पीजीआई में बन रहा रीजन का पहला स्किन बैंक, बर्न केसेज में बचाएगा जान
26 मई, 2023 – चंडीगढ़ : पीजीआई में नॉर्दन रीजन का पहला स्किन बैंक खुलने जा रहा है। इस बैंक की मदद से बर्न केसेज, खासकर छोटे बच्चों की, में झुलसे मरीजों की जान बचाने और उन्हें जल्द ठीक करने में मदद मिलेगी। पीजीआई इसे इसी साल जुलाई में शुरू करने की तैयारी में है। अभी देश के किसी भी एम्स में स्किन बैंक की सुविधा नहीं है।
पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ प्लास्टिक सर्जरी के एचओडी प्रो. अतुल पाराशर ने बताया कि 50 फीसदी से ज्यादा झुलसे मरीज की बॉडी में ब्लड टिश्यू और फ्लूड की कमी हो जाती है। इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। झुलसे बच्चों के जले हुए हिस्से पर स्किन ट्रांसप्लांट कर उन्हें जल्द ठीक किया जा सकेगा।
जो स्किन ट्रांसप्लांट की जाती है वह टेम्परेरी होती है। ट्रांसप्लांट के 20-30 दिन के बाद मरीज की अपनी स्किन डेवलप होने लगती है। ऐसे में ट्रांसप्लांट की गई स्किन उतर जाती है। तब तक मरीज ठीक होने लगता है। जो गैप रह जाता है उसे उसी मरीज की स्किन लेकर ग्राफ्ट कर दिया जाता है।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि झुलसे मरीज को टिश्यू और फ्लूड लॉस नहीं होता। इंफेक्शन की आशंका कम हो जाती है और जान जाने का खतरा नहीं रहता। मरीज जल्द ठीक भी हो जाता है। छोटे बच्चों के झुलसने पर उनकी बॉडी से स्किन निकालना मुश्किल होता है, क्योंकि छोटे शरीर से स्किन निकालने की जगह भी कम होती है।
बच्चों में ब्लड टिश्यू और फ्लूड लॉस का खतरा व्यस्क के मुकाबले ज्यादा होता है। वहीं बच्चा 50 फीसदी से ज्यादा जल जाए तो भी उसके शरीर से स्किन निकालना मुश्किल है। इसलिए पीजीआई की प्राथमिकता छोटे बच्चे हैं। चूंकि उनके पेरेंट्स भी बच्चे की देखभाल में लगे होने हैं, ऐसे में उनकी बॉडी से स्किन लेना भी थोड़ा मुश्किल होता है। स्किन बैंक का लाभ ऐसे ही मरीजों को होगा।
स्किन को 5 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है…
प्रो. पाराशर के मुताबिक- जिस तरह ऑर्गन डोनेशन के लिए पीजीआई का रोटो डिपार्टमेंट मृतक के परिजनों को ऑर्गन डोनेशन के लिए प्रेरित करता है, उसी तरह अब स्किन डोनेशन के लिए प्रेरित किया जाएगा। मृत शरीर के अन-एक्सपोज्ड हिस्से से स्किन निकाली जाती है। हालांकि यह डोनेट करने वाले परिवार की कंसेंट पर निर्भर करेगा। स्किन डोनेशन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ब्रोशर छपवाए जा रहे हैं। ब्रेन डेड पेशेंट के शरीर से स्किन निकालकर उसे ग्लिसरोल में डाल दिया जाएगा।
तीन हफ्ते तक स्किन ग्लिसरोल में रखी रहेगी। इससे स्किन में जो भी इंफेक्शन है वह निकल जाएगी। उसके बाद प्रोसेसिंग की जाएगी। उसका 6 बार कल्चर किया जाता है, उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही यह तय किया जाता है कि यह स्किन ट्रांसप्लांट के योग्य है। इसे मायनस 4 डिग्री में रखा जाता है।
इसे कहीं और जरूरत पड़ने पर पैक करके भेजा भी जा सकता है। यह पांच साल तक सुरक्षित रखी जा सकती है। देशभर में 17 स्किन बैंक… अभी महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, जयपुर में स्किन बैंक हैं। जयपुर में सरकारी सवाई मानसिंह अस्पताल में यह सुविधा शुरू की गई है।
प्याज के छिलके से भी पतली स्किन निकाली जाती है… प्रो. पराशर ने बताया- डेड मरीज की थाई या पीठ से प्याज के छिलके से भी पतली स्किन निकाली जाती है। इसे ट्रांसप्लांट के योग्य बनाने के लिए प्रोसेस किया जाता है। वैसे तो आर्टिफिशियल स्किन आती है, लेकिन महंगी पड़ती है। स्किन का 10 बाय 10 हिस्सा 70-80 हजार रुपए का आता है। इसे ट्रांसप्लांट में इस्तेमाल करना महंगा पड़ता है।
सौजन्य : दैनिक भास्कर
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