सकंद शुक्ला
रामलीला का मंचन भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बड़े उत्साह के साथ किया जाता है। दक्षिण और पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में रामलीला होती है। थाईलैंड श्रीलंका और जापान में भी राम कथा का महत्व है।
शारदीय नवरात्र में देशभर में रामलीला का मंचन हो रहा है। हिंदू मानस में नैतिकता, परस्पर सहयोग और त्याग की सुनाई जाने वाली रामकथा दुनिया भर में किसी न किसी रूप प्रचारित-प्रसारित हो रही है। आपको जानकर हैरानी होगी की रामलीला का मंचन भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बड़े उत्साह के साथ किया जाता है। दक्षिण और पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में रामलीला होती है। थाईलैंड, श्रीलंका और जापान में भी राम कथा का महत्व है। कुछ ऐसे ही देश और वहां होने वाली रामलीला पर एक नजर डालते हैं।
दूसरे देश जाकर भी परंपराएं जिंदा करने की कोशिश
रामलीलाओं पर अध्ययन करने वाले शिक्षाविद व संस्कृति कर्मी डा. पंकज उप्रेती कहते हैं कि देखना बड़ा सुखद होता है कि सिर्फ हिंदू ही नहीं हर धर्म के लोग रामलीला खेलने और देखने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। हमारे देश में रामलीला का होना बहुत आम लगता है। समय के साथ इसमें नई पीढ़ी की रुचि भी कम हो रही है, मगर यही रामलीला अगर किसी दूसरे देश में होते मिल जाए तो लगता है मानो कोई खोई चीज मिल गई। कुछ रूप बदला, कुछ कहानी बदली, कुछ पात्र बदले, मगर जहां-जहां भारतीय गए वहां भारतीयता गई, वहां-वहां राम कथा भी यात्रा करते हुए पहुंची। यहां तक कि कई देशों ने भारतीय संस्कृति में ढली हमारी रामलीला को अपना लिया। जिस वजह से अब दूसरे देशों में भी एक से बढ़कर एक रामलीलाएं देखने को मिल रही हैं।
लाओसः गाने और थिएटर में रामलीला
यहां वाल्मीकि रामायण का मंचन होता है। गाने-बजाने के साथ डांस पेंटिंग और थिएटर भी इसमें देखने को मिलते हैं। लाओस के राष्ट्रीय महाकाव्य फरा लाख फरा राम की कहानी राम कथा से मिलती है। इसका अधिकांश भाग भगवान बुद्ध पर आधारित है। इसमें हिंदू देवताओं के भी वर्णन हैं। शब्द लाख का मतलब लक्ष्मण से है जो राम के नाम से मौजूद बुद्ध के साथ हर जगह खड़े मिलते हैं।
सूरीनामः दिखता है डच प्रभाव
रामलीला में पात्रों के नाम सूरीनाम में थोड़े बदल जाते हैं पर इसे लेकर यहां के लोगों में खासा उत्साह रहता है। इसका सीधा प्रसारण होता है। नई तकनीक का प्रयोग भी खूब होता है। डच प्रभाव की वजह से भगवान राम रामत्जांद्रे व सीता सियेता हो जाती हैं। हिंदी और डच के मिश्रण से तैयार यह रामलीला अलग ही आकर्षण पैदा करती है।
जापान व चीनः यहां भी राम का गुणगान
जापान के लोकप्रिय कथा संग्रह होबुत्सुशू में संक्षिप्त राम कथा संकलित है। इसकी रचना तैरानो यसुयोरी ने 12वीं शताब्दी में की थी। कथा का स्रोत चीनी भाषा का ग्रंथ छह परिमिता सूत्र है। यह कथा वस्तुतः चीनी भाषा के अनामकंजातक पर आधारित है, लेकिन इन दोनों में काफी अंतर भी है।
मॉरीशसः गाई जाती है रामलीला
मॉरीशस के कला और सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से हर साल यहां रामलीला करवाई जाती है। यहां रामलीला झाल-ढोलक के साथ गाई जाती है। यहां की रामलीला इतनी मशहूर है कि अभिनय के लिए भारतीय कलाकारों को बुलाया जाता है।
कंबोडियाः रामायण सबसे प्रसिद्ध साहित्य
इस बौद्ध देश में हिंदू धर्म का प्रभाव है, क्योंकि यहां करीब 600 सालों तक हिंदू खमेर साम्राज्य का शासन था। यहां रामायण को रीमकर और भगवान राम को प्रिय रीम कहा जाता है। सीता नेयांग सेडा और लक्ष्मण प्रीह लीक के नाम से जाने जाते हैं। यहां रामलीला तुलसीदास रचित रामचरितमानस के आधार पर खेली जाती है। रीमकर खमेर साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध साहित्य है। इसका प्रभाव कंबोडिया की कला में साफ दिखाई देता है।
थाईलैंडः राम की कीर्ति बताने वाली छाया रामलीला
थाईलैंड का राष्ट्रीय महाकाव्य रामाकीन है। इसका अर्थ राम की कीर्ति है। यह वाल्मीकि रामायण से लिया गया है और थाई भाषा में है। यहां के थिएटर ग्रुप में भी रामलीला भव्य तरीके से आयोजित होती है। थाईलैंड में छाया रामलीला होती है, जिसे नंग कहा जाता है। इसको सफेद पर्दे पर दिखाते हैं। फिर उसके सामने पुतलियों को इस तरह नचाया जाता है कि उसकी छाया पर्दे पर पड़े। मुखोटों का इस्तेमाल कर यहां रामलीला की जाती है। नाटक के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला को थाईलैंड में खौन के नाम से जाना जाता है।
म्यांमारः विदूषक की मुख्य भूमिका
म्यांमार की रामलीला यामप्वे कहलाती है। इसमें मुखौटों का इस्तेमाल होता है। यहां के लोग हास्य रस के बहुत प्रेमी होते हैं। इसलिए यामप्वे में विदूषक की भूमिका मुख्य मानी जाती है। यहां की रामलीला में ऐसा बहुत कम होता है जब रंगमंच पर विदूषक उपस्थित न हो। रामलीला आरंभ होने से पहले एक-दो घंटे हास-परिहास चलता है। नृत्य और गीत संगीत के कार्यक्रम होते हैं।
इंडोनेशियाः रामायण को मानते हैं अपनी संस्कृति
इंडोनेशिया के लोगों का मानना है कि इस्लाम जहां उनका धर्म है वहीं रामायण उनकी संस्कृति। यहां लोग 9वीं सदी में लिखी जैवनिस वर्जन आफ रामायण को मानते हैं। इंडोनेशिया के जावा में प्रंबनाम मंदिर में सेंद्रातारी रामायण लगभग साल भर चलती है। यह राम कथा पर आधारित बैले डांस यानी नृत्य-नाटिका है। इसमें सीता हरण, मारीच मरण जैसे दृश्य देखने को मिलते हैं। इसमें एक बार में सैकड़ों कलाकार हिस्सा लेते हैं। कभी-कभी कलाकारों संख्या 800 भी पार कर जाती है।
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