Dhyanendra Singh Chauhan
नई दिल्ली : पाकिस्तान में सत्ता का संघर्ष कोई नई बात नहीं है। जम्हूरियत यानी लोकतंत्र के नाम पर वहां सत्ता से खिलवाड़ पहले भी कई बार हो चुका है। जानिए इस देश में पहले कब संवैधानिक संकट रहा और सेना ने कैसे और कब तख्तापलट किया:
1- पहले भी आया ऐसा संवैधानिक संकट
-पाकिस्तान में पहला तख्तापलट इसके अस्तित्व में आने के महज छह साल बाद 1953 में ही हो गया। वह भी इस समय की तरह ही संवैधानिक तख्तापलट कहा जा सकता है।
-हुआ यूं था कि उस समय पाकिस्तान के गवर्नर जनरल रहे गुलाम मुहम्मद ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार को बर्खास्त कर दिया था।
-खास बात यह है कि उस समय की सरकार को संविधान सभा का समर्थन प्राप्त था, लेकिन गवर्नर जनरल ने सरकार बर्खास्त करने के अगले ही साल संविधान सभा को भी खारिज कर दिया था।
-तत्कालीन गवर्नर जनरल गुलाम मुहम्मद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र रहे थे।
सैन्य तख्तापलट का इतिहास
-1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा ने पीएम फिरोज खान नून की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। राष्ट्रपति ने सेना प्रमुख जनरल अयूब खान को मुख्य मार्शल ला प्रशासक बनाकर सत्ता की चाभी सौंप दी थी।
-रोचक यह रहा कि केवल 13 दिन बाद ही अयूब खान ने इस्कंदर मिर्जा को बाहर का रास्ता दिखाकर खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। यहीं से पाकिस्तान की सत्ता में सेना का दखल बढ़ा।
-अगला तख्तापलट 1969 में हुआ जब अयूब खान को हटाकर सेना प्रमुख याहया खान ने सत्ता अपने हाथ में ले ली।
-यह वही याहया खान हैं जिनके कार्यकाल में 1971 में भारत के साथ पाकिस्तान ने युद्ध में भारी शिकस्त खाई।
-यहां से पाकिस्तान की सियासत में थोड़ा बदलाव आया और जुल्फिकार अली भुट्टो को चुनाव में जीत मिली और वह पीएम बने।
-एक बार फिर पाकिस्तान में धोखेबाजी सामने आई। जिस जिया उल हक को जुल्फिकार अली ने सेना प्रमुख बनाया था, उसी ने 1977 में भुट्टो को सत्ता से बाहर कर दिया।
-जिया उल हक को पाक के सबसे कट्टर सैन्य शासकों में गिना जाता है। उन्होंने देश का संविधान ही निलंबित कर दिया था। भुट्टो को फांसी भी दे दी गई।
-सबसे हालिया सैन्य तख्तापलट 1999 में हुआ जब जनरल परवेज मुशर्रफ ने पीएम नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया।
2-अमेरिका और इमरान के रिश्ते की कहानी
-पाकिस्तान को हमेशा से अमेरिका से आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन मिलता रहा है, लेकिन ताजा घटनाक्रम में इमरान खान ने अमेरिका पर ही अंगुली उठा दी। विदेशी मीडिया में छपी रिपोटरें के अनुसार अमेरिकी प्रशासन, खासकर राष्ट्रपति जो बाइडन भी इमरान खान के बदलते तेवरों से सहज नहीं हैं।
इमरान ने बीते दिनों अपनी सरकार पर आए संकट के लिए एक विदेशी ताकत को जिम्मेदार ठहराते हुए एक पत्र दिखाया था। यह दरअसल अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत रहे असद माजिद खान और एक अमेरिकी अधिकारी के बीच बातचीत पर आधारित केबल था।
-इमरान ने इसी केबल का हवाला देते हुए विदेशी ताकत वाला फार्मूला अपनाया। रिपोर्टो के अनुसार केबल में अमेरिकी प्रशासन इमरान खान की बीते दिनों रूस की यात्रा और यूक्रेन युद्ध पर उनकी नीति से है।
-इसी पर अमेरिकी अधिकारी ने पाकिस्तानी राजदूत को चेताया था कि यदि इमरान सरकार बनी रही तो पाकिस्तान को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
-अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के विशेषज्ञ भी यह कहते रहे हैं कि बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते सहज नहीं हैं।
-इसके प्रमुख कारणों में से एक यह माना जाता है कि चीन के कहने पर पाकिस्तान ने इस साल जनवरी में डेमोक्रेसी समिट यानी लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया था। यह सम्मेलन चीन के खिलाफ लामबंदी के तहत आयोजित किया गया था।
-एक और कारण है अफगानिस्तान में बीते कुछ माह में बदले हालात। अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान छोड़ चुकी हैं और शायद उसे पाकिस्तान की अब रणनीतिक साझीदार के रूप में उतनी जरूरत नहीं रही।
