• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • About Us
  • Our Authors
  • Contact Us

The Punjab Pulse

Centre for Socio-Cultural Studies

  • Areas of Study
    • Social & Cultural Studies
    • Religious Studies
    • Governance & Politics
    • National Perspectives
    • International Perspectives
    • Communism
  • Activities
    • Conferences & Seminars
    • Discussions
  • News
  • Resources
    • Books & Publications
    • Book Reviews
  • Icons of Punjab
  • Videos
  • Academics
  • Agriculture
You are here: Home / Areas of Study / Social & Cultural Studies / 1 से 7 जून 1984: तीसरे घल्लूघारा का सप्ताह

1 से 7 जून 1984: तीसरे घल्लूघारा का सप्ताह

June 6, 2022 By Iqbal Singh Lalpura

Share

इकबाल सिंह लालपुरा

पंजाब के सिख और दुनिया भर से खालसा पंथ हर साल जून 1984  के बाद (1 से 7 जून) तक तीसरे घल्लूघारा का सप्ताह मनाते रहे हैं !!

19 जुलाई 1982 को, संत जरनैल सिंह भिंडरावाला ने भाई अमरीक सिंह और भाई थारा सिंह की पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और उनकी बिना शर्त रिहाई के विरोध में डीसी अमृतसर की कोठी के सामने धरना दिया। दरबार साहिब के अंदर गुरु नानक के आवास पर खुद आए थे संत जरनैल सिंह !! हर दिन 51 सदस्यों का एक समूह गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत होता था, जिन्हें कोतवाली के पास गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता था !!

कपूरी में अप्रैल 1982 में शुरू हुई सतलुज यमुना लिंक नहर की खुदाई के खिलाफ अकाली दल का मोर्चा भी 4 अगस्त 1982 को इसमें शामिल हो गया !!

यह धार्मिक युद्ध का मोर्चा बन गया !! देश से अलग होने की कोई मांग नहीं थी 99.5%, अपराध दरबार साहिब से बाहर हो रहे थे !! पंजाब में साम्प्रदायिक मतभेदों की लंबी कहानी थी !! गुरुद्वारा श्री गुरु का महल अमृतसर जलाने की घटना, सिगरेट-बीड़ी पीने के समर्थन में विरोध प्रदर्शन और अमृतसर को पवित्र शहर घोषित करने की मांग, श्री दरबार साहिब के मॉडल और रेलवे स्टेशन अमृतसर पर श्री गुरु राम दास जी की तस्वीर को तोड़ने, ढिलवा में एक समुदाय के छह सदस्यों को बस से उतारकर हत्या करने जैसी घटनाएं से दो प्रमुख समुदायों में संदेह पैदा हो गया था! पंजाबी भाषा, गुरुमुखी लिपि, श्री गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की स्थापना के विरोध की श्रंखला टूटने का नाम नहीं ले रही थी !!

शिरोमणि अकाली दल (लोंगोवाल) से अलग हुए जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी और सरदार सुखजिंदर सिंह भी इस धार्मिक युद्ध में शामिल हो गए !! इस मोर्चे के तानाशाह बने संत हरचंद सिंह लोगोवाल!

19 जुलाई 1982 -1 जून 1984 तक इस मोर्चे ने कई रूप बदले, यमन कानून की स्तिथि बद से बदतर हो गई। वार्तालाप निष्फल रही !!

1 जून 1984 को केंद्र सरकार की नीति के तहत सीआरपी और बीएसएफ के जवानों ने दोपहर करीब 12 बजकर 40 मिनट पर श्री गुरु राम दास लंगर पर फायरिंग शुरू कर दी थी!! शाम तक अंदर ही अंदर 8 लोग मारे गए!! अंदर से जवाबी फायरिंग भी हुई !!

आक्रमण आजाद और लोक राज के शासन के दौरान हुआ था। आदेश देने वाले भी चुने गए प्रतिनिधि थे। सेना के सर्वोच्च कमांडर भी एक सिख थे। जख्म शारीरिक और मानसिक सिख कॉम पर लगे हैं। जख्मों पर मलम लगाने का क्या हुआ?

आइए एक नजर डालते हैं घटनाओं के इस क्रम पर और एक हफ्ते तक करें आत्मनिरीक्षण !!

2 जून 1984

2 जून 1984! पंजाब में बिगड़ती कानून व्यवस्था को काबू में करने के लिए सेना के हवाले किया गया !! पंजाब पर अक्टूबर 1983 से राज्यपाल का राज था !!

