Srinivasa Ramanujan Death Anniversary:
गणित के जादूगर थे रामानुजन, मैथ्स के अलावा सभी विषय में हो गए थे फेल
26 अप्रैल, 2023 – नई दिल्ली : Srinivasa Ramanujan Death Anniversary 2023: अनंत की खोज करने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की आज 102वीं पुण्यतिथि है। रामानुजन ऐसे महान गणितज्ञ थे, जिन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन काल के दौरान विश्व में भारत का परचम लहराया था। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में ही त्रिकोणमिति में महारत हासिल की थी और खुद से बिना किसी की सहायता के कई प्रमेय यानी थ्योरम्स को भी विकसित किया था। आइए जानते हैं भारत के महान गणितज्ञ की जीवनी, शिक्षा और उपलब्धियां।
साल 1887 में हुआ जन्म
गणित के जादूगर कहे जाने वाले श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर साल 1887 में तमिलनाडु के इरोड गांव में हुआ था। उनका बचपन अन्य बच्चों जैसा सामान्य नहीं था। वह 3 साल की उम्र तक बोल नहीं पाए थे, लेकिन वह अपनी प्रतिभा के धनी थे। महान गणितज्ञ की पढ़ाई तमिल भाषा से हुई थी, हालांकि शुरू में पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था। लेकिन आगे जाकर प्राइमरी परीक्षा में उन्होंने पूरे जिले में प्रथम स्थान हासिल किया था।
13 साल की उम्र में त्रिकोणमिति को किया हल
वह आगे की पढ़ाई के लिए पहली बार उच्च माध्यमिक स्कूल में गए। वहीं से ही उन्होंने अपने गणित की पढ़ाई की शुरुआत की और इसके बाद से ही वह गणित विषय में महारत हासिल करते चले गए। सातवीं कक्षा में पढ़ाई करने के दौरान ही उन्होंने बीए के छात्र को गणित भी पढ़ाई थे। उन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में त्रिकोणमिति ( Trigonometry) को हल कर दिया था। इसे हल करने में बड़े से बड़े विद्वान भी असफल हो जाते थे।
5000 से अधिक प्रमेय को किया सिद्ध
वहीं, उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में G.S.Carr. द्वारा कृत “A synopsis of elementary results in pure and applied mathematics” की 5000 से अधिक प्रमेय को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था। उन्हें गणित के अलावा किसी अन्य विषय में इंटरेस्ट नहीं था। महान गणितज्ञ के साथ ऐसा भी हुआ था कि 11वीं कक्षा में गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए थे, तो अगले साल प्राइवेट परीक्षा देकर भी वह 12वीं पास नहीं कर पाए।
आर्थिक तंगी करना पड़ा सामना
श्रीनिवास रामानुजन को भी अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा। बारहवीं की पढ़ाई के बाद उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। नौकरी की तलाश में उनकी मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री वी रामास्वामी अय्यर से हुई। वह भी गणित के बहुत बड़े विद्वान थे और उन्होंने रामानुजन की प्रतिभा को अच्छे से पहचाना। उन्होंने रामानुजन के लिए ₹25 की मासिक छात्रवृत्ति की व्यवस्था की।
साल 1911 में प्रकाशित हुआ पहला शोधपत्र
इसके बाद साल 1911 में रामानुजन का प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” शोधपत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ। इसी बीच, लेटर के जरिए रामानुजन ने कुछ फॉर्मूले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएच हार्डी को भेजें।
“जोहरी को हुई हीरे की पहचान”
हार्डी रामानुजन से इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने तुरंत रामानुजन को लंदन बुलाने के लिए आमंत्रित किया। हार्डी ने गणितज्ञों की योग्यता जांचने के लिए 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया। इस परीक्षा में हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए। महान गणितज्ञ डेविड गिलबर्ट को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए, इसलिए हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ कहा था। रामानुजन हार्डी के मेंटोर बने। दोनों ने मिलकर गणित की कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। 1729 नंबर हार्डी-रामानुजन नंबर के रूप में काफी प्रसिद्ध है। उनके रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया।
“जोहरी को हुई हीरे की पहचान”
हार्डी रामानुजन से इतने प्रभावित हो गए कि उन्होंने तुरंत रामानुजन को लंदन बुलाने के लिए आमंत्रित किया। हार्डी ने गणितज्ञों की योग्यता जांचने के लिए 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया। इस परीक्षा में हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए। महान गणितज्ञ डेविड गिलबर्ट को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए, इसलिए हार्डी ने रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ कहा था। रामानुजन हार्डी के मेंटोर बने। दोनों ने मिलकर गणित की कई रिसर्च पेपर पब्लिश किए। 1729 नंबर हार्डी-रामानुजन नंबर के रूप में काफी प्रसिद्ध है। उनके रिसर्च को अंग्रेजों ने भी सम्मान दिया।
- महान गणितज्ञ ने अपने पूरे जीवन में करीब 3900 थ्योरम तैयार की। साल 1918 में महान गणितज्ञ को एलिप्टिक फंक्शंस और संख्याओं के सिद्धांत पर अपने रिसर्च के लिए रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया।
- रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन से कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ। इसी साल अक्टूबर में वे ट्रिनिटी कॉलेज के फलों चुने जाने वाले पहले भारतीय भी बने थे। इसके बाद रामानुजन 1919 में भारत लौट आए।
1919 में लौटे भारत
रामानुजन को टीबी की बीमारी होने के कारण उन्हें 1919 में भारत लौटना पड़ा। दिन पर दिन उनका स्वास्थ्य खराब होता चला गया। लेकिन इसी दौरान रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोध पत्र भी लिखा था। जिसका उपयोग गणित के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है, जो कि अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय भी है।
26 अप्रैल 1920 को ली अंतिम सांस
बीमारी के चलते 33 साल की उम्र में 26 अप्रैल 1920 को उन्होंने कुंभकोणम में अपनी अंतिम सांस ली। श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी” 1991 में प्रकाशित हुई थी। 2015 में इसी पर आधारित फिल्म द मैन हू न्यू इनफिनिटी रिलीज हुई थी। फिल्म में देव पटेल ने उनका किरदार निभाया था। रामानुजन के बनाए हुए ढेरों ऐसे थ्योरम हैं जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं है। इसलिए उन्हें आज भी गणित के जादूगर के रूप में जाना जाता है। आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उनको शत-शत नमन करते हैं।
सौजन्य : दैनिक जागरण
test