अमीर देशों से समर्थन बढ़ाने का किया आग्रह
यूरोपीय संघ सहित 63 देश 90 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में भारत इस वर्ष 10वें स्थान पर है और सर्वोच्च प्रदर्शन करने वालों में से एक है। यह देखते हुए कि भारत की जलवायु नीति में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना नहीं है। भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है लेकिन यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और ऊर्जा का उपयोग अपेक्षाकृत कम है।
21 नवंबर, 2024 – बाकू : संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआइ 2025) रिपोर्ट जारी की गई। 60 से अधिक देशों की सूची में भारत दो स्थान नीचे खिसककर 10वें स्थान पर पहुंच गया है, लेकिन रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भारत के बेहतरीन प्रदर्शन की प्रशंसा की गई है।
कहा गया है कि भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, लेकिन यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन और ऊर्जा का उपयोग अपेक्षाकृत कम है। रिपोर्ट में पहला तीन स्थान खाली है। चौथे स्थान पर डेनमार्क और उसके बाद नीदरलैंड है। दो सबसे बड़े उत्सर्जक चीन और अमेरिका क्रमश: 55वें और 57वें स्थान पर बहुत नीचे बने हुए हैं।
रिपोर्ट में भारत इस वर्ष 10वें स्थान पर
सीसीपीआइ उत्सर्जन, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु नीति के मामले में दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जकों की प्रगति पर नजर रखता है। यूरोपीय संघ सहित 63 देश 90 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में भारत इस वर्ष 10वें स्थान पर है और सर्वोच्च प्रदर्शन करने वालों में से एक है।
जलवायु नीति में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना नहीं
यह देखते हुए कि भारत की जलवायु नीति में महत्वपूर्ण बदलाव की संभावना नहीं है, रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योग की बढ़ती ऊर्जा मांग और बढ़ती आबादी के कारण जलवायु कार्रवाई के लिए विकास-उन्मुख दृष्टिकोण जारी रहने या तेज होने की उम्मीद है।
भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.9 टन कार्बन डाइआक्साइड समतुल्य (टीसीओटूई) पर बना हुआ है, जो वैश्विक औसत 6.6 टीसीओटूई से काफी कम है। कार्बन डाइआक्साइड समतुल्य माप की एक इकाई है, जिसका उपयोग विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों के जलवायु प्रभावों को मानकीकृत करने के लिए किया जाता है।
भारत ने अमीर देशों से समर्थन बढ़ाने का किया आग्रह
भारत ने विकसित देशों से विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन के लिए अपना समर्थन बढ़ाने का आह्वान किया है। साथ ही कहा है कि चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता, विशेष रूप से गरीब देशों में लोगों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है। भारत ने कहा कि विकासशील दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से असमान रूप से पीडि़त है, जो काफी हद तक विकसित देशों द्वारा ऐतिहासिक उत्सर्जन का परिणाम है।
नवंबर में ऊंची चोटियों पर बर्फ नजर न आना चिंताजनक
नवंबर का आधा महीना बीत गया है, लेकिन हिमालय की ऊंची चोटियां बिना बर्फ के काली एवं शुष्क नजर आ रही हैं। मौसम विशेषज्ञ इस स्थिति को जलवायु परिवर्तन व मौसम के असामान्य पैटर्न से जोड़कर देख रहे हैं। सामान्यत: इन दिनों में चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी और उत्तरकाशी जिलों से नजर आने वाली हिमालय की चोटियों पर बर्फ की मोटी परत चढ़ जाया करती थी, जो ग्लेशियर के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है। इस बार न केवल बर्फबारी में कमी आई है, बल्कि मानसून के बाद वर्षा भी नहीं हुई। इससे गंगोत्री हिमालय और यमुनोत्री के पहाड़ भी उजाड़ से दिखाई दे रहे हैं।
सौजन्य : दैनिक जागरण
test