खालिस्तानी कट्टरपंथ, मतांतरण व नशे की समस्या को लेकर चेतने का समय
दिव्य कुमार सोती : पंजाब में पिछले कुछ अर्से की घटनाओं को देखें तो 1979 से 1984 के कालखंड की झलक दिखती है। पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी से लेकर हिंसा के रास्ते अलग खालिस्तान के सपने देखने वालों के सारे कदम ठीक वैसे ही हैं, जैसे उन काले दिनों में थे। एसजीपीसी ने इसी एक दिसंबर से जिन सिख कैदियों की रिहाई का अभियान छेड़ा है वे और कोई नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे एवं बम धमाके के दोषी हैं।
कुछ दिनों पहले पंजाब में शिवसेना नेता सुधीर सूरी की एक मंदिर के बाहर धरना-प्रदर्शन के दौरान दर्जन भर से ज्यादा पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हत्या कर दी गई। सूरी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों के अपमान और कुछ तत्वों द्वारा उनके लिए अपशब्दों का विरोध करने के लिए धरने पर बैठे थे, लेकिन पुलिस की मौजूदगी में उनकी हत्या हो गई। मौके से पकड़े गए हत्यारोपित संदीप सिंह को लेकर जब जांच-पड़ताल हुई तो ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें वह वारिस पंजाब दे नामक खालिस्तान समर्थक संगठन के मुखिया अमृतपाल सिंह के साथ नजर आ रहा है। अमृतपाल ने संदीप सिंह के समर्थन में बयान भी दिए और उसके परिवार की जिम्मेदारी उठाने का भी भरोसा दिलाया। इसके बाद भी पंजाब पुलिस की अमृतपाल को जांच के दायरे में लाने की हिम्मत नहीं हो पा रही है।
सुधीर सूरी की हत्या के कुछ दिनों बाद फरीदकोट में एक डेरा समर्थक, जिस पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का आरोप था, की भी दिनदहाड़े हत्या हो गई। इस हत्या से कुछ दिन पहले फरीदकोट में ही अमृतपाल ने रैली कर सिख युवाओं से न्याय व्यवस्था में विश्वास न रखते हुए बेअदबी के आरोपितों पर खुद कार्रवाई करने और सिख राज स्थापित करने की अपील की थी। इस अलगाववादी रैली में मंच से बोलने वालों में आप विधायक और पंजाब विधानसभा स्पीकर भी थे।
हत्याओं का यह दौर 1979 के जरनैल सिंह भिंडरावाला के समर्थकों द्वारा अपने वैचारिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या जैसा ही है। उदाहरण के लिए निरंकारी बाबा गुरचरन सिंह की हत्या करने वाला भी भिंडरावाला का खास रंजीत सिंह था। तब भी पुलिस भिंडरावाला पर कार्रवाई करने से बचती रही थी। जब कभी कार्रवाई की कोशिश हुई तो भिंडरावाला ने मेहता चौक गुरुद्वारे और बाद में श्री अकाल तख्त साहिब में ठिकाना बना लिया और सरकार ठिठक गई।
हाल ही में एक दिन के लिए नजरबंद किए गए अमृतपाल ने भी अपनी राइफलें लहराते समर्थकों के साथ स्वर्ण मंदिर का दौरा किया और वहां हजारों की भीड़ को संबोधित किया। खालिस्तानी प्रचार तंत्र ने कुछ ही घंटों में इन तस्वीरों को धार्मिक गानों से मिला कर वाट्सएप स्टेटस और इंस्टाग्राम रील्स के रूप में सिख युवाओं के बीच वायरल कर दिया।
