मान्यता ऐसी की दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़े 4 बड़े गुरुद्वारे
05 नवम्बर, 2022 – लुधियाना : गुरूद्वारों की बात चलते ही सबसे पहले हमारे मन में गोल्डन टेंपल यानी हरिमंदिर साहिब का नाम आता हैं। मगर इसके अलावा भी ना सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे भारत में ऐसे कई गुरूद्वारे हैं जो अपनी आस्था और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं।
इन गुरूद्वारों में आत्मिक सुकून के साथ-साथ सिख धर्म के इतिहास के बारे में भी जानकारी मिलती है। वहीं हम ऐसे चार गुरूद्वारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो श्री गुरु नानक देव जी से संबंधित हैं। यह गुरुद्वारे देश ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध हैं और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां नतमस्तक होने पहुंचते हैं।
गुरुद्वारा श्री बेर साहिब (श्री सुल्तानपुर लोधी)
गुरुद्वारा बेर साहिब सुल्तानपुर लोधी नामक कस्बे में स्थित है। सुल्तानपुर लोधी, कपूरथला जिले का एक प्रमुख नगर है। तथा भारत के पंजाब राज्य में स्थित है। यह स्थान अपने ऐतिहासिक सिख महत्व के कारण भक्तों में काफी प्रसिद्ध है बड़ी संख्या में भक्तगण यहां दर्शन के लिए आते है। सुल्तानपुर लोधी में रहने के दौरान गुरु नानक देव जी प्रतिदिन वेई नदी पर स्नान तथा भजन बंदगी करने के लिए जाते थे। वहां पर उन्होंने एक बेर का पौधा लगाया था, जो वृक्ष के रूप में अभी भी है। यहां पर बाबा जस्सा सिंह आहलूवालिया सिक्ख पंथ के महान जरनैल जो कपूरथला रियासत के हाकिम थे, ने गुरुनानक देव जी की याद में एक धर्मस्थान बनवाया था। इस स्थान का नया भवन 1938 में बनना शुरू हुआ तथा 1942 में इसका निर्माण पूरा हुआ। यह भवन संगमरमर का बना हुआ है। यही गुरुद्वारा बेर साहिब के नाम से प्रसिद्ध है।
पावन नगरी सुल्तानपुर लोधी स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री बेर साहिब श्री गुरु नानक देव जी का भक्ति स्थल होने के कारण आस्था का केंद्र बना हुआ है। गुरु नानक साहिब रोजाना सुबह बेई नदी में स्नान कर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाते थे। इस स्थान पर आज श्री भौरा साहिब बना हुआ है। मान्यता है कि गुरु जी ने अपने भक्त खरबूजे शाह के निवेदन पर बेर के पौधे को यहां लगाया था। 550 साल बाद भी बेर हरीभरी है। सुल्तानपुर लोधी की पवित्र नगरी जहाँ गुरु नानक देव जी ने पहली बार परमात्मा का तथा भाईचारे का उपदेश दिया, एक महान तीर्थ बन गया। और आज यह स्थान गुरुद्वारा बेर साहिब के नाम से जगत प्रसिद्ध है। जहाँ हजारों किया संख्या में श्रृद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है।
श्री ननकाना साहिब
ननकाना साहिब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। यह लाहौर के दक्षिण पश्चिम से लगभग 80 किलोमीटर और फैसलाबाद के पूर्व से 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 550 वर्ष पहले यहां सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी का जन्म हुआ था और पहली बार उन्होंने यहीं उपदेश दिया था। ननकाना साहिब सिखों के लिए उच्च ऐतिहासिक और धार्मिक मूल्य का एक शहर है। ननकाना साहिब का जन्म तलवंडी गांव में हुआ था। ननकाना साहिब गुरुद्वारा गुरु नानक के जीवन के दौरान कई चमत्कारी घटनाओं और कई ऐतिहासिक गुरुद्वारों की जगह है। यहां पर लगभग 18,750 एकड़ जमीन पर गुरुद्वारे है। ये जमीन तलवंडी गांव के एक मुस्लिम मुखिया राय बुलार भट्टी ने गुरु नानक को दी थी। ननकाना साहिब क्षेत्र शुरुआत में शेखपुरा जिले का एक तहसील था। 2005 में यह ननकाना साहिब नाम से अलग जिला बना।
श्री गुरु नानक जी का जन्म स्थान होने के कारण यह जगह सबसे पवित्र स्थलों में से एक मानी जाती है। ननकाना साहिब में जन्मस्थान समेत 9 गुरुद्वारे हैं, जिसमें श्रद्धालुओं की आस्था है। ये सभी गुरु नानक देव जी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़े हैं। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते हैं।
