27 नवंबर, 2024 – नई दिल्ली : मोहन भागवत ने कहा कि ज्ञान मन से प्राप्त किया जा सकता है और मन की ऊर्जा प्राण से आती है। प्राण की शक्ति जितनी मजबूत होगी, व्यक्ति उतना ही आगे बढ़ने में सक्षम होगा।
राष्ट्रीय स्वयंयेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार के दिल्ली विवि के मल्टीपर्पज हॉल में बनाए जीवन प्राणवान पुस्तक का विमोचन किया। इस पुस्तक को संघ के ही कार्यकर्ता मुकुल कानिटकर ने लिखा है। कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि दो हजार साल से विश्व अहंकार के भाव से ही चल रहा है। अब इसे प्राण शक्ति की जरूरत है। भारत ही विश्व को प्राण शक्ति दे सकता है।
मोहन भागवत ने कहा कि ज्ञान मन से प्राप्त किया जा सकता है और मन की ऊर्जा प्राण से आती है। प्राण की शक्ति जितनी मजबूत होगी, व्यक्ति उतना ही आगे बढ़ने में सक्षम होगा। जिस तरह से आधुनिक विज्ञान कई जगहों पर लागू होता है, उसी तरह हमारा अध्यात्म भी कई जगहों पर लागू होता है। कण-कण में चेतना है इसलिए कण-कण शुद्ध है। हमारे पास यह समझ थी इसलिए हम जीवन को एक संपूर्ण दृष्टि दे सके। आज दुनिया को भी प्राण शक्ति की जरूरत है। यह हमारी जिम्मेदारी है और हम इसे देने में सक्षम भी हैं।
मोहन भागवत ने कहा कि आज राष्ट्रीय या व्यक्तिगत स्तर पर तप की आवश्यकता है। इसकी जड़ों में एक प्राण शक्ति है। भारत में भी एक प्राण शक्ति है जो हमारे सामने है, लेकिन हम इसे देख नहीं पा रहे हैं। प्राण हर व्यक्ति और हर चीज में है। जब भी दुनिया में कोई संकट आता है, तो भारत तुरंत प्रतिक्रिया करता है, चाहे वह देश हमारा मित्र हो या शत्रु। यह अपने आप नहीं होता। इसमें भारत की चेतना के पीछे का प्राण दिखाई देता है। यही भारत की पहचान है।
अध्यात्म और विज्ञान के बीच संघर्ष नहीं: भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान के बीच कोई संघर्ष नहीं है। दोनों ही क्षेत्र न्याय पाने के लिए विश्वास की भावना की आवश्यकता होती है। मानवता ने यह माना है कि संवेदी धारणा से प्राप्त ज्ञान ही सत्य है और यह तब से मजबूत हुआ है जब से आधुनिक विज्ञान ने जोर पकड़ा है। लेकिन यह अधूरा दृष्टिकोण है। विज्ञान की अपनी सीमाएं हैं और यह मान लेना गलत है कि इसके दायरे के बाहर कुछ नहीं है। आंतरिक अनुभवों से गहराई में उतरकर हमने जीवन की सच्चाइयों को खोजा है। इसलिए इस दृष्टिकोण और विज्ञान में कोई संघर्ष नहीं है।
सौजन्य : अमर उजाला
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