ਰਜਿੰਦਰ ਬਾਂਸਲ
हाल ही में राहुल गांधी ने यू एस में ब्यान दिया कि भारत में सिख गुरुद्वारे में नहीं जा सकते, पगड़ी नहीं बांध सकते, कड़ा नहीं पहन सकते।
यदि हम ईमानदारी से धरातल पर इसका आकलन करें तो पूरे भारत में किसी भी सिख पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है ।और न ही कहीं इस प्रकार का कोई मामला सामने आया है।जहां किसी भी सिख बंधु को इस प्रकार की कोई मुश्किल आई हो।
कोई भी सिख बन्धु पूरे भारत में कहीं भी पगड़ी बांधे और कड़ा पहने शान से घूमता है। और हरेक भारतवासी विशेषकर हिन्दु समुदाय द्वारा उसे सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है।
राहुल गांधी के ऐसे ब्यान में कोई भी सच्चाई नहीं है। फिर राहुल गांधी के इस ब्यान के क्या मायने हैं।आखिर उन्होने ऐसा ब्यान क्यों दिया और किस आधार पर दिया। राहुल गांधी के पास इस विषय में जो भी प्रमाण हों उनकी इस बात का जो भी आधार हो उसे देश के सामने लाना चाहिये।
अगर मैं उनके इस ब्यान का आकलन करें तो मेरी नजर में उनका ये ब्यान सिख समुदाय को भारत व वर्तमान सरकार के खिलाफ भड़काने का एक कुत्सित प्रयास है। फिर उनकी देश में विषम परिस्थिति पैदा करने की ये सोच इन्दिरा गांधी कांग्रेस का पुराना हत्थकंडा है।
हम अतीत में जायें तो 1977 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो उसने पंजाब में अकाली जनसंघ ( वर्तमान में भाजपा) गठजोड़ से उनके वोट गणित को बिगाड़ कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिये पंजाब को प्रयोगशाला बनाया । जिससे अकाली भाजपा गठजोड़ आने वाले समय में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाये।
इतिहास गवाह है इसके लिये उसने संत भिंडरावाले को संतमत से राजनैतिक पथ पर”यू एस में राहुल का सिखों पर ब्यान एक घिनोना षडयन्त्र”
हाल ही में राहुल गांधी ने यू एस में ब्यान दिया कि भारत में सिख गुरुद्वारे में नहीं जा सकते, पगड़ी नहीं बांध सकते, कड़ा नहीं पहन सकते।
यदि हम ईमानदारी से धरातल पर इसका आकलन करें तो पूरे भारत में किसी भी सिख पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है ।और न ही कहीं इस प्रकार का कोई मामला सामने आया है।जहां किसी भी सिख बंधु को इस प्रकार की कोई मुश्किल आई हो।
कोई भी सिख बन्धु पूरे भारत में कहीं भी पगड़ी बांधे और कड़ा पहने शान से घूमता है। और हरेक भारतवासी विशेषकर हिन्दु समुदाय द्वारा उसे सम्मान की दृष्टी से देखा जाता है।
राहुल गांधी के ऐसे ब्यान में कोई भी सच्चाई नहीं है। फिर राहुल गांधी के इस ब्यान के क्या मायने हैं।आखिर उन्होने ऐसा ब्यान क्यों दिया और किस आधार पर दिया। राहुल गांधी के पास इस विषय में जो भी प्रमाण हों उनकी इस बात का जो भी आधार हो उसे देश के सामने लाना चाहिये।
अगर मैं उनके इस ब्यान का आकलन करें तो मेरी नजर में उनका ये ब्यान सिख समुदाय को भारत व वर्तमान सरकार के खिलाफ भड़काने का एक कुत्सित प्रयास है। फिर उनकी देश में विषम परिस्थिति पैदा करने की ये सोच इन्दिरा गांधी कांग्रेस का पुराना हत्थकंडा है।
हम अतीत में जायें तो 1977 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो उसने पंजाब में अकाली जनसंघ ( वर्तमान में भाजपा) गठजोड़ से उनके वोट गणित को बिगाड़ कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिये पंजाब को प्रयोगशाला बनाया । जिससे अकाली भाजपा गठजोड़ आने वाले समय में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाये।