-इमरान खान ने इसे गंभीरता से लिया। वह पहले भी कह चुके हैं कि अमेरिका में नौ सिंतबर के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने उसकी पूरी मदद की, लेकिन उसके ही जिहादियों को आतंकी बता दिया गया।
-हालात यह हो गए कि इमरान खान ने अफगानिस्तान में अमेरिका की पसंद की सरकार बनवाने में भी सहयोग नहीं किया।
-डोनाल्ड ट्रंप तो इमरान ने बातचीत करते थे, लेकिन बाइडन ने अपने पूर्व प्रशासनिक अनुभव और पाकिस्तान की जानकारी के आधार पर इमरान खान ने चर्चा ही नहीं की। इससे भी रिश्ते बिगड़े।
-एक और बड़ा कारण है कि इमरान खान ने 2021 में पाकिस्तानी सैन्य बेस को अमेरिका को देने से इंकार कर दिया था। अमेरिकी प्रशासन अफगानिस्तान की निगरानी के लिए यह सुविधा चाहता था।
-चीन से बढ़ती गलबहियां भी बाइडन को असहज करती हैं। अमेरिका समेत अधिकांश विश्व के बहिष्कार के बावजूद इमरान बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में पहुंचे।
3-भारत की तारीफ के मायने
-सत्ता पर संकट के बीच इमरान खान ने एक बयान में भारत की विदेशी नीति की खुलकर प्रशंसा की। यह चौंकाने वाली बात थी।
-दरअसल इमरान ने भारत की विदेश नीति की तारीफ करते हुए अपने ही देश की विदेश नीति पर निशाना साधा था। इमरान ने यूक्रेन मामले पर भारत के रुख भी प्रशंसा करते हुए कहा था कि वह अमेरिका के साथ भी दिख रहा है और रूस के साथ भी। रूस से तेल भी खरीद रहा है।
-इमरान ने कहा कि भारत की विदेश नीति अपने नागरिकों की भलाई के लिए है, पाकिस्तान में ऐसा नहीं है।
4-सत्ता पर पाकिस्तानी सेना का वर्चस्व
-1947 में अस्तित्व में आए पाकिस्तान में अब तक चार बार सेना की सरकार रह चुकी है। इसके अलावा भी कई बार देश में सेना ने तख्तापलट का प्रयास किया।
-विश्व के किसी अन्य देश की तुलना में पाकिस्तान की सेना का सत्ता पर वर्चस्व अधिक दिखता है। वहां की सेना राजनीति, समाज और इकोनमी पर काबिज रहने की लालसा रखती है और नियंत्रित भी करती है।
-पाकिस्तानी सेना केवल देश की सीमा की सुरक्षा में ही तैनात नहीं रहती बल्कि व्यापारिक गतिविधियों में भी शामिल है।
-पाकिस्तानी सेना सीमेंट, खाद, साबुन से लेकर कार्न फ्लेक्स जैसी खान पान की चीजों के प्रतिष्ठानों को नियंत्रित करती है।
-ऐसा शायद ही कहीं और हो कि सेना फिल्में और टीनी सीरीयल के निर्माण में भी शामिल हो। पाकिस्तान में ऐसा है।
-इन्हीं कारणों से वहां की सत्ता में सेना का दखल बहुत अधिक रहता है।
-सेना ने पाकिस्तान में कभी भी राजनेताओं को नायक नहीं बनने दिया। खुद को ही नायक के रूप में सामने रखा है।
-यही कारण है कि भारत के साथ वह दुश्मनी का व्यवहार रखता है। कश्मीर में आतंकवाद हो या देश में अस्थिरता की कोशिश, पाकिस्तान से तार जुड़ ही जाते हैं।
5-मिलिए इमरान खान से
-पाकिस्तान के पीएम का पूरा नाम अहमद खान नियाजी इमरान है।
-वह पाकिस्तान को 1992 में विश्व कप क्रिकेट का खिताब दिला चुके हैं।
-इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान भी वह क्रिकेट खेलते रहे।
-कपिल देव, इयान बाथम और रिचर्ड हैडली के साथ इमरान को उस समय विश्व के सफल आलराउंडर में गिना जाता था।
-1996 में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी के साथ राजनीति के मैदान में उतरे और 2013 के चुनाव में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही।
-2018 में वह चुनाव जीते और सत्ता की बागडोर संभाली।
-निजी जिंदगी भी खासी विवादित रही है। तीन विवाह कर चुके इमरान पर कई संगीन आरोप लगे हैं।
-वह कट्टरपंथियों के साथ नरम रिश्तों के लिए भी सवालों के घेरे में रहे हैं।
-2012 में एशिया पर्सन आफ द इयर चुने गए इमरान युवाओं में काफी लोकप्रिय रहे हैं। हालांकि अब छवि बदली है।
6- मीर जाफर कौन है
मैं चाहता हूं कि आप लोग याद रखें कि हमारे बीच मीर जाफर कौन है जो हमारे मुल्क के खिलाफ काम कर रहा है। मीर जाफर और मीर सादिक जैसे लोगों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मिलकर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हरा दिया और हमें फिरंगियों का गुलाम बना दिया था। -इमरान खान
सौजन्य : दैनिक जागरण
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