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श्रीगुरु रामदास जयंती

October 11, 2022 By Guest Author

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guru ramdas jayanti 2021 about the significance and history

श्री गुरु रामदास जी का प्रकाश 24 सितम्बर 1534 ई. को चूना मंडी लाहौर में माता श्री दया कौर जी की कोख से पिता श्री हरिदास जी के गृह में हुआ। आपके बचपन का नाम जेठा जी था। बचपन में ही आप जी के माता-पिता का साया सिर से उठ गया। आप जी के ननिहाल बासरके गिल्लां गांव में थे जो श्री गुरु अमरदास जी का पैतृक गांव है।

ननिहाल घर में भी गरीबी थी परन्तु नाना-नानी उन्हें अपने साथ गांव बासरके ही ले आए। अपने नाना-नानी जी का हाथ बंटाने के लिए जेठा जी घुंगनियां बेचने लगे। इस तरह जो कुछ मिलता उसके साथ घर का गुजारा होता परन्तु फिर भी जब कोई जरूरतमंद आता तो जेठा जी उसकी मदद जरूर करते और अपनी घुंगनियां साधु-संतों को मुफ्त में ही खिला देते थे। गुरु अमरदास जी गोइंदवाल साहिब में निवास करते थे और बासरके की संगत उनके दर्शनों के लिए अक्सर गोइंदवाल साहिब जाया करती थी। एक बार अपनी नानी जी के साथ जेठा जी भी गोइंदवाल साहिब में गुरु जी के दर्शनों के लिए चले आए। फिर वह वापस नहीं लौटे। वहां रह कर ही गुरु घर की सेवा में समर्पित हो गए तथा गुरु घर की सेवा के साथ-साथ घुंगनियां बेचना भी जारी रखा।

सिखों के चौथे गुरु श्री राम दास जी की ऐसी रही जीवन यात्रा। – TheJanmat- Hindi, English Latest News, Political News, Opinions, Health Tips

गुरु की रहमतों को गुरु ही जानता है। जल्दी ही जेठा जी गुरु अमरदास जी के बहुत ही चहेते बन गए और गुरु जी आप जी को हमेशा ही राम दास कह कर पुकारते। सोढी रामदास का यह नाम गुरु का दिया हुआ है और आज भी सोढी सुल्तान सतगुरु दुनिया को रहमतें बांट रहे हैं। गुरु अमरदास जी की बड़ी बेटी बीबी दानी जी की शादी भाई रामा जी के साथ कर दी गई थी और छोटी बेटी बीबी भानी जी की आयु भी शादी के योग्य हो गई थी। गुरु अमरदास जी की धर्मपत्नी माता राम कौर जी ने एक दिन गुरु जी को कहा कि बीबी भानी जी के लिए योग्य वर ढूंढा जाए क्योंकि बेटी बड़ी हो गई है। इसी दौरान जेठा जी घुंगनियां बेच कर उधर आए तो माता राम कौर जी ने जेठा जी का सुंदर स्वरूप देखकर कहा कि लड़का ऐसा होना चाहिए।

गुरु अमरदास जी ने तुरंत अपने उस प्यारे शागिर्द जेठा जी को गले लगाते हुए कहा कि इसके जैसा तो केवल यह ही है। बीबी भानी जी का रिश्ता जेठा जी के साथ तय कर दिया गया और 22 फागुन संवत 1610 (1553 ई.) को शादी भी कर दी। आप जी के गृह में बीबी भानी जी की कोख से तीन सुपुत्र बाबा  पृथी चंद जी (पृथिया), बाबा महांदेव जी और (श्री गुरु) अर्जुन देव जी प्रकट हुए।

विवाह के बाद में भी जेठा जी श्री गोइंदवाल जी में ही रहते रहे क्योंकि गुरु अमरदास जी ने भाई रामा जी को भी घर जमाई ही रखा हुआ था।

अकबर के दरबार में - In Akbar's court (Guru Ram Das Ji) - श्री गुरु राम दास जी - धार्मिक ज्ञान

आखिर गुरु अमरदास जी ने आप जी को गुरगद्दी के योग्य जानते हुए 1 सितम्बर 1574 (मुताबिक भाद्रों सुदी 15, 2 आश्विन संमत 1631) को गुरु नानक देव जी के घर का चौथा वारिस बनाकर नाम रामदास रख दिया। गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी की आज्ञा पाकर अमृतसर साहिब में सबसे पहले सरोवर संतोखसर की खुदवाई करवाई और बाद में गुरु जी की ही आज्ञा के अनुसार अमृतसर नगरी की नींव रखी। इसके लिए 500 बीघा जमीन तुंग के जमींदारों से खरीदी गई। अमृतसर गजटियर के अनुसार 1577 ईस्वी को गुरु जी ने अमृतसर वाली जगह और साथ लगती 500 बीघा जमीन अकबर से जागीर में ली और उसके बदले  तुंग गांव के जमीदारों को, जो उस जमीन के मालिक थे, 700 अकबरी रुपए दिए।

गुरु जी ने सरोवर खुदवाया और अमृतसर शहर की नींव रखी जिसको उस समय पर ‘चक्क गुरु’, ‘चक्क रामदास’ या ‘रामदासपुरा’ कहते थे। उन्होंने 52 अलग-अलग तरह के काम-धंधों वाले लोगों को वहां रहने के लिए और गुरु जी की मंडी में, जिसको ‘गुरु का बाजार’ कहते थे, अपने कारोबार खोलने के लिए बुलाया। समय के साथ यह शहर उत्तरी भारत में व्यापार का सब से बड़ा केंद्र बन गया।’’