इतिहास गवाह है इसके लिये उसने संत भिंडरावाले को संतमत से दल खालसा बनवा राजनैतिक पथ पर गतिमान किया। हालांकि 1980 आते आते केन्द्र में गतिमान किया। हालांकि 1980 आते आते केन्द्र में अपने अन्तर्द्वन्द से टूट गयी व कांग्रेस फिर से सत्ता पा गयी। अकाली जनसंघ गठजोड़ तोड़ने का कांग्रेसी कुप्रयास भी सफल रहा। जिससे अकाली व भाजपा ( अतीत की जनसंघ) दोनों बीस वर्ष तक सत्ता से दूर रहे। दोनों सत्ता में तब ही लौटे जब 1997 में दोनों में गठजोड़ हुआ। 1986 में सुरजीत सिंह बरनाला की अल्प समय की सरकार को भी कांग्रेस की मजबूरी या कोई प्रयोग कहा जा सकता है।
कांग्रेस के 1978 के दल खालसा के प्रयोग से 1980 में कांग्रेस पंजाब में सत्ता तो पा गयी। पर इसका परिणाम पंजाब के लिये घातक सिद्ध हुआ। पंजाब में आम हिन्दु सिख में सद्भावना के बावजूद पंजाब में हिन्दुओं व राजनैतिक नेताओं के कत्ल हुये। किसी राजनैतिक नेता या किसी अखबार के सम्पादक की हत्या पर तो कोई भी कह सकता है कि वो किसी विशेष विचार धारा या विचार धारा वाले व्यक्ति के विरोध में बोल रहा था। पर गलियों बाजारों में , बसों रेल गाड़ियों से उतार कर जो लोग इस लिये मारे गये कि वो हिन्दु थे। आज तक कोई भी समझ नहीं पाया कि इस तरह गलियों बाजारों में बसों व रेल गाड़ियों से निकाल कर मारे गये लोगों की आखिर गलती क्या थी।
कांग्रेस के इस कारनामें का नतीजा आप्रेशन ब्लू स्टार, इन्दिरा गांधी की हत्या, इन्दिरा की हत्या के बाद देश के अधिकतर हिस्सों में सिखों की नृशंस हत्यायें । “यदि राहुल गांधी अपने कथन को इन्दिरा की हत्या के बाद पंजाब से बाहर सिखों पर कुछ दिन चले जुल्म से जोड़ें तो उनकी बात को हर कोई सही मान लेगा।”
हमें पंजाब में हिन्दु सिख सद्भावना को साधुवाद देना चाहिये कि इदिरा की हत्या के बाद भी पूरे पंजाब में हिन्दु सिख दो समुदायों के रुप में कभी भी आमने सामने हो कर नहीं लड़े। इसके आप्रेशन ब्लैक थंडर हुआ। कांग्रेस 1978 के प्रयोग से कभी कुछ गुमराह कहिये या उग्र सोच वाले कहिये या कुछ और जिन्होने एक बार हथियार उठा लिये थे ।उनके द्वारा पंजाब में आम हिन्दु, राजनैतिक नेताओं जिनमें अकाली दल के बड़े नेता सन्त हरचन्द सिंघ लोंगोवाल, जगदेव सिंघ खुड्डियां, कांग्रेस के सिटिंग सी एम बेअंत सिंघ के साथ भाजपा के भी कई नेता कांग्रएस उस प्रयोग के दुष्परिणाम में मारे गये।
इसके साथ बहुत से पुलिस अफसर उनके परिवार जन के रूप में अनेकों पंजाबी व जिन लोगों ने हथियार उठा ये सारी हत्यायें कि पुलीस मुकाबलों में अपनी जान गंवाने वाले वो सब पंजाबी ही थे।
कुल मिला कर पंजाब ने कांग्रेस के उस कारनामें कई कीमत हजारों पंजाबियों की जान गंवा कर चुकाई। कांग्रेस को भी इसकी कीमत अपने आप में आयरन लेडी कही जाने वाली भारत की प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी व पंजाब के अपनी पार्टी के सिटिग मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की जान गंवा कर चुकानी पड़ी।
