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भारत की आजादी का क्रेडिट किसी एक व्यक्ति या संगठन को नहीं दिया जा सकता ; RSS

June 9, 2025 By News Bureau

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09 जून, 2025 – नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत की आजादी का श्रेय किसी एक शख्स या संगठन को नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने शनिवार को कहा कि भारत की आज़ादी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसका श्रेय किसी एक व्यक्ति या संस्था को नहीं दिया जा सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज़ादी की लड़ाई में अनगिनत लोगों और समूहों ने अपना योगदान दिया है।

भागवत नागपुर में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज़ादी की लड़ाई 1857 के विद्रोह से शुरू हुई थी। इसी विद्रोह ने आज़ादी के लिए एक चिंगारी जगाई। भागवत ने कहा, “देश को आज़ादी कैसे मिली, इस बारे में बात करते समय अक्सर एक अहम सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। यह आज़ादी किसी एक व्यक्ति की वजह से नहीं मिली। 1857 के बाद पूरे देश में आज़ादी की लड़ाई की आग जल उठी थी…” हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक भागवत ने आज़ादी में योगदान देने वाले अनगिनत लोगों और समूहों का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि किसी एक संस्था को इसका “विशेष श्रेय” नहीं दिया जा सकता। हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।

RSS की भूमिका पर उठते रहते हैं सवाल

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसका वैचारिक स्रोत, RSS अक्सर इस बात का जवाब देते रहते हैं कि आज़ादी की लड़ाई में उनकी भूमिका क्या थी। आलोचक अक्सर RSS पर आज़ादी की लड़ाई से दूर रहने का आरोप लगाते हैं। वहीं, RSS के समर्थक कहते हैं कि उनकी भी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे RSS संस्थापक के.बी. हेडगेवार जैसे नेताओं का उदाहरण देते हैं, जिन्होंने लोकमान्य तिलक के प्रभाव में आकर आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था। हेडगेवार को 1921 में अंग्रेजों के खिलाफ भाषण देने के लिए एक साल की जेल हुई थी। 1930 में ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ आंदोलन में भी वे जेल गए थे।

RSS का कहना है कि उसने एक समाज बनाने पर ध्यान दिया। उनका मानना था कि सामाजिक विभाजन के कारण ही भारत गुलाम हुआ था। RSS 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल नहीं हुआ था, इसलिए उसकी आलोचना होती है। RSS इस आलोचना का जवाब इस तरह देता है।

आलोचकों का कहना है कि RSS नेता एम.एस. गोलवलकर ने आज़ादी के आंदोलन को ” प्रतिक्रियावादी और अस्थायी” बताया था। उनका मानना था कि असली दुश्मन तो देश के अंदर ही हैं, जिनसे लड़ना ज़रूरी है। आलोचकों का कहना है कि RSS का मकसद ब्रिटिश शासन को खत्म करना नहीं था, बल्कि “हिंदू राष्ट्र” की स्थापना करना था। इसलिए, RSS का नज़रिया उस समय के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय आंदोलन से अलग था, जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी।

मोहन भागवत बोले-बहुत से लोग आरएसएस को ठीक से नहीं जानते

भागवत ने RSS की भूमिका और सिद्धांत के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग जो RSS की अच्छाइयों और कमियों के बारे में बात करते हैं, वे शायद इसके बारे में ठीक से जानते नहीं हैं। “जो लोग समय निकालकर हमारे संगठन को समझते हैं, वे अक्सर कहते हैं कि वे बहुत प्रभावित हुए हैं और उन्होंने बहुत कुछ सीखा है।” RSS को अपनी ताकत समर्पित स्वयंसेवकों के बलिदानों से मिलती है, जो सामूहिक रूप से फैसले लेते हैं।

भागवत ने RSS के बारे में फैली गलत धारणाओं को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि RSS में किसी एक व्यक्ति की वाहवाही नहीं होती, बल्कि सभी सदस्यों के सामूहिक प्रयास महत्वपूर्ण होते हैं। उन्होंने कहा, “RSS में सबसे बड़ा पद एक साधारण स्वयंसेवक का होता है।” भागवत ने कहा कि समर्पित सदस्य अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं और यही RSS का असली काम है। उन्होंने स्वयंसेवकों को अपने संपर्क बढ़ाने और निस्वार्थ सेवा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। भागवत ने कहा कि दूसरों की मदद करने में ही सच्ची खुशी मिलती है. उन्होंने कहा, “निस्वार्थ सेवा ही प्रत्येक [RSS] स्वयंसेवक का सबसे बड़ा लक्ष्य है।”

सौजन्य : नवभारत टाइम्स


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