सौरभ कपूर
तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोध में टिकरी बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन के दौरान बंगाल की बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना और उसके बाद मौत ने एक बार फिर तथाकथित किसान आंदोलन को कलंकित कर दिया है। 26 जनवरी की लाल किला घटना, मलोट में जन प्रतिनिधि को निर्वस्त्र की घटना और अब टिकरी बॉर्डर पर बंगाल की बेटी के साथ रेप की घटना ने फिर से किसान आंदोलन को शर्मसार कर दिया है। वैसे तो सब शुरू से कह रहे हैं कि ये न किसान हैं, न किसान आंदोलन अपितु किसानों के नाम पर अराजकता फैलाने वाले गुंडे, देश- प्रदेश को बदनाम करने वाले, नीच हरकते करने वाले कुसंस्कारित और घटिया सोच वाले है जिनका काम देश मे अराजकता फैलाना, लूटपाट करना है।
इस घटना के बाद अब कोई भी तथाकथित किसान नेता जवाब नही देता। इस तरह जमीर को मारकर आंदोलन नहीं जीते जाते। पंजाब के पंजाबी मीडिया को भी इस घटना को गलत कहने से बचना नहीं चाहिए। अराजक गतिविधियों की अनदेखी के कारण ही यह बड़ी घटना सामने आई है।
क्या संयुक्त किसान मोर्चा के लीडर अब अपना इस्तीफा देंगे या इस तथाकथित किसान आंदोलन को बंद करेंगे या इस घटना को मोदी और आरएसएस की चाल कहकर अपना पल्ला झाड़ लेंगे।
पर आखिर कौन लेगा इस बलात्कार की नैतिक और अपराधिक जिम्मेवारी? बंगाल से किसान आंदोलन के नाम पर बरगला कर लाई हुई लड़की के साथ बलात्कार की सूचना योगेंद्र यादव समेत कई किसानों को थी, फिर अब नैतिक जिम्मेवारी क्यों नहीं लेते? हर व्यक्ति जो मोर्चे के साथ संबंध रखता है, वह आगुओ की ही पनाह में रहता है। वारदात वाली जगह से टैंट तोड़ देना एक तरह का सबूतो को नष्ट करना ही होता है।
नैतिक और अपराधिक जिम्मेवारी के साथ और भी कई प्रश्न उठते हैं – क्या यह तथाकथित किसान आंदोलन अब महिला दुष्कर्म आंदोलन बन गया है? क्यों होती रही अराजक व आसामाजिक गतिविधियों की अनदेखी? क्यों चुप रहे किसान आंदोलन में महिला दुष्कर्म पर किसान नेता? लड़की का पिता जब किसान नेताओं को मिला तब न्याय क्यूं नहीं मिला? जान और अस्मिता दोनों गवां बैठी बंगाल की लड़की का क्या कसूर था ? यही की वह इस तथाकथित आंदोलन का हिस्सा बनी?
यह भी चिंता का विषय है कि सब जानते हुए शायद इसलिए इस बात को छुपाया गया की कोरोना के डर से किसानों के आने की संख्या न घट जाए चाहे इसके फलस्वरूप किसानों की जान ही क्यों ना खतरे में डल जाए। बेहद शर्मनाक बात है। पंजाबी तो स्वाभिमानी और इज्जतो के रक्षक माने जाते हैं। पर किसान मोर्चा में पंजाबी आगु इस मामले में समझौता कराने में लगे रहे।
तथाकथित किसान आंदोलन अपनी जगह, पर इस मामले में लड़की व उसके पिता को इंसाफ की गुहार को लेकर किसान नेताओं को बनती कार्रवाई करके पंजाब की छवि को कायम रखना चाहिए। क्योंकि पंजाब के लोग तो पगड़ियों से दूसरों की इज्जतों को हमेशा से बचाते आए हैं।
बलात्कार पर पर्दा डलवा कर आंदोलनजीवियों ने अपने मुंह काले करवाए हैं। आंदोलन में भाग ले रही तमाम लड़कियों और औरतों के लिए एक बेहद चिंता का विषय है। उससे भी ज्यादा चिंता नारीवादी, वामपंथी और उनके ग्रुपों पर है जो इस मामले में गूंगे होकर बलात्कारियों के साथ जा खड़े हैं। घटना का पता चलने पर सोशल मीडिया पर लोगो की मानसिकता का पता लगता है। जहां सब लोगों को अब इस बात पर एकमत होना चाहिए कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। पर फिर भी इसमें भी कुछ लोग बहस करने पर और किसान आन्दोलन के आंदोलन जीवियों के पक्ष में बोलते नजर आ रहे है।
बेइंसाफी के विरुद्ध लड़ना चाहिए और उस गरीब परिवार के हक में आवाज भी बुलंद करनी चाहिए। बंगाल की इस बहन/बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा को आवाज उठानी ही चाहिए। अगर नेता इस तरह के जुर्म के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते तो कोई फायदा नहीं इस मोर्चे का जो किसी की बहन बेटी को इंसाफ नहीं दिलवा सकता। इस लड़की को इंसाफ जरूर मिलना चाहिए, चाहे दोषी कोई भी क्यों ना हो। किसान सोशल आर्मी से जुड़े अनूप चानौत, अनिल मलिक, अंकुर सांगवान, जगदीश बराड़, कविता आर्य, योगिता सिहाग इन आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। आखरी बार पिता से सिसकते हुए युवती ने कहा था कि उसके साथ गलत हुआ है। उसके दोषियों को सजा दिलाने के लिए हम सभी को उस लड़की की आवाज बनना ही होगा। अगर इस बात को रफा-दफा करने की कोशिश हुई या आगे होगी तो यह पंजाब के लिए खासकर धरने पर बैठे किसानों के लिए यह बहुत बड़ा कलंक साबित होगी। अंत में कुछ पंक्तियां –
“फिर एक बेटी वहशी नजरों की हो गई शिकार
फिर देश, समाज और इंसानियत हो गई शर्मशार।”
(सौरभ कपूर, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के संभाग संगठन मंत्री पंजाब है)
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