चंडीगढ़ गवर्नर हाउस में, पंजाब के तत्कालीन गृह सचिव, श्री अमरीक सिंह पूनी ने पंजाब को सेना सौंपने के अनुरोध पर हस्ताक्षर किए। श्री केडी वासुदेव भी उपस्थित थे !! पंजाब के राज्यपाल श्री बी.डी. पांडे थे !! किसी जिला उपायुक्त को कार्रवाई करने के लिए सेना से अनुमति की आवश्यकता नहीं थी और न ही किसी ने आपत्ति की !! रेलवे और हवाई सेवाएं बंद कर दी गई। श्री दरबार साहिब की बिजली और पानी की आपूर्ति काट दी गई !!

उस दिन भी गुरु अर्जन देव जी की शहादत की बरसी थी, श्री दरबार साहिब में माथा टेकने के लिए दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पहुंचे थे !! सीआरपी और बीएसएफ की ओर से रुक-रुक कर हो रही थी फायरिंग !!

इससे पहले पंजाब के तत्कालीन आईजी पुलिस प्रीतम सिंह भिंडर के कार्यालय में सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पंजाब खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी से मुलाकात की थी, जिन्होंने स्वर्ण मंदिर के अंदर की स्थिति पर संत जरनैल सिंह द्वारा किए गए जवाबी हमले को स्पष्ट किया था। यह भी कहा जाता था कि लगभग 125 ऐसे सिंह हैं जो अंतिम क्षण तक लड़ेंगे और मरेंगे !!

3 जून 1984

रविवार 3 जून 1984 सारा पंजाब सेना को सौंप दिया गया, पूर्ण कर्फ्यू लगा दिया गया !! श्री दरबार साहिब के दर्शनार्थियों की संख्या न के बराबर थी !! शहर में दूध और सब्जियों की सप्लाई भी कट गई !! टेलीफोन सेवा भी ठप थी !! विदेशी पत्रकारों को पंजाब छोड़ने का आदेश !!

दरबार साहिब के बाहर परिजनों द्वारा अंदर के लोगों को आतंसमर्पण करने को कहा जा रहा था !!

लाउडस्पीकर की आवाज बहुत कम अंदर जा रही थी, इसलिए ज्यादातर लोग बाहर नहीं आए !!

सरदार गुरदयाल सिंह पंढेर, तत्कालीन डीआईजी, बीएसएफ, अमृतसर ने जनरल केएस बराड़ के आदेश पर विचार करने की बात कहते ही कार्रवाई की गई !! सेना हमला करने की जल्दी में शायद बराड़ साहब अपनी दूसरी शादी की सुहागरात छोड़कर मेरठ से आ गए !!

श्री अपार सिंह बाजवा डीएसपी सिटी अमृतसर को संत भिंडरावाला को दरबार साहिब के अंदर मनाने के लिए भेजा गया था, लेकिन वह अकाली दल कार्यालय से आगे नहीं जा सके !! केंद्रीय खुफिया एजेंसी के अधिकारी भी संत भिंडरावाला से संपर्क नहीं कर सकते थे क्योंकि टेलीफोन बंद था! जत्थेदार गुरचरण सिंह तोहरा भी संत जरनैल सिंह तक नहीं पहुंच पाए !!

सरदार मंजीत सिंह तरन तारनी संत हरचंद सिंह लोगोवाल के सानिध्य में दरबार साहिब के अंदर थे, टेलीफोन सुनने और काम के समन्वय की जिम्मेदारी में सहयोग किया !!  गोली सेना द्वारा बाहर से चलाई जा रही थी, अंदर से जवाब में कम गोलियां चली शायद गोली बचाने की नीति थी !!

यह अजीब संयोग है कि सेना संत जरनैल सिंह के आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी की तैयारी कर रही थी, उनके खिलाफ क्या मामला था? 1981 में, मैंने गोला-बारूद के समर्पण के एक मामले की जांच की, जो रिकॉर्ड के अनुसार झूठा था, क्योंकि उस लाइसेंस पर कोई हथियार नहीं खरीदा गया था!

लाला जगत नारायण हत्याकांड में चंदो कलां की बसें जलाई गईं, संत जरनैल सिंह की गिरफ्तारी के लिए सात दिन का समय दिया, गिरफ्तारी के समय 20 सितंबर, 1981 को पुलिस ने 12 से अधिक लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी, 15 अक्टूबर 1981 में रिहा कर दिया गया क्योंकि पुलिस द्वारा कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका !! बिना सबूत के गिरफ्तारी और फिर बिना चालान के रिहा, क्या यह थी सरकारी तंत्र की क्षमता, घलुघारा करने की तैयारी और मुख्य अपराधी के खिलाफ मामला एक भी नहीं?