गुरु जी ने गुरुसिखों के लिए नित्यनेम कायम किया। आप जी ने अमृत सरोवर की तैयारी आरंभ की जिसे बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने संपूर्ण करके बीच श्री हरमंदिर साहिब जी की रचना की। गुरु राम दास जी ने सूही राग में चार लांव की रचना की। आज भी प्रत्येक सिख की शादी इन चार लांवों का पाठ करने के बाद ही संपन्न होती है। आप जी ने 30 रागों में वाणी की रचना की जिनमें पिछले गुर साहिबान की बाणी से कई नए राग भी थे और विशेष कर आप जी ने छंद भी रचे। आप जी अमृतसर साहिब से वापस श्री गोइंदवाल साहिब में चले गए जहां 1 सितम्बर 1581 ईस्वी (मुताबिक भादों सुदी 3, आश्विन 2, साल 1638) को आप जी अपने छोटे सुपुत्र गुरु अर्जुन देव जी को गुरुगद्दी सौंप कर ज्योति-जोत समा गए।

आज श्रीगुरु रामदास का 448वां प्रकाश पर्व:

स्वर्ण मंदिर और एयरपोर्ट सजा; कीर्तन दरबार लगेगा; जलो सजाए जाएंगे; दर्शनार्थ श्रद्धालु आएंगे

11 अक्टूबर, 2022 – अमृतसर : गुरु नगरी अमृतसर को बसाने वाले और स्वर्ण मंदिर का निर्माण करवाने वाले श्री गुरु रामदास जी का आज 448वां प्रकाश पर्व है। इस मौके पर पूरी गुरु नगरी और स्वर्ण मंदिर को फूलों से सजाया गया है। उनके नाम पर बने एयरपोर्ट को भी सजाया गया है। आज पूरा दिन स्वर्ण मंदिर में कीर्तन दरबार होगा और जलो सजाए जाएंगे। देश-विदेश से आने वाली संगत के लिए भी खास प्रबंध किए गए हैं।

सुंदर लाइटों व फूलों से सजा गोल्डन टेंपल।

चौथे गुरु श्री रामदास जी का जन्म 1534 में लाहौर के चूना मंडी इलाके में हुआ था। अमृतसर शहर गुरुजी ने ही बसाया था। 5 साल की उम्र में माता-पिता को खोने के बाद वह अपनी नानी के पास ही रहे। तीसरे गुरु अमरदास जी ने उन्हें अपने साथ रख लिया। तीसरे गुरु अमरदास जी ने उन्हें गोइंदवाल साहिब में बाउली (कुएं) के निर्माण का कार्य सौंपा, जो 1559 में पूरा हुआ। इसके बाद उन्होंने 1564 में गुरु जी की आज्ञा लेकर ‘अमृतसर’ का निर्माण शुरू कराया।

तीन गांवों के जमींदारों से ली गई थी जमीन

श्री गुरु रामदास जी ने अमृतसर के आसपास बसे 3 गांवों तुंग, गिलवाली और गुमटाला के जमींदारों से जमीन खरीदी और सरोवर की खुदाई का काम 6 नवंबर 1573 को शुरू करवाया था। तब बाबा बुड्‌ढा जी के कहने पर श्री गुरु रामदास जी ने अपने हाथों से पहला टक लगाया। इस स्थान का नाम ‘गुरु का चक्क’ रखा गया, जिसे आज अमृतसर के नाम से जाना जाता है। गुरु रामदास जी ने यहां 52 रोजगार भी शुरू करवाए थे।

रंग बिरंगे फूलों से सजा श्री अकाल तख्त साहिब। स्थान जहां श्री गुरु रामदास जी बैठ सरोवर का निर्माण देखते थे।

रोजगार के नाम पर इलाकों का नाम

गुरु रामदास जी ने गोल्डन टेंपल के सरोवर के निर्माण के साथ ही आसपास 52 रोजगारों को बसाया था। आज भी उनके द्वारा बसाए गए बाजारों के नाम काम के अनुसार हैं। गोल्डन टेंपल के आसपास बसे नमक मंडी, आटा मंडी, घी मंडी आदि वे बाजार हैं, जिन्हें गुरु रामदास जी ने ही बसाया था।

स्थान, जहां बाबा दीप सिंह ने अपना शीश अर्पित किया था। फूलों की मालाएं बनाते हुए संगत। सुंदर लाइटों से जगमगाता गोल्डन टेंपल।

अकबर भी माथा टेक कर गया था गुरु नगरी में

कहा जाता है कि बादशाह अकबर भी गोल्डन टेंपल के दर्शानों के लिए आया था। वह गोल्डन टेंपल के दर्शन करके इतना खुश हुआ था कि तुंग व सुलतानविंड गांव की कुछ और जमीन चक्क रामदास (अमृतसर) के नाम कर दी थी। कर भी माफ करने का पटटा लिखवा दिया था। कुछ कीमती हीरो के जवाहरात भी भेंट किए थे।

कुरीतियों का विरोध किया

श्री गुरु रामदास जी ने ही सिख धर्म में विवाह को सरल किया और आनंद कारज की शुरुआत की। उन्होंने चार लावों की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने गुरु नानक देव जी की लंगर प्रथा को आगे बढ़ाया और लोगों को अंधविश्वास और कुरीतियों से दूर करने में मदद की।

सौजन्य : दैनिक भास्कर


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