुछ शौचालयों में तो लाइट की व्यवस्था तक नहीं है। बहुत से शौचालयों में तो दीवारों की हालत खस्ता हो चुकी है। कहीं पानी की टैप नहीं चलती तो कहीं पानी की निकासी की व्यवस्था ठीक नहीं है, सफाई का बुरा हाल है। अस्पताल के कॉरिडोर और छतों की हालत देखकर ऐसे लगा जैसे कई वर्षों पहले सफेदी करवाई गई होगी तब कहीं छतों की सफाई होगी। वार्डों में साफ सफाई तो ठीक थी, परंतु छतों की हालत वहां भी दयनीय थी। सफाई के प्रबंध चाहे निजी हाथों में हैं फिर भी कर्मचारी अपनी ड्यूटी के प्रति गंभीर नहीं दिखाई देता।
अस्पताल में कुछ वार्डों में पीने के पानी की योग्य व्यवस्था नहीं थी वहीं बहुत सारे बिस्तरों पर गद्दे भी खराब हो चुके हैं। सिविल अस्पताल में सबसे अधिक बुरी हालत शौचालयों की है। अस्पताल के कॉरिडोर और वार्डों में सफाई तो ठीक थी, परंतु पीने के साफ पानी की स्थिति दयनीय है। पीने के पानी की जहां भी नल हैं वहां सफाई करना कर्मचारी अपनी ड्यूटी ही नहीं समझते। अस्पताल में रोगियों के बेड और गद्दों की हालत यही सही दिखाई दी। मामले को लेकर अस्पताल के सीएमओ डॉ. राजू चौहान का कहना है कि साफ सफाई का ध्यान रखने के लिए कर्मचारियों को विशेष हिदायत दी गई है। जो भी कर्मचारी लापरवाही करेगा उसके खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई होगी।
बिना विशेषज्ञों और जरूरी दवाओं के चल रहा बठिंडा का सिविल अस्पताल
बठिंडा सिविल अस्पताल बिना विशेषज्ञ डॉक्टरों और जरूरी दवाओं के ही चल रहा है। हालांकि सिविल सर्जन तेजवंत सिंह ढिल्लों लगातार कहते आ रहे हैं कि उनके पास कोई कमी नहीं है, लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। बीते दिन सेहत मंत्री भी अस्पताल में दौरा करने पहुंचे थे, लेकिन वो भी उक्त सवालों का जवाब नहीं दे पाए। जहां पर उन्हें अधिकारी लेकर गए वहीं पर वो चले गए।
शनिवार को सिविल अस्पताल की इमरजेंसी के परिसर के पास कुत्ता आराम फरमा रहा और मरीज एवं उनके परिजन वहां से डरकर निकल रहे थे। वहीं से अस्पताल का पूरा स्टाफ गुजरा, लेकिन किसी ने उक्त जानवर को बाहर निकालने की कोशिश नहीं की। इमरजेंसी में एंटी रेबीज समेत एंटी स्नेक जैसे टीके तक पर्याप्त मात्रा में नहीं है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को कुत्ते या सांप ने काट लिया तो उसका तुरंत प्राथमिक उपचार होना अति मुश्किल है।
शुक्रवार को जब सिविल सर्जन कार्यालय को सूचना प्राप्त हुई थी कि सेहत मंत्री दौरा करने अस्पताल पहुंच रहे हैं तो अस्पताल प्रबंधन ने पहले से ही पूरी तैयारी कर ली। हर वार्ड में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा और इसके अलावा मरीजों के बेड पर गद्दे बिछाए गए। मरीज परमजीत सिंह का कहना था कि अस्पताल में पहले से ज्यादा हालत सुधर गए हैं, लेकिन कुछ दवाएं न मिलने के कारण उन्हें दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही है।
‘गद्दे छोड़ सुविधाओं पर ध्यान दें सेहतमंत्री’