राजनीति की बात करें तो केंद्र सरकार ने तत्काल सेना के आक्रमण की एक भी मांग को स्वीकार कर स्थिति को शांत करने के लिए कोई पहल नहीं की !!

ये सवाल आने वाली पीढ़ी के लिए बने रहेंगे!!

4 जून 1984

सेना ने सोमवार, 4 जून 1984 को सुबह 4 बजे मोर्टार और हल्की मशीनगनों से स्वर्ण मंदिर पर फायरिंग शुरू कर दी !! जनरल शबेग सिंह ने दरबार साहिब परिसर की ऊंची इमारतों के चारों ओर मजबूत मोर्चा खड़ा किया था !! नीचे के कमरों से आतंकी भी फायरिंग कर रहे थे !!

बुंगा रामगढ़िया और गुरु नानक के आवास के पीछे पानी की टंकी पर मोर्टार गन से हमला किया जा रहा था! ऐतिहासिक बंकर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ !! सेना के कमांडो जैसे ही परिक्रमा में उन पर गोलियों की बौछार होने लगी !! दोनों पक्षों में जान की भारी क्षति हुई थी!!

श्री अकाल तख्त साहिब के सामने संत जरनैल सिंह, जनरल शुभेग सिंह, भाई अमरीक सिंह आदि मोर्चा लगा के बैठे थे !! संत हरचंद सिंह लोंगोवाल, जत्थेदार गुरचरण सिंह तोहरा, बलवंत सिंह रामूवालिया, मनजीत सिंह तरन तारनी, अबनाशी सिंह आदि तोहरा साहिब के आवास में थे !!

उग्रवादी सेना से लड़ रहे थे, अकाली नेताओं पर पड़ रही थी दोहरी मार !! इंसानियत काँप रही थी !!

सुखदेव सिंह बब्बर, मोहन सिंह बजाज आदि बब्बर गली बागबाली से पहले ही भाग गए थे !!

चलती गोली बारी के बीच से इंद्रजीत सिंह बागी, बीबी अमरजीत कौर को श्री अकाल तख्त साहिब से सरदार गुरचरण सिंह टोहरा के आवास पर शाम को ले आया !!

सेना के अधिकारियों की संत जरनैल सिंह और उनके साथियों को 2 घंटे में काबू में करने की कोशिश सच साबित नहीं हुई !! पूरे पंजाब में सेना चला रही थी ऑपरेशन 40 से ज्यादा ऐतिहासिक गुरुद्वारों की तलाशी, गिरफ्तारी और मुठभेड़ में मर रहे थे लोग !!  बाहर कर्फ्यू सख्त था और अंदर सभी को गोलियों से अंदर रहने को मजबूर किया जा रहा था, ऐसे ही चल रहा था !! पुलिस, सीआरपी और बीएसएफ सेना के अधीन काम कर रहे थे, नागरिक प्रशासन भी सेना की हर संभव मदद कर रहा था !! इस दिन मरने वालों की संख्या 100 को पार कर गई थी !!

5 जून 1984

5 जून 1984 मंगलवार सुबह से सेना, सीआरपी और बीएसएफ स्वर्ण मंदिर के अंदर और बाहर की इमारतों पर 25 पाउंड मोर्टार और मशीनगनों से फायरिंग कर रहे हैं !! इस भीषण हमले से श्री गुरु राम दास लंगर के पास स्थित ब्रह्मबूट अखाड़ा और मंदिर वियो होटल को सेना ने अपने कब्जे में ले लिया, आतंकवादी या तो मारे गए या परिक्रमा की तरफ छुप कर भाग गए !! पानी की टंकी और बूंगा रामगढ़िया का मोर्चा भी टूटा चुका था !!

श्री हरमंदिर साहिब के अंदर ग्रंथी सिंह श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सेवा कर रहे थे, वहां कोई भक्त पूजा नहीं कर सकता था !!  धर्म युद्ध मोर्चा में गिरफ्तारी के लिए एक समूह को गुरु राम दास सरां में ठहराया गया था। बहुत सारे भक्त सरां में थे !! सेना की गोलियों से मरने वालों की बड़ी संख्या में गिनती उन्ही की थी !!

