समान नागरिक संहिता के मामले में यदि विपक्षी दलों के साथ-साथ कांग्रेस के पास कहने को कुछ है तो केवल यही कि आखिर उसकी पहल इसी समय क्यों की जा रही है? यह कुछ वैसा ही कुतर्क है, जैसा अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिया गया था। तब यह कहा गया था कि इस मामले की सुनवाई आम चुनाव के बाद की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता की पहल इसी समय क्यों, यह कोई सवाल नहीं हुआ। क्या कांग्रेस या फिर अन्य विपक्षी दल यह बता सकते हैं कि इस संहिता की पहल के लिए कौन सा समय उपयुक्त होता? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि जो काम दशकों पहले हो जाना चाहिए था, वह अभी भी लंबित है।

समान नागरिक संहिता का निर्माण लंबित रहना एक तरह से संविधान निर्माताओं के सपनों को जानबूझकर न पूरा करना है। कांग्रेस को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू ने तमाम विरोध के बाद भी हिंदू कोड बिल के मामले में किस तरह दृढ़ रवैया अपनाया था। समान नागरिक संहिता के मामले में विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति करने से बेहतर है कि उस पर सकारात्मक दृष्टिकोण से विचार किया जाए। माना जा रहा है कि संसद के आगामी सत्र में सरकार समान नागरिक संहिता का विधेयक लेकर आ सकती है। ऐसा हो या न हो, सभी दलों के लिए उचित यही होगा कि संसद के मानसून सत्र में उस पर व्यापक बहस हो। आखिर जब जनता के बीच उस पर बहस हो रही है तो फिर संसद में क्यों नहीं होनी चाहिए?

Edited By: Amit Singh

आभार : https://www.jagran.com/editorial/nazariya-congress-must-avoid-old-mistake-should-think-positively-about-uniform-civil-code-23458201.html