फंदा बनीं लोक-लुभावन योजनाएं
पंजाब की आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति के खराब होने की सबसे बड़ी वजह मुफ्त की रेवाड़ियां हैं। चुनाव में नेताओं के द्वारा एलान किए गए लोक-लुभावन योजनाएं फंदा बनकर रह गई हैं। 1986 से पहले पंजाब कैश सरप्लस राज्य था। हालांकि तीन दशकों में राज्य की आर्थिक स्थिति पटरी से उतरकर कंगाली की ओर बढ़ गई है।
18 सितम्बर, 2024 – चंडीगढ़ : पंजाब 1986 से पहले तक कैश सरप्लस राज्य था। मात्र तीन दशकों में राज्य की आर्थिक स्थिति पटरी से उतरकर कंगाली की ओर बढ़ गई है।
इस स्थिति के लिए पंजाब में आतंकवाद से लड़ने के लिए केंद्र सरकार से लिए गए ऋण पर ब्याज, आतंकवाद तथा पड़ोसी राज्यों को केंद्र सरकार से टैक्स होलीडे मिलने पर यहां के उद्योगों का वहां जाकर नया निवेश करना तथा एक के बाद एक सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों का मुफ्त की रेवड़ियां बांटना उत्तरदायी हैं।
आंतकवाद से लड़ने के लिए पंजाब ने केंद्र से लिया था कर्ज
1978 से लेकर 1995 तक पंजाब में आतंकवाद से लड़ने के लिए राज्य सरकार को पुलिस, पैरा मिलिट्री फोर्स व सेना पर भारी खर्च के लिए केंद्र सरकार से 3600 करोड़ रुपये का ऋण लेना पड़ा था। इस ऋण का पंजाब को कई वर्षों तब ब्याज चुकाना पड़ा।
1997 में गुजराल सरकार ने इस ब्याज को फ्रीज करके तथा बाद में मनमोहन सरकार ने केंद्रीय ऋण माफ करके पंजाब सरकार को राहत प्रदान की थी, परंतु तब तक राज्य सरकार ब्याज भरते-भरते अत्यधिक आर्थिक हानि झेल चुकी थी।
आतंकवाद समाप्त होने के बाद जब पंजाब आर्थिक रूप से संभलने के प्रयास कर रहा था तो केंद्र सरकार ने 2002 में पहाड़ी राज्यों के लिए टैक्स हॉलीडे घोषित कर दिया, जो 2016 तक बढ़ा दिया गया। आतंकवाद की आंच झेल चुके उद्योगों ने टैक्स हॉलीडे व अन्य सुविधाओं में सुनहरा अवसर देखते हुए पंजाब की जगह वहां विस्तार किया।
मुफ्त की रेवड़ियों को नहीं बंद कर पाए कैप्टन अमरिंदर
इससे पंजाब के औद्योगिक आधार पर बड़ा आघात पहुंचा। इस प्रकार, राज्य सरकार का खर्च बढ़ता गया, आमदनी घटती गई। इससे पहले कि इस स्थिति में कुछ सुधार होता, चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की शुरुआत कर दी। मात्र तीन महीने के लिए मुख्यमंत्री बनीं राजिंदर कौर भट्ठल ने सात एकड़ तक के किसानों को निशुल्क बिजली देने की घोषणा कर दी।
इसको काटने के लिए शिरोमणि अकाली दल ने सात एकड़ की जगह सभी किसानों को खेती के लिए निशुल्क बिजली देने की घोषणा कर दी। शिअद-भाजपा सरकार ने जिन मुफ्त की रेवड़ियों की शुरूआत की थी, कैप्टन ने उन्हें 2002 में बंद करना चाहा, परंतु वोट की राजनीति के फंसकर वह इसे दो वर्ष से अधिक बंद नहीं कर सके।
उन्होंने अनुसूचित जाति के उन लोगों, जिनका लोड एक किलोवाट था, को 100 यूनिट निशुल्क बिजली देने की घोषणा कर दी। 2007-17 में शिअद-भाजपा सरकार ने इसे 200 यूनिट कर दिया। 2017 में कैप्टन ने इंडस्ट्री को भी इसमें शामिल करते हुए पांच रुपये प्रति यूनिट देने की घोषणा कर दी।
निःशुल्क बिजली ने खराब की स्थिति
उसके बाद आम आदमी की सरकार ने घरेलू सेक्टर को बिजली सब्सिडी में शामिल करते हुए 300 यूनिट निशुल्क बिजली देने की घोषणा कर दी। इससे राज्य सरकार पर 7,800 करोड़ का और बोझ पड़ गया। अब 22 हजार करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी का कुल बोझ पावरकाम की कुल वार्षिक आय 40,800 करोड़ का 54 प्रतिशत है।
बिजली के अलावा, 2007 में शिअद-भाजपा गठबंधन सरकार ने 4 रुपये किलो आटा व बीस रुपये किलो दाल देने की योजना की घोषणा की थी। कुछ समय तक यह योजना चली। जब तक यह योजना बंद हुई तब तक पनसप, मार्कफैड व पंजाब एग्रो जैसी संस्थाओं पर कर्ज चढ़ गया।
2022 में राज्य सरकार ने एक श्वेतपत्र जारी करके बताया कि इस योजना का 2,274 करोड़ रुपया आज भी बकाया है। उसके बाद अमरिंदर सिंह की सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करके एक और ऐसा कदम उठाया। रूरल डेवलपमेंट बोर्ड ने 6,000 करोड़ का ऋण लेकर किसानों व मजदूरों का दो लाख तक का ऋण माफ किया। इसी प्रकार, महिलाओं को निशुल्क बस यात्रा करवाकर 750 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ डाल दिया गया है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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