सुमित दहिया
नई उम्मीद की गुंजाइश का अंधकार से बहकर निकलना
हर बार रोशनी की गारंटी नही हो सकता
वह आदमी जो किसी धर्म को नही मानता था
यह कहकर मरा है
कि धर्म शुद्धतम अफीम है
लेकिन अब यह अफ़ीम कई रूपो में विभाजित है
लालच, दबंगई, धक्काशाही और ताकत
अब इसके ताज़ा माध्यमों के रूप में आकार ले रहे है
रूपांतरण धर्म का नही
बल्कि जीवन और उसके प्रति समर्पित नजरिए का होना चाहिए
क्योंकि विचार से विचारधारा
और व्यक्ति से व्यक्तित्व तक का सफर
इसी रूपांतरण से उत्पन्न गहन खोज का नतीजा है
टूटी सुराही से रिसता पानी जैसे ढ़लान के अंहकार को पोषित करता है
ठीक वैसे धर्मार्थ के लिए किए गए अधिकतर कार्य
गरीब ढ़लान के प्रति आकर्षक सम्मोहन से अधिक कुछ भी नही
जो बाद में धर्म परिवर्तन का मूल आधार भी बनते है
इस विषय का केन्द्रीयकरण युवा जेबो से रोजगार कार्यालय झाड़ता है
बूढ़े खिस्सो में दवाई बांटता है
आदिवासियों को उनकी जमीन का मालिकाना हक देता है
बच्चों को फर्जी भाषा मे शिक्षा सुनिश्चित करता है
और अंततः एक खुशहाल परिवार का सपना बुनता है
उन तीन भारतीय रंगों में डूबी अनेक मौसमो की तालीम
क्यूं तुम्हारी दीमक लगी आत्मीयता को निखार नही पाती
इक प्रश्नवाचक चिन्ह का मौन चीख कर पूछता है
तुम आमादा हो
अपने डकारे हुए जेहनी दलदल का व्यापक फैलाव
खुशीराम के एकांतवास से लेकर
अपनी धार्मिक इमारतो के कोनो तक करने के लिए
व्यापकता में सार्थकता तलाशने वाली मानसिकता
सभी धर्मों का अवश्य सम्मान करती होगी
और वही वास्तव में असल धर्मनिरपेक्षता भी है
यह देश अनुशासन के बीच मौजूद अव्यवस्थित अंतरालों में
निरंतर होते धार्मिक हमलों को झेलने का आदि रहा है
फिर भी उसी मजबूती और बुलंदी के साथ हर बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है
चिलम भरती रातों में भटकते आर्थिक विकल्प
तुम्हारी मजबूरियों को कोई नया धर्म नही दे सकते
बल्कि वे केवल तुम्हे योजनाबद्ध धार्मिक मृत्यु दे सकते है
मै देख सकता हूं
तुम धर्म-परिवर्तन के पश्चात यूकेलिप्टस के दरख़्त की छांव में
बवासीर की लहू उगलती गांठ पर बैठकर
जो बासी रोटी चबा रहे हो
उस पर कबूतर बीट करते जा रहे है
और नई अफवाहें ढ़ोते हुए बादल आ रहे है
एक नाटकीय अवकाश में तुम्हारे सभी धर्मो की
मासिकधर्म में परिवर्तित होने की यात्रा
केवल धर्म-परिवर्तन का ही परिणाम मात्र है।
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