16 नवम्बर, 2023 – चंडीगढ़ : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की निगरानी समिति ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि पंजाब का भूजल वर्ष 2039 तक 300 मीटर से नीचे चला जाएगा। दरअसल, वर्ष 2000 में राज्य में 110 फुट पर भूजल उपलब्ध था और दो दशकों बाद अब 450 फुट पर पहुंच गया है। मालवा क्षेत्र के सभी 14 जिलों के अधिकांश ब्लॉकों में भूजल स्तर का अत्यधिक दोहन हुआ है।
भूजल का बेलगाम दोहन पंजाब को अगले दो दशक में सूखाग्रस्त प्रदेश की शक्ल दे देगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2039 तक पंजाब में भूजल स्तर 1000 फुट तक गिर जाएगा, जो आज 450 फुट तक पहुंच चुका है। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब का 78 फीसदी क्षेत्र डार्क जोन बन चुका है और केवल 11.3 फीसदी क्षेत्र ही सुरक्षित रह गया है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की निगरानी समिति ने भी हाल ही में घोषणा की थी कि पंजाब का भूजल वर्ष 2039 तक 300 मीटर से नीचे चला जाएगा। दरअसल, वर्ष 2000 में राज्य में 110 फुट पर भूजल उपलब्ध था और दो दशकों बाद अब 450 फुट पर पहुंच गया है। पंजाब के मध्य और दक्षिणी जिले- बरनाला, बठिंडा, फतेहगढ़ साहिब, होशियारपुर, जालंधर, मोगा, एसएएस नगर, पठानकोट, पटियाला और संगरूर, सबसे अधिक प्रभावित हैं, जहां भूजल स्तर में गिरावट की औसत वार्षिक दर 0.49 मीटर प्रति वर्ष आंकी गई है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2020 में किए गए ब्लॉक-वार भूजल संसाधन मूल्यांकन के अनुसार श्री मुक्तसर साहिब जिले को छोड़कर, मालवा क्षेत्र के सभी 14 जिलों के अधिकांश ब्लॉकों में भूजल स्तर का अत्यधिक दोहन हुआ है। इसमें संगरूर, मालेरकोटला और बरनाला जिले के 75 गांव भी शामिल हैं।
बोर्ड की रिपोर्ट में पूरे पंजाब की जो स्थिति पेश की गई है, उसके अनुसार 109 ब्लॉक यानी करीब 78 फीसदी क्षेत्र में भूजल का अत्याधिक दोहन हुआ है और यह क्षेत्र डार्क जोन बन चुका है। इसके अलावा 4 फीसदी क्षेत्र में भूजल की स्थिति गंभीर है और स्तर 400 से 500 फुट तक गिर चुका है। राज्य का 6.7 फीसदी क्षेत्र ऐसा है जहां भूजल स्तर 300 फुट तक उतर गया है।
ट्यूबवेलों की निर्भरता और नहरी सिंचाई व्यवस्था की कमी को जिम्मेदार ठहराया
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन में भूजल स्तर की गिरावट के लिए ट्यूबवेलों पर निर्भरता और नहरी सिंचाई व्यवस्था की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में वर्ष 1970-71 तक लगभग 190,000 ट्यूबवेल थे, जो मुफ्त या सब्सिडी वाली बिजली की उपलब्धता के बाद 2011-12 तक बढ़कर 10.38 लाख हो गए। 2020 में इनकी संख्या लगभग 24 लाख तक पहुंच चुकी है, जबकि ट्यूबवेल लगवाने के लिए किसानों को अब 500 फुट तक गहरे बोर करवाने पड़ रहे हैं। मौजूदा समय में, पंजाब की 72 फीसदी भूमि पर सिंचाई का काम ट्यूबवेलों से और शेष 28 फीसदी नहरी पानी से की जा रही है।
हमारे पास अब 16 साल ही बचे हैं : सीचेवाल
राज्यसभा सांसद और पर्यावरणविद बलबीर सिंह सीचेवाल का कहना है कि पंजाब में भूजल के दोहन में कमी नहीं आई है और हमारे पास अब 16 साल ही बचे हैं। हालात बहुत नाजुक हैं। इसे रोकना होगा वरना पंजाब को खत्म होने से कोई नहीं रोक सकता। राज्य सरकार ने नहरी पानी का उपयोग करके सिंचित क्षेत्र को 30 से बढ़ाकर 70 फीसदी करने का निर्णय लिया है, जिससे सिंचाई के लिए भूजल निकासी में कमी आएगी।
इसके अलावा, सरकार इस समस्या से निपटने के लिए लेजर-स्तरीय सिंचाई को बढ़ावा दे रही है और ड्रिप व स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों की स्थापना के लिए किसानों को सब्सिडी दी जा रही है। पहले नहरी पानी का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई में बहुत कम उपयोग हो पाता था क्योंकि डिस्ट्रिब्यूटरियों के खराब निर्माण और रखरखाव में लापरवाही के चलते खेतों तक पूरा नहरी पानी नहीं पहुंच पाता था। आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने इस स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाए हैं और किसानों के खेतों की टेल तक नहरी पानी पहुंचाने का काम शुरू किया गया है।
सौजन्य : अमर उजाला
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