ये तो रही पंजाब की बात अब जरा तमिलनाडु चलते हैं। वहां पर कांग्रेस एमरजैन्सी के पहले से ही सत्ता गंवा चुकी थी। जहां बाकी दक्षिण कांग्रेस का अभेद्य किला था जो 1977 में भी उसके लिए मजबूत बना रहा ।वहीं तामिल नाडू में उसकी दाल नहीं गल रही थी। 1977 की बुराई हार के बाद जहां कांग्रेस 1980 में पूरे उत्तर व दक्षिण में मजबूत हुई ।तामिलनाडु में कांग्रेस तब भी कमजोर स्थिति में थी। हालांकि 1976 में श्री लंका में गठित लिट्टे को बनाने में कांग्रेस का कोई हाथ था कहीं भी कोई इसका पुख्ता सबूत नहीं है। पर राजीव गांधी की श्रीलंका यात्रा में उन्हे गार्ड आफ आनर की परेड के निरिक्षण के समय सिंहली सैनिक द्वारा उन पर बन्दूक के बट्ट से किया हमला इस बात का परिस्थिति जनक प्रमाण कहा जा सकता है कि श्री लंका में लिट्टे को खड़ा करने में भारत की कांग्रेस सरकार का हाथ है। इसके बाद लिट्टे को खत्म करने को राजीव सरकार श्री लंका में भारतीय सेना भेजती है।
इसका नतीजा भी पंजाब में अपने ही प्रयोग को खत्म करने को ब्लूस्टार आप्रेशन के बाद भड़की जनभावनाओं से इन्दिरा की हत्या की तरह लिट्टे द्वारा राजीव गांधी की हत्या के रूप में निकला। ये तो शुक्र है कि तामिलनाडु व केन्द्र में कांग्रेस की सरकार नहीं थी।व पूरे भारत तमिल बहुत कम थे व सिखों की तरह उनकी कोई विशेष पहचान भी नहीं थी। नहीं तो इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं हो सकती कि अगर केन्द्र व तामिलनाडु में कांग्रेसी सरकार होती व तमिलों की कोई खआस पहचान होती तो 1984 के दंगों जैसा माहौल 100% बनने के चांस होते।
2014 में सत्ता से बाहर होने पर कांग्रेस व उसके सहयोगियों ने कभी लैंड रिफॉर्म कभी सी ए ए के खिलाफ आंदोलन , कभी एस सी – एस टी एक्ट में दोषी की गिरफ्तारी की अनिवार्यता खत्म करने के सुप्रीम कोरट के फैसले पर आन्दोलन के जरिये देश को अनरैस्ट करने की कोशिश की। लेकिन उसे इसमें कोई ज्यादा कामयाबी नहीं मिली।
कांग्रेस ने एक बार फिर कृषि बिलों के विरोध में पंजाब व हरियाणा को आगे कर आंदोलन खड़ा किया। जिसमें पंजाब के किसानों का वर्चस्व रहा। पंजाब में भाजपा अकाली गठजोड़ टूटा । एम सी चुनावों में जगह जगह अकाली भाजपा को साफ कर एक तरफआ कांग्रेसी बोर्ड बने। पर कांग्रेस की ये खुशी पंजाब में टिकाऊ नहीं रही। विधानसभा सभा चुनाव में जहां भाजपा अकाली दल के अल्ले पल्ले कुछ नहीं रहा। वहां कांग्रेस भी बुरी तरह हारी।
2024 लोक सभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा उत्तर भारत में केवल पंजाब में 13 में से 10 सीटें जीत उसका स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा रहा। शायद राहुल व उनके सलाहकारों को लगा होगा कि पंजाब वाला फार्मूला ज्यादा हिट है। क्योंन किसान आंदोलन में पंजाब की आक्रमकता व लगनशीलता कओ देखते हुए एक बआर फिर पंजाबियों विशेषकर सिख भावनाओं को भड़काया जाये। सो मेरे आकलन में राहुल गांधी का सिखों से भेदभाव का भ्रामक ही नहीं 100% झूठा ब्यान वैसे ही प्रयोग की नवीनतम कड़ी है। जो कांग्रेस देश में अनरैस्ट फैला पुन: सत्ता प्राप्ति के लिए करती रही है।
मेरी राहुल गांधी जी व ऐसे ब्यानों के लिये उनके सलाहकारों से विनम्र निवेदन है कि अतीत में हुये ऐसे प्रयोगों से देश व उनके नेताओं के हुये जानी नुक्सान का आकलन जरूर कर लें। सच्च हो तो उसके लिए आवाज उठाना प्रत्येक नेता का धर्म है। पर झूठी व आधारहीन बातें अंतर राष्ट्रीय पटल पर फैलाना न तो देश के हित में है ।न ही किसी शशसमुदाय के हित में है ।और न ही ऐसी बातें फैलाने वाले के हित में है।
ऐसी बातें करने वाले याद रखें आग लगाना जितना आसान है।आग बुझाना उतना ही मुश्किल है।आग लगाने वाले कभी भी सुरक्षित नहीं रहते। पाकिस्तान अफगानिस्तान जैसे अनेकों जीवंत उदाहरण हमारे साहमने हैं।
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