निशा डागर
कहते हैं कि अगर आप दुनिया में कोई अच्छा बदलाव देखना चाहते हैं तो खुद में बदलाव लाकर इसकी शुरुआत करनी चाहिए। पंजाब के एक व्यवसायी गुणबीर सिंह ने भी, अपनी और पर्यावरण की बेहतरी के लिए ऐसे कई बदलाव किये हैं। गुणबीर सिंह ‘वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर- इंडिया पंजाब’ के अध्यक्ष है। वह 15 सालों से भी ज्यादा समय से पर्यावरण के लिए कार्य कर रहे हैं और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने घर से की है। साथ ही, उन्होंने किसानों की जैविक उपज को आसानी से बेचने के लिए, एक जैविक बाज़ार (Farmers Organic Market) की भी स्थापना की है।
अमृतसर के रहने वाले गुणबीर सिंह ने लगभग 18 साल पहले, अपने परिवार के पांच सदस्यों को खो दिया था। उन दिनों, उनका पारिवारिक व्यवसाय भी घाटे में चल रहा था। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी और एक नए सिरे से शुरुआत की। उन्होंने 2003 में अकेले ही अपनी एक ट्रेवल एजेंसी शुरू की और साथ ही, उन्होंने फैसला किया कि वह अपने जीवन को पर्यावरण के लिए समर्पित करेंगे। इसलिए, उन्होंने 2004 में दिलबीर फाउंडेशन की शुरुआत की, जिसके जरिए उनका उद्देश्य किसानों को जैविक खेती से जोड़ना और आम नागरिकों को स्वस्थ खाने और कचरा-प्रबंधन के लिए प्रेरित करना है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैंने अपने परिवार के सदस्यों को कैंसर से खोया था। हम सब जानते हैं कि खेती में इस्तेमाल होने वाले रसायन, देश में बढ़ता कचरा, खाने की गिरती गुणवत्ता और लोगों में बढ़ रहीं बीमारियां, ये सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इन सभी परेशानियों को हम एक दिन में हल नहीं कर सकते हैं। लेकिन अगर एक-एक करके, इन पर काम करें तो जरूर बदलाव ला सकते हैं। इसलिए मैंने ‘दसवंद’ सीख का पालन करते हुए, अपनी कमाई का दसवां हिस्सा समाज और पर्यावरण की भलाई के लिए लगाने का फैसला किया।”
अपने घर को बनाया ‘जीरो–गार्बेज हाउस’:
गुणबीर सिंह ने सबसे पहले, अपने घर से निकलने वाले कचरे को कम करने पर काम किया। वह बताते हैं, “हमारे घरों से निकलने वाले कचरे में लगभग 60-70% जैविक कचरा होता है। इस कचरे का प्रबंधन लोग खुद कर सकते हैं। प्लास्टिक, मेटल और कांच के कचरे को आप रीसायकल करने के लिए दे सकते हैं। इसकी शुरुआत, कचरे को अलग-अलग करने से होनी चाहिए। जैविक कचरे से खाद बनाई जाती है और अन्य तरह के कचरों को रीसायकल किया जा सकता है।”
अपने घर से निकलने वाले जैविक कचरे से वह जैविक खाद तैयार करते हैं। इस खाद का इस्तेमाल, वह अपने घर के बगीचे को पोषण देने के लिए करते हैं। उन्होंने अपने घर में कई तरह के पेड़-पौधे लगाए हुए हैं, जिनमें मौसमी सब्जियां और कुछ फलों के पेड़ भी शामिल हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने छत पर बागवानी के लिए लोहे के बड़े प्लांटर बनवाये हुए हैं, जिनमें वह एक बार में लगभग 10 तरह की साग-सब्जियां उगाते हैं। इसके अलावा, उन्होंने गमलों में नींबू, संतरा और अंजीर जैसे फलों के पेड़ लगाए हुए हैं।
घर में गार्डनिंग और कंपोस्टिंग करने के साथ-साथ, वह वर्षा के जल का संचयन भी करते हैं और अपने घर में लगे आरओ सिस्टम से, निकलने वाले अतिरिक्त पानी को भी इस्तेमाल में लेते हैं। उनका कहना है कि वह आरओ से निकलने वाले पानी को साफ-सफाई और पौधों में देने के लिए उपयोग करते हैं।
किसानों के लिए शुरू किया जैविक बाजार
लोगों में जागरूकता लाने के लिए, उन्होंने अपनी फाउंडेशन के जरिए ‘अमृतसर- मेरा शहर, मेरा मान, मेरी जिम्मेदारी’ अभियान चलाया हुआ है। जिसके अंतर्गत, वे लोगों को बताते हैं कि कैसे उनके छोटे-छोटे कदम समाज और पर्यावरण के लिए लाभदायक साबित हो सकते हैं। उनके इस अभियान को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और बहुत से लोग उनसे जुड़े हैं। उनके प्रयासों के कारण, शहर के कई सिटीजन पार्क्स में भी खाद के लिए गड्ढे बनाए गए हैं ताकि पार्क का सारा जैविक कचरा खाद बनाने में इस्तेमाल हो, न कि इसे जलाया जाए।
