स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन पर जानिए, कैसे चरित्र पर पड़ता है कर्म का प्रभाव?
हर वर्ष 12 जनवरी के दिन स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी ने अपने जीवन काल कई महत्वपूर्ण विषयों को आम-जन तक पहुंचाने का कार्य किया था। अपनी पुस्तक कर्मयोग में कर्म की महत्ता को बताते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा है। यह मानना पूरी तरह भ्रामक है कि, मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य सुख प्राप्त करना है। उनके अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य है, ज्ञान को प्राप्त करना। क्योंकि सुख और धन दोनों ही नाशवान है। जबकि ज्ञान हमेशा उसके साथ रहता है। इसी लिए मनुष्य को निरंतर ऐसे कर्म करने चाहिए जो उसके ज्ञान में वृद्धि करते हैं। वह यह भी कहते हैं कि ज्ञान कहीं बाहर से नहीं आता, बल्कि हमारे अपने अंदर होता है।
कर्म से पैदा होता है ज्ञान
कर्मयोग में स्वामी विवेकानंद ने कहा है, कि हमारा ज्ञान हमारे कर्मों का ही फल होता है। अक्सर लोग कहते हैं कि इस बात का आविष्कार किया गया। वास्तव में यह आविष्कार ही कर्म है, और इससे मिलने वाली जानकारी ज्ञान है। जैसे-जैसे आविष्कार होता जाता है। वैसे वैसे ज्ञान बढ़ता जाता है।
बड़े नहीं छोटे कर्मों से निर्धारित होता है चरित्र
स्वामी विवेकानंद का मानना है, कि किसी व्यक्ति की बहुत बड़ी उपलब्धि को उसकी योग्यता और चरित्र का प्रमाण नहीं समझना चाहिए। जिस तरह कई छोटी-छोटी लहरों से बनने वाले बड़े स्वर को हम समुद्र की विशाल ध्वनि समझ लेते हैं, और उस ध्वनि को समुद्र की विशालता का प्रतीक मान लेते हैं। जो कि सही नहीं है। मुख्य कार्य तो छोटी-छोटी लहरें कर रही हैं। उसी प्रकार हमारे छोटे-छोटे कार्य हमारे चरित्र का निर्माण करते हैं।
स्वामी जी के अनुसार किसी विशेष समय पर, विशेष परिस्थिति में एक बड़ा कार्य तो कभी-कभी कोई मूर्ख भी कर लेता है। इससे वह श्रेष्ठ नहीं बन जाता। वास्तव में श्रेष्ठता की परख किसी व्यक्ति द्वारा निरंतर किए जा रहे छोटे-छोटे कामों से होती है। और वही उसके चरित्र का निर्माण करते हैं।
स्वामी विवेकानंद की जयंती पर क्यों मनाया जाता है युवा दिवस
देश के युवाओं को समर्पित इस दिन को मनाने का एक खास मकसद होता है। दरअसल, इस दिन स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन होता है। स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। बचपन से ही आधात्म में रूचि रखने वाले नरेंद्रनाथ ने 25 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था। संन्यास लेने के बाद वह दुनियाभर में विवेकानंद नाम से मशहूर हुए। वह वेदांत के एक विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उन्हीं की याद में हर साल स्वामी जी की जयंती पर युवा दिवस को मनाया जाता है। हर दिवस को मनाने का अपना अलग उद्देश्य होता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर स्वामी विवेकानंद की जयंती को ही युवा दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस का इतिहास
देश का भविष्य कहे जाने वाले युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत साल 1984 में की गई थी। उस समय की सरकार का ऐसा मानना था कि स्वामी विवेकानंद के विचार, आदर्श और उनके काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हो सकते हैं। ऐसे में इस बात को ध्यान में रखते हुए 12 जनवरी, 1984 से स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई थी।
युवा दिवस का उद्देश्य
अपने विचारों और आर्दशों के लिए मशहूर स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान, साहित्य सभी के ज्ञाता थे। इतना ही नहीं वह भारतीय संगीत के ज्ञानी होने के साथ ही एक बेहद अच्छे खिलाड़ी भी थे। उनकी इन्हीं खूबियों की वजह से उनका व्यक्तित्व सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। उन्होंने कई मौकों पर युवाओं के लिए अपने अनमोल विचार भी साझा किए। ऐसे में इस दिवस को इस मसकद से मनाया जाता है कि युवा इस खास मौके पर यह सोच सकें कि वह देश और समाज के लिए क्या कर सकते हैं। साथ ही यह दिन उन्हें यह सोचने का भी अवसर देता है कि वह देश के विकास और प्रगति में कैसे अपना योगदान दे सकते हैं।
राष्ट्रीय युवा दिवस 2023 की थीम
हर दिवस को मनाने का अपना अलग महत्व होता है। इसी महत्व के आधार पर इन अलग-अलग दिनों की थीम भी तय की जाती है। राष्ट्रीय युवा दिवस को भी मनाने के लिए हर साल एक थीम का एलान किया जाता है। बात करें इस साल की थीम की तो इस वर्ष नेशनल यूथ डे के लिए थीम ‘विकसित युवा विकसित भारत’ तय की गई है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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