अंशु सिंह
कोरोना की दूसरी लहर में जब बीमारी ने 22 वर्षीय शोभित (बदला हुआ नाम) को अपनी चपेट में लिया, तो वह ओडिशा में एक क्वारंटाइन सेंटर में रहने को मजबूर हो गए। शुरू के दो-चार दिनों के बाद समय काटना मुश्किल होने लगा। उसी दौरान उनके पास ‘रे़डियो वालंटियर’ बनने का एक प्रस्ताव आया। जानकारी इकट्ठा करने के बाद शोभित को वह आइडिया इतना पसंद आया कि अगले कुछ दिनों में उन्होंने फोन से ही अपने अनुभवों को रिकार्ड कर उसे ‘रेडियो नमस्कार’ की टीम को भेजना शुरू कर दिया। जब लोगों ने सीधे क्वारंटाइन सेंटर से प्रभावितों को सुनना शुरू किया तो समाज में फैली तमाम भ्रांतियों से पर्दा उठने लगा। आम लोगों में जागरूकता आई। स्वयंसेवी संगठन ‘यंग इंडिया’ द्वारा शुरू किए गए ‘रेडियो नमस्कार’ के अध्यक्ष एन अंसारी बताते हैं कि जब लोग अपने बीच के किसी शख्स को सीधे सुनते हैं तो उनमें एक भरोसा जगता है। यही वजह थी कि रेडियो वालंटियर्स की हमारी मुहिम काफी कामयाब रही। इसमें हमने कोणार्क जिले की 42 पंचायतों में स्थित क्वारंटाइन सेंटर से रेडियो वालंटियर्स की मदद से लोगों तक सीधी जानकारियां उपलब्ध करायीं। हमारे साथ आज 125 श्रोताओं का ग्रुप है। इसके अलावा, कोरोना काल में हमने स्थानीय प्रशासन एवं अन्य सामुदायिक रेडियो के साथ मिलकर टीकाकरण के प्रति जागरूकता लाने समेत अनेक कार्यक्रम किए। कई अभियान चलाए। इनके ‘जन सूचना नामक’ प्रोग्राम को भी काफी पसंद किया जाता है, जिसमें सरकार की योजनाओं, नागरिक अधिकारों के प्रति जानकारी दी जाती है। स्थानीय उड़िया एवं तेलुगु भाषा में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से लोगों का सीधा जुड़ाव हो पाता है।
शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य से जुड़े शो
हम सब जानते हैं कि महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों के बच्चों के लिए पढ़ाई जारी रख पाना कितना चुनौतीपूर्ण हो गया था। तब सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों के अलावा कम्युनिटी रेडियो ने एक अहम भूमिका निभायी। जैसे हरियाणा के नूंह जिले से संचालित सामुदायिक रेडियो ‘अल्फाज-ए-मेवात’ ने ‘रेडियो स्कूल’ नाम से एक प्रोग्राम चलाया, ताकि ग्रामीण तबके के गरीब बच्चों तक शिक्षा पहुंचायी जा सके। इसके अलावा, रेडियो पर हेल्थ काउंसिलिंग से जुड़े कार्यक्रम किए गए।
‘सावधान’ नामक शो के जरिये फेक न्यूज के प्रति लोगों को जागरूक किया गया। इतना ही नहीं, एक टोल फ्री नंबर जारी किया गया, जिस पर आसपास के करीब 225 गांवों के लोग अफवाहों के अलावा अपनी अन्य जिज्ञासाओं को शांत कर सके। महामारी के दौरान ज्यादातर प्रोग्राम स्थानीय समुदाय से मिलने वाले फीडबैक संदेश को रिकार्ड कर तैयार किए गए। इसी प्रकार, ‘गुड़गांव की आवाज’ सामुदायिक रेडियो हर हफ्ते ‘बावरा मौसम’ नाम से एक प्रोग्राम करता है, जिसमें किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर बातें होती हैं। स्टोरीटेलिंग के जरिये गंभीर समस्याओं का समाधान निकाला जाता है। इसी प्रकार, ‘हम होंगे कामयाब’ शो के माध्यम से स्टूडेंट्स को करियर से संबंधित टिप्स दिए जाते हैं।
कैंपस रेडियो के जरिये जनजागरूकता
दोस्तो, कम्युनिटी रेडियो मुख्यत: विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों, कृषि विज्ञान केंद्रों एवं शैक्षिक संस्थानों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय द्वारा संचालित रेेडियो को ‘कैंपस रेडियो’ कहा जाता है। इन सामुदायिक रेडियो को दस से पंद्रह किलोमीटर के दायरे में सुना जा सकता है। इसे छोटा एफएम रेडियो भी कह सकते हैं। जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन के फाइनल ईयर के स्टूडेंट एवं आरजे प्रणव भोपाल स्थित ‘लेकसिटी वायस’ कैंपस रेडियो से जुड़े हैं, जो यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित है।
बीते डेढ़ वर्षों में इन्होंने कोरोना से संबंधित अनेक प्रोग्राम तैयार किए हैं। इसमें ‘कोरोना संग्राम सेनानी’ सीरीज में जहां उन्होंने कोरोना वारियर्स के इंटरव्यू किए, वहीं ‘वर्क फ्राम एक्सपर्ट डाक्टर्स अवेयरनेस कैंपेन’ के तहत कोविड के कारण उपजी मानसिक एवं भावनात्मक समस्याओं को लेकर डाक्टरों से बात की। इसके अलावा, भोपाल म्यूनिसिपल कारपोरेशन के साथ मिलकर स्वच्छता संबंधी अभियान भी चलाया।
बताते हैं प्रणव,
‘पूरे लाकडाउन के दौरान हमने स्मार्टफोन के साथ काम किया। हमारी पूरी कोशिश रही कि लोगों तक सही सूचनाएं पहुंचाएं। साथ ही, इस बात पर जोर दिया कि लोग बदले हालात में कैसे जीवन को सकारात्मक तरीके से जीएं। लाइव फोन इन कार्यक्रम में श्रोताओं ने हमें बताया भी कि कैसे उन्होंने मुश्किल दौर का सामना किया और उससे बाहर निकले। अपनी बात करूं तो इस महामारी के दौर में कैंपस रेडियो ने मुझे भी एक नई पहचान दी है। काफी कुछ सीखने को मिला है। आत्मविश्वास आया है।’
सौजन्य : दैनिक जागरण
test