उन्होंने स्कूलों में भी लकड़ी की जगह, पुराने अखबार को रीसायकल करके बनी पेंसिल इस्तेमाल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया था। उन्होंने शहर के कई स्कूलों में जाकर, बच्चों और शिक्षकों को इस बारे में जागरूक किया। इस पहल से प्रेरित होकर, एक छात्र ने उनके इस अभियान को आगे बढ़ाने का काम किया। 19 वर्षीय अनिरुद्ध अरोड़ा दसवीं कक्षा में थे, जब उन्होंने रीसाइकल्ड पेंसिल के बारे में जाना। तब, उन्हें लगा कि अपने पर्यावरण की बेहतरी के लिए, यह छोटा-सा कदम हर छात्र उठा सकता है। इसलिए उन्होंने अपने स्तर पर, अमृतसर और लुधियाना के कई स्कूलों में जाकर छात्रों को इस बारे में बताया।
किसानों की मदद के लिए शुरू किए जैविक बाजार:
गुणबीर सिंह कहते हैं कि उन्होंने किसानों को छोटे-छोटे समूहों में इकट्ठा करके, जैविक खेती से जोड़ने की पहल शुरू की थी। वह अपनी फाउंडेशन के जरिए, किसानों को रसायनमुक्त खेती करने के तरीके सिखा रहे हैं। उनका कहना है, “किसानों के लिए, एकदम से जैविक खेती शुरू कर देना संभव नहीं है। क्योंकि, जैविक खेती की शुरुआत में उत्पादन अच्छा नहीं मिलता है। ऐसे में, हम किसान को अपनी कुछ जमीन पर जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करते हैं। हम इस प्रक्रिया में उनका पूरा सहयोग करते हैं।”
इसके साथ ही, किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें अपनी जैविक उपज के लिए, अच्छा बाजार नहीं मिल पाता है। इस परेशानी को हल करने के लिए, दिलबीर फाउंडेशन ने साल 2016 में अमृतसर में ‘Farmers Organic Market’ की शुरुआत की। फाउंडेशन के साथ काम कर रहीं अमनदीप कौर बताती हैं, “इस जैविक बाजार को सेटअप करने का उद्देश्य, किसानों को एक प्लेटफॉर्म देना था, जहां वे सीधा ग्राहकों से जुड़ सकें। इसके लिए, फाउंडेशन न सिर्फ किसानों से जुडी बल्कि लोगों में भी स्वस्थ खाने के प्रति जागरूकता अभियान चलाए। किसानों को अपनी उपज मंडी में बेचने की जरूरत नहीं पड़ती है, वे यहां इस मार्केट में अपने हिसाब से अपनी उपज ग्राहकों को बेच सकते हैं।
अमनदीप कौर, पिछले चार सालों से फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं और उनका कहना है कि फाउंडेशन किसानों को सिर्फ एक राह दिखाती है और शुरुआत में उनकी मदद करती है। धीरे-धीरे ये किसान, दूसरे किसानों तथा ग्राहकों से जुड़ने लगते हैं। इतना ही नहीं, ये किसान एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। इस कड़ी में उनकी फाउंडेशन की पहल #NoMorePoisonInMyFood काफी ज्यादा कामयाब रही और अलग-अलग माध्यमों से, अब तक लगभग 20 हजार किसानों को इससे मदद मिली है।”
अमृतसर के गाँव जेथुवाल से संबंध रखने वाले, अवतार सिंह ने लगभग चार साल पहले अपनी कुछ जमीन पर जैविक खेती शुरू की थी। वह कहते हैं, “पूरी जमीन पर एक साथ जैविक खेती करना मुमकिन नहीं है। इसलिए, मैंने थोड़ा-थोड़ा करके शुरूआत की है। हम जो भी उगाते हैं, उसे सीधा ग्राहकों तक पहुंचाते हैं। शुरुआत में, हमें बाजार की काफी समस्या आई थी। लेकिन, फिर एक किसान गोष्ठी में गुणबीर जी से मुलाकात हुई और उनकी इस मार्केट के बारे में पता चला। हम तब से यहां पर अपना स्टॉल लगा रहे हैं। इसके अलावा, किसान मेलों और कृषि विद्यालयों में भी स्टॉल लगाने का मौका मिलता रहता है।” अवतार सिंह के अलावा, और भी बहुत से किसान हैं, जिन्होंने फाउंडेशन की मदद से न सिर्फ जैविक खेती शुरू की है बल्कि अपने खुद के खाद्य उत्पाद आदि बनाने भी शुरू किये हैं।
गुणबीर सिंह कहते हैं कि समाज और पर्यावरण के लिए, कुछ करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है। आप अपनी छोटी-छोटी आदतों में बदलाव लाकर भी, एक अच्छी पहल कर सकते हैं। आपका उद्देश्य सिर्फ यह होना चाहिए कि न सिर्फ आपको स्वस्थ भोजन मिले बल्कि आप स्वस्थ अनाज तथा फल-सब्जियां उगाने वाले किसानों का भी साथ दें।
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