सिविल अस्पताल में शुक्रवार को दवा लेने पहुंची गर्भवती महिला परमजीत कौर निवासी बंबीहा को अस्पताल में स्थित जन औषधि केंद्र और रेडक्रॉस से दवाई ही नहीं मिली। उन्होंने बताया कि महंगे दाम पर दवाई बाहर से खरीदनी पड़ी है। महिला ने कहा कि सेहतमंत्री को गद्दों की फिकर नहीं करनी चाहिए, बल्कि अस्पताल में जरूरी दवाओं और मरीजों को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए।
अग्निशमन यंत्र पर नहीं कोई तारीख, इमरजेंसी गेट की खिड़की भी गायब
इमरजेंसी वार्ड में लगे शीशे के गेट की खिड़की में शीशा तक नहीं है। इसके साथ ही अग्निशमन यंत्र पर किसी भी अधिकारी या डॉक्टर ने ध्यान नहीं दिया। वार्ड में जो आग बुझाने का यंत्र लगा है उस पर कोई तारीख नहीं है। ऐसे में अगर कोई आग लगने जैसी अप्रिय घटना घटती है तो मौके पर शायद ही यह अग्निशमन यंत्र चले। मामले संबंधी सिविल सर्जन डॉ. तेजवंत सिंह ढिल्लों और डीसी शौकत अहमद से बात नहीं हो पाई है।
चार एमडी मेडिसन डॉक्टरों की जरूरत, एक से चल रहा काम
सिविल अस्पताल में चार एमडी मेडिसन डॉक्टरों की जरूरत है, लेकिन एक के सहारे ही काम चला जा रहा है। इस कारण अस्पताल में आने वाले मरीजों को काफी परेशान होना पड़ता है। अस्पताल आए इंदरजीत सिंह, नच्छतर सिंह ने पंजाब सरकार से मांग की कि सिविल अस्पताल में एमडी मेडिसन डॉक्टर और अल्ट्रा साउंड मशीन समेत सिटी स्कैन एमआरआई मशीनें मुहैया करवाई जाएं, जाकि लोगों को बाहर से महंगे दाम से टेस्ट न करवाने पड़ें।
खुद बीमार पड़ा है जैतो का सेठ रामनाथ सिविल अस्पताल
पंजाब सरकार और सेहत विभाग की अनदेखी के चलते जैतो का सेठ रामनाथ सिविल अस्पताल खुद ही बीमार हो गया है। कुछ समय पहले सेहत विभाग ने 30 से बढ़ाकर अस्पताल को 50 बेड की क्षमता वाला किया था। इसके बावजूद कोई पद नहीं बढ़ाया गया। बेडों की क्षमता बढ़ने से यहां काम करने वाले डॉक्टरों समेत अन्य स्टाफ पर बोझ और भी बढ़ गया है।
सिविल अस्पताल में पंजाब हेल्थ सिस्टम कॉरपोरेशन की ओर से आधुनिक इमारत का निर्माण किया गया था। पहले अस्पताल की क्षमता 30 बेड थी, जिसे बढ़ाया गया। 30 बेड वाले अस्पताल में कम से कम 8 स्पेशलिस्ट डॉक्टर और 4 जनरल मेडिकल अफसर होने चाहिए, लेकिन यहां पर सिर्फ दो डॉक्टर ही काम कर रहे हैं। डॉक्टरों के अभाव में एसएमओ का चार्ज संभाल रहे डॉक्टर को भी आपातकालीन सेवाएं देनी पड़ रही हैं।
आपातकालीन सेवाएं भी होती हैं प्रभावित
सिविल अस्पताल में डॉक्टरों व स्टाफ के अभाव की वजह से आपातकालीन सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। किसी तरह का हादसा पेश होने पर शहर में कार्यरत समाजसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ता मरीजों को सिविल अस्पताल तक पहुंचाते हैं। यहां से प्राथमिक उपचार के बाद 90-95 प्रतिशत मरीजों को फरीदकोट मेडिकल कॉलेज अस्पताल ही रैफर कर दिया जाता है। जैतो शहर समेत आसपास के करीब 20 गांवों में सेहत सेवाएं प्रदान करने वाले सिविल अस्पताल की ओपीडी में हर रोज करीब 250 से 300 मरीज पहुंच आते हैं। उधर, सिविल सर्जन डॉ. संजय कपूर ने बताया कि जैतो ही नहीं बल्कि जिला फरीदकोट में भी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों का अभाव है और नए डॉक्टरों के आने से ही यह कमी दूर हो सकेगी।
सौजन्य : अमर उजाला
test