श्री करतारपुर साहिब
पाकिस्तान के नारोवाल जिले में बसा करतारपुर पाकिस्तान स्थित पंजाब में आता है।यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है।जहां पर आज गुरुद्वारा है वहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली।यह गुरुद्वारा रावी नदी के करीब स्थित है और डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी चार किलोमीटर है। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। श्राइन भारत की तरफ से साफ नजर आती है।
मान्यता के अनुसार
- जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह कुछ फूल रह गए। इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई।
- वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई।
- गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था।यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
- इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब (Gur Granth Sahib) नाम दिया गया,जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।
इस स्थान पर गुरु नानक देव ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए थे। कहा जाता है कि यहां गुरु नानक जी ने 16 सालों तक अपना जीवन व्यतीत किया। इसलिए इस गुरुद्वारे की काफी मान्यता है। करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है।
लुधियाना स्थित गुरुद्वारा गऊ घाट
गुरु नानक देव जी अपने शिष्यों के साथ जहां-जहां गए वहां लोगों को सत्कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहे। जो उनकी शरण में आया उसे शरण दी और उसके कष्टों को दूर करते गए। अपने भ्रमण के दौरान श्री गुरुनानक देव जी लुधियाना शहर भी पहुंचे और उन्होंने सतलुज के किनारे विश्राम किया। इसे बाद में गुरुद्वारा गऊघाट का नाम दिया गया। यह स्थान आज भी लुधियानवियों के लिए आस्था का केंद्र है और हर बैसाखी पर यहां मेला लगता है और बाकायदा लोग सरोवर में स्नान करते हैं। गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर गुरुजी ने आधे दिन तक विश्राम किया था और उसके बाद यहां से ठक्करवाल के लिए चले गए।
गुरुनानक देव जी अपने शिष्यों के 1515 ई में लुधियाना आए और गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर विश्राम करने लगे। उस वक्त लुधियाना पर जलाल खां लोधी शासन करते थे और उस दौर में गौ हत्या चरम पर थी। तब सतलुज दरिया लगातार लुधियाना शहर की तरफ कटाव कर रहा था और दरिया कटाव करते हुए बुड्ढा दरिया वाली जगह तक पहुंच गया था। वहां से शहर कुछ दूर रह गया था। जलाल खां को पता चला कि गुरुनानक देव जी वहां पर विश्राम कर रहे हैं तो वह उनके पास पहुंच गया और उसने गुरुजी से सतलुज के कटाव से बचाने की गुजारिश की। गुरुजी ने उसे कहा कि वह अपने राज्य में गौ हत्या बंद कर दे तो सतलुज के कटाव से उसका राज्य बच जाएगा। जलाल खां ने गुरुजी को वचन दिया और उसके बाद गुरुजी ने सतलुज को सात कोस दूर जाने को कहा। सतलुज यहां से सात कोस दूरी चले गए और एक धारा यहीं पर बहती रही। उसे बुड्ढा दरिया का नाम दिया गया। गुरुजी ने इस जगह पर गौ हत्या रुकवाई थी इसलिए इस गुरुद्वारे का नाम गुरुद्वारा गऊघाट रखा गया। आज भी गुरुद्वारा परिसर में सरोवर है और उसके पीछे बुड्ढा दरिया है। हर संक्रांति को बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां स्नान करने आते हें। प्रबंधकों का कहना है कि इतिहास से प्राप्त तथ्यों के मुताबिक गुरुनानक देव जी यहां पर करीब आधा दिन रुके थे और उसके बाद ठक्करवाल चले गए थे।
श्री गुरु नानक देव जी अपने भ्रमण के दौरान लुधियाना शहर भी पहुंचे थे और सतलुज किनारे विश्राम किया था। इसे बाद में गुरुद्वारा गऊघाट का नाम दिया गया। यह स्थान आज भी आस्था का केंद्र है और हर साल बैसाखी पर यहां मेला लगता है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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