समान नागरिक संहिता के मामले में यदि विपक्षी दलों के साथ-साथ कांग्रेस के पास कहने को कुछ है तो केवल यही कि आखिर उसकी पहल इसी समय क्यों की जा रही है? यह कुछ वैसा ही कुतर्क है जैसा अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिया गया था। तब यह कहा गया था कि इस मामले की सुनवाई आम चुनाव के बाद की जानी चाहिए।
कुछ विपक्षी दलों ने समान नागरिक संहिता पर जिस तरह सकारात्मक और तार्किक रवैया अपना लिया है, उससे कांग्रेस की दुविधा बढ़ जाना स्वाभाविक है। उसे इस दुविधा का परित्याग करने की आवश्यकता है, न कि अपने रवैये पर अड़े रहने की। ऐसा इसलिए, क्योंकि कई विपक्षी नेताओं के साथ कांग्रेस के भी कुछ नेता समान नागरिक संहिता को समय की मांग बता रहे हैं। कांग्रेस को वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण वैसी कोई भूल करने से बचना चाहिए, जैसी उसने शाहबानो मामले में की थी। इसकी कीमत केवल उसे ही नहीं, देश को भी चुकानी पड़ी।
यदि शाहबानो मामले में राजीव गांधी की सरकार कट्टरपंथी तत्वों के आगे झुकने के बजाय संविधानसम्मत फैसला करती और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़ी होती तो आज स्थिति दूसरी होती-न केवल उसकी, बल्कि भारतीय समाज की भी। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को यह स्मरण रखना चाहिए कि राजनीतिक दलों का एक प्रमुख काम जनता को दिशा देना और समाज सुधार के काम करना भी होता है। एक समय था, जब कांग्रेस एक राजनीतिक दल के रूप में समाज सुधार के कामों पर भी ध्यान देती थी, लेकिन धीरे-धीरे उसने सामाजिक सुधारों से मुंह मोड़ लिया और केवल वोट बैंक की राजनीति करनी शुरू दी।
समान नागरिक संहिता के मामले में यदि विपक्षी दलों के साथ-साथ कांग्रेस के पास कहने को कुछ है तो केवल यही कि आखिर उसकी पहल इसी समय क्यों की जा रही है? यह कुछ वैसा ही कुतर्क है, जैसा अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दिया गया था। तब यह कहा गया था कि इस मामले की सुनवाई आम चुनाव के बाद की जानी चाहिए। समान नागरिक संहिता की पहल इसी समय क्यों, यह कोई सवाल नहीं हुआ। क्या कांग्रेस या फिर अन्य विपक्षी दल यह बता सकते हैं कि इस संहिता की पहल के लिए कौन सा समय उपयुक्त होता? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि जो काम दशकों पहले हो जाना चाहिए था, वह अभी भी लंबित है।
समान नागरिक संहिता का निर्माण लंबित रहना एक तरह से संविधान निर्माताओं के सपनों को जानबूझकर न पूरा करना है। कांग्रेस को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू ने तमाम विरोध के बाद भी हिंदू कोड बिल के मामले में किस तरह दृढ़ रवैया अपनाया था। समान नागरिक संहिता के मामले में विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति करने से बेहतर है कि उस पर सकारात्मक दृष्टिकोण से विचार किया जाए। माना जा रहा है कि संसद के आगामी सत्र में सरकार समान नागरिक संहिता का विधेयक लेकर आ सकती है। ऐसा हो या न हो, सभी दलों के लिए उचित यही होगा कि संसद के मानसून सत्र में उस पर व्यापक बहस हो। आखिर जब जनता के बीच उस पर बहस हो रही है तो फिर संसद में क्यों नहीं होनी चाहिए?
Edited By: Amit Singh
आभार : https://www.jagran.com/editorial/nazariya-congress-must-avoid-old-mistake-should-think-positively-about-uniform-civil-code-23458201.html
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