क्या जो विपक्ष द्वारा दिखाया जा रहा है वह सत्य है या सदन में चर्चा से भाग रहा विपक्ष वास्तव में सत्य से भाग रहा है ।
सच तो यह है कि वर्तमान भाजपा सरकार ने मणिपुर में अफीम का कारोबार खत्म कर दिया है। सरकार ने पिछले 5 वर्षों में 18,000 एकड़ से अधिक अफ़ीम की खेती को नष्ट कर दिया है।
यह वही खेती है जिसे वर्ष 2008 में हुए भयंकर गृह युद्ध के बाद तब सोनिया गांधी के निर्देश पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने कुकी और धर्मांतरित ईसाइयों के साथ मिलकर मैती आदिवासियों के साथ समझौता किया और मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों में अफ़ीम की खेती को आधिकारिक मान्यता दे दी। इतना ही नहीं पुलिस ने कार्रवाई न करने का आश्वासन भी दे दिया।
इसके बाद मणिपुर से पूरे भारत में तेजी से दवाएं भेजी जाने लगीं । मणिपुर नशीले पदार्थों का स्वर्ण त्रिभुज बन गया। चीन ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और म्यांमार से तीव्र आर्थिक मदद लेकर मणिपुर से पैदा होने वाली अफ़ीम को भारत के अन्य राज्यों में भेजा और पंजाब जैसे राज्यों को नशीला बनाना शुरू कर दिया।
जिन लोगों को नुकसान हुआ उन्होंने इसे कुकी और मैती के बीच आदिवासी संघर्ष बना दिया। शुरू में आम आदमी मारा जा रहा था तो हर कोई चुप था। वहां कई मंदिर और स्थानीय निवासियों के पूजा स्थल जला दिये गये….सभी चुप रहे।
फिर सेना ने मोर्चा खोला और आतंकियों को मार गिराया । तुरंत सोनिया गांधी का वीडियो आया.? फिर मणिपुर हिंसा पर सोनिया, उद्धव, ममता, केजरीवाल और अखिलेश यादव दुखी क्यों हैं? भोपाल की घटना पर दुख नहीं है जहां एक हिंदू युवक के गले में कुत्ता डालकर उसे कुत्ते की तरह घुमाया गया।
मणिपुर के मूल निवासी मैती आदिवासी हैं।
आजादी से पहले मणिपुर के राजाओं के बीच भयंकर युद्ध होते रहे, कई कमजोर मैती राजाओं ने युद्ध में पड़ोसी देश म्यांमार से बड़ी संख्या में कुकी और रोहिंग्या हमलावरों को अपनी सेना में बुलाया और विदेशी रोहिंग्या और कुकी को अपने साथ मिला लिया।
धीरे-धीरे कुकी हमलावरों ने मणिपुर में अपना निवास बनाना शुरू कर दिया । जल्द ही कुकी की आबादी तेजी से बढ़ने लगी। बेहद आक्रामक और उग्र कुकियों ने मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया और मैती आदिवासियों को वहां से खदेड़ दिया । मैती आदिवासी भागकर मणिपुर के मैदानी इलाकों में रहने लगे।विदेशी कुकी और रोहिंग्याओं ने मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों में अफ़ीम की खेती शुरू कर दी।
मणिपुर की सीमा चीन और म्यांमार से लगती है। चीन ने मणिपुर पर नज़र रखनी शुरू कर दी और भारत विरोधी पार्टियों की मदद करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान ने भी म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के माध्यम से मणिपुर में घुसपैठ करना शुरू कर दिया ।
सबसे बड़ी साजिश तो ईसाई मिशनरियों ने रची । मिशनरियों ने मणिपुर के पिछड़े आदिवासी इलाकों में 2,000 से अधिक चर्च बनाए और तेज़ी से धर्मांतरण शुरू कर दिया। जिसमें अधिकांश मैती आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया गया।
वर्ष 1981 में मणिपुर में लगातार भीषण हिंसा हो रही थी । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय 10,000 से ज्यादा मैती आदिवासी मारे गये। उसके बाद इंदिरा गांधी की नींद खुली और सेना भेजी गयी और शांति करायी गयी। शांति समझौते में यह निर्णय लिया गया कि मैती मैदानों में रहेगी और कुकी ऊपर की पहाड़ियों पर रहेगी।