सबसे बड़ी समस्या थी रोटी-पानी की, जून की भीषण गर्मी में प्यास से हर व्यक्ति मुश्किल में था !! जत्थेदार तोहरा, संत लोंगोवाल और उनके साथी भी पानी के लिए तरस रहे थे !! भक्तों के साथ आए छोटे बच्चों का हाल भी बेहद खराब था, भूखे रहे भी दो दिन हो गए थे !!

अब लड़ाई आर-पार की हो रही थी !! रात के अंधेरे में परिक्रमा मे दाखिल हो रहे कमांडो उग्रवादी की गोलियों का शिकार हो रहे थे !!  दोपहर में संत जरनैल सिंह द्वारा भेजे गए चार सिंह संत लोगोवाल और जत्थेदार तोहरा के कमरे में पहुंचे और संत जरनैल सिंह का संदेश दिया कि संता ने कहा है कि “अकाली नेता खालिस्तान का एलान का दें, तो पाकिस्तान मदद के लिए आ जाएगा, “संत लोगोवाल चुप रहे, लेकिन जत्थेदार तोहरा ने जवाब दिया, “टेलीफोन काट दिया गया है, तीन दिनों से प्रेस से कोई संपर्क नहीं है, हम यह बयान देने में असमर्थ हैं, संतों को संदेश दें कि वो खालिस्तान का एलान कर दें अकाली दल उनके साथ है” युवा वापस चले गए हैं !!

इन सबके लिए कौन जिम्मेदार था, तत्कालीन केंद्र सरकार, अवसरवादी राजनीतिक नेता या विदेशी ताकतें? इन सवालों के जवाब आने वाली पीढ़ी से जरूर पूछेगी !! यह भी बात होगी कि राष्ट्रीय नेताओं ने इसकी भरपाई के लिए क्या किया।

6 जून 1984

बुधवार 6 जून 1984 की सुबह तक सेना ने 5 जून की रात से ही स्वर्ण मंदिर से सटे भवनों पर धावा बोल कर कब्जा कर लिया था !! आधी रात को सशस्त्र कार्मिक वाहक वाहन के विनाश के साथ, सेना ने केंद्र की मंजूरी के साथ, टैंक को अंदर लाया गया और श्री अकाल तख्त साहिब के एक बड़े हिस्से को ध्वस्त कर दिया। संत जरनैल सिंह, भाई अमरीक सिंह के साथ जनरल शुभेग सिंह और अन्य नेता भी शहीद हो गए।

एक-दो युवकों द्वारा की गई फायरिंग के जवाब में गुरु राम दास सरां मे ठहरे कई तीर्थयात्रियों को मार डाला !! मरने वालों की संख्या का अपना-अपना अनुमान है !!

दो हजार से ज्यादा महिला-पुरूष बच्चे प्यास से तड़प रहे थे, चार दिन प्यासा रहना बेहद मुश्किल !!

संत हरचंद सिंह लोगोवाल, जत्थेदार गुरचरण सिंह तोहरा, सरदार मंजीत सिंह तरन तारनी, दर्शन सिंह ईसापुर, अबनाशी सिंह और बीबी अमरजीत कौरको गिरफ्तार कर लिया गया !! सरदार बलवंत सिंह रामूवालिया को भी काबू कर लिया था लेकिन उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? इसका राज तो वही बता सकते हैं !!

महिल सिंह बब्बर ने पाकिस्तान में एक सिख समूह के नेता से कहा था कि वह वायु सेना से सेवानिवृत्त हुए हैं और वायरलेस करना जानते हैं !! संत जरनैल सिंह ने उन्हें पाकिस्तान को वायरलेस करने के लिए कहा था लेकिन फ्रीक्वेंसी कोई नहीं जानता था !!

भाई मंजीत सिंह आदि को शिरोमणि समिति के कर्मचारियों की सूची में नाम लिखकर सेना को चकमा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया !! छोटी-मोटी लड़ाई दो दिन और चली लेकिन धर्म युद्ध मोर्चा का दुखद अंत हुआ !! राष्ट्रीय नुकसान का कोई पैमाना नहीं है लेकिन राष्ट्रीय नेता की दूरदर्शिता और कॉम को संकट से बचाने के लिए उनकी वीरता कहीं देखने को नहीं मिलती !!

श्रीमती इंदिरा गांधी ने अक्टूबर 1983 में अकाली नेता के साथ बैठक में दरबार साहिब के अंदर सेना भेजने की धमकी दी थी, जत्थेदार तोहरा ने भी एसजीपीसी की ओर से इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया था !! लेकिन किसी ने राष्ट्रीय नीति नहीं बनाई !!

संत लोगोवाल को बताया गया