अमृतपाल को पंजाब में अब भिंडरावाला 2.0 कहा जाने लगा है। उसने न सिर्फ भिंडरावाला जैसी वेशभूषा बना रखी है, बल्कि उसी प्रकार की भड़काऊ बातें भी करता है। वह भिंडरावाला की ही तरह हथियारबंद समर्थकों के बीच चलता है। अमृतपाल को भिंडरावाला के रूप में स्थापित करने में लगे तत्व भिंडरावाला को लेकर फंतासियों से भरे मनोविज्ञान से भली भांति परिचित हैं। इन तत्वों ने सालों तक भिंडरावाला को लेकर कपोल कथाएं गढ़ कर उसे एक संत और करिश्माई शक्तियों वाले महानायक के रूप में स्थापित किया है। इसका नतीजा यह है कि पिछले कुछ वर्षों में खालिस्तान समर्थक युवाओं का एक ऐसा तबका खड़ा हुआ है, जो भिंडरावाला जैसा किरदार एक बार फिर अपने सामने देखना चाहता है। अमृतपाल को भिंडरावाला 2.0 बनाकर उसी तलब को पूरा किया जा रहा है।
पिछले पांच-छह साल में पंजाब में बेहद सुने जाने वाले हिट पंजाबी पाप गानों में भिंडरावाला, बंदूकों, बंकरों और दिल्ली को चुनौती के व्यापक महिमामंडन से इस मनोविज्ञान को भली भांति समझा जा सकता है। इस माहौल के लिए जितने जिम्मेदार कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थक अलगाववादी तत्व हैं, उतनी ही जिम्मेदार एसजीपीसी की राजनीति है।
एसजीपीसी से जुड़े नेताओं ने जब आपरेशन ब्लू स्टार की बरसी मनाना शुरू किया तो फिर भी समझ आता था, क्योंकि आखिर सिखों के सबसे पवित्र तीर्थ को इस आपरेशन में नुकसान पहुंचा था। सिखों ही क्यों, करोड़ों हिंदू श्रद्धालुओं की भावना भी स्वर्ण मंदिर से जुड़ी रही है, पर क्या एसजीपीसी समझा सकती है कि उसने गुरुद्वारों में भिंडरावाला जैसी विवादित शख्सियत, जो अपने भाषणों में हर अनुयायी से 35 हिंदुओं की हत्या करने का आह्वान करता था, की तस्वीरें क्यों लगने दीं? यह भी एक तथ्य है कि भिंडरावाला की सभाओं में खुलेआम मंच से उन पुलिस अधिकारियों और आम लोगों के नाम पुकारे जाते थे, जिनकी हत्याएं की जानी होती थीं।
यह भी विचारणीय प्रश्न है कि क्या ब्लू स्टार जैसी घटना कभी होती, अगर भिंडरावाला ने श्री अकाल तख्त साहिब में डेरा जमाकर आतंकी गतिविधियां संचालित न की होतीं? यह भी एक तथ्य है कि अगर अकाली नेताओं ने नई दिल्ली के आह्वान पर समझदारी दिखाते हुए अकाली मोर्चा स्थगित कर दिया होता तो संभवतः ब्लू स्टार का फैसला वापस ले लिया जाता।
आज के एसजीपीसी नेता यह भूल चुके हैं कि किस तरह श्री हरिमंदिर साहिब में फंसे अकाली नेताओं पर ब्लू स्टार के दौरान भिंडरावाला समर्थकों ने ग्रेनेड हमला कर गुरचरन सिंह टोहरा और हरचरन सिंह लोंगोवाल की हत्या की कोशिश की थी, जिन्हें भारतीय सेना ने ही अपनी सुरक्षा में बख्तरबंद वाहन में स्वर्ण मंदिर से निकाला था। इसके बाद भी एसजीपीसी उसी राजनीति को दोहरा रही है, जो आनंदपुर साहिब प्रस्ताव से पंजाब को ’84 के हालात तक ले गई थी, जिसमें अकालियों और भिंडरावाला के बीच कौन अधिक कट्टरपंथी है, इसे लेकर होड़ थी।
कट्टरपंथ की होड़ में अक्सर अधिक कट्टरपंथी की ही जीत होती है, जो तब भिंडरावाला था और इस बार अमृतपाल दिखाई देता है। खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथ, मतांतरण, नशे की समस्या और बेढब रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव के चलते कैंसर रूपी महामारी से जूझते पंजाब को लेकर खतरे की घंटी बजाने का समय है। ज्ञानी जैल सिंह के शब्दों को याद करें तो पंजाब की किताब का वरका-वरका एक बार फिर बिखर रहा है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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