इससे स्थानीय मैती समुदाय को काफी नुकसान हुआ। धीरे-धीरे कुकी, रोहिंग्या और नागा समुदायों ने मणिपुर की ऊंची पहाड़ियों में बड़े पैमाने पर अफ़ीम की खेती शुरू कर दी। हजारों खेतों में अफ़ीम की खेती होने लगी, खरबों रुपये का व्यापार होने लगा, जिससे ड्रग माफिया और आतंकवादी संगठन सक्रिय हो गये और जमकर हथियारों की सप्लाई होने लगी।
2014 में केंद्र में सरकार बदल गई। केंद्र सरकार की नजर पूरे भारत पर थी, जहां-जहां धर्मांतरण हो रहा था, जहां-जहां हिंदू खतरे में दिख रहे थे, जो राज्य भारत से अलग होने की कोशिश कर रहे थे, केंद्र सरकार ने उन राज्यों को चिन्हित किया और धीरे-धीरे कार्रवाई शुरू कर दी। असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु में केंद्र सरकार ने गुप्त तरीके से काम करना शुरू कर दिया।
जम्मू कश्मीर और असम में सफलता मिली.। साल 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार मणिपुर में सफलता मिली और कांग्रेस से बीजेपी में आए वीरेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया.। मैती समुदाय के मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह 30 वर्षों से मणिपुर में राजनीति कर रहे हैं और वे मणिपुर की मूल समस्या को जानते हैं।
वीरेंद्र सिंह खुद मैती समुदाय से आते हैं, जो आदिवासी संकट के बारे में जानते हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने वीरेंद्र सिंह को अफ़ीम की खेती को नष्ट करने का निर्देश दिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह ने अफ़ीम की खेती पर हमला किया और हजारों एकड़ में लगे अफ़ीम के पौधों को नष्ट कर दिया, जिसके कारण कुकी और ईसाई मिशनरी, रोहिंग्या के साथ-साथ चीन और पाकिस्तान में खलबली मच गई। वे किसी भी तरह मणिपुर में फिर से अफ़ीम की खेती शुरू करना चाहते हैं।
आजादी से पहले मैतई समुदाय को आदिवासी समाज का दर्जा हासिल था और ये एसटी वर्ग में आते थे। आजादी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने मैतेई समुदाय से एसटी वर्ग को निकालकर ईसाई मिशनरी और कुकी समुदाय को एसटी बना दिया। इससे मैती नाराज हो गए और मणिपुर में बार-बार हिंसा होने लगी थी।
वर्ष 2010 में मैती समाज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग की। साल 2023 में हाई कोर्ट ने मैती समाज के दावे को स्वीकार कर लिया और मैती समाज को फिर से आदिवासी श्रेणी में शामिल करने का आदेश जारी कर दिया।
चूँकि ईसाई और कुकी हमलावर अफ़ीम की खेती बंद होने और मिशनरियों द्वारा धर्म के प्रसार को रोकने से नाराज़ थे, इसलिए उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश का पूरा फायदा उठाया और मणिपुर में आग लगा दी।
एक बात तो स्पष्ट है कि अगर वर्ष 2014 में सरकार नहीं बनी होती तो चीन धीरे-धीरे मणिपुर पर कब्ज़ा कर चुका होता। वर्तमान केन्द्र सरकार ने मणिपुर में मूल भारतीयों को उनका हक देना शुरू किया, ये बात विरोधियों को नागवार गुजरी।
पिछले 70 सालों से मणिपुर पर कांग्रेस का कब्जा था, मणिपुर में जाकर ईसाई मिशनरियों का काम रोकने से नाराज सभी विपक्षी दल मणिपुर में हुई हिंसा के लिए मोदी सरकार को बदनाम कर रहे हैं।
लगता है कि मणिपुर का सच छिपाने के लिए ही विपक्ष साथ मिलकर मणिपुर पर संसद में बात ही नहीं करना चाहता । विपक्ष महिलाओं से हुए दुर्व्यवहार की आड़ में सच के लिए नहीं अपितु काफ़्का साथ पाने के लिए राजनीति कर रहा है।
अब कांग्रेस के युवराज सोनिया के निर्देश पर क्रिश्चियन को बचाने के लिए वहां का दौरा कर रहे हैं।
लेखक : रंजू “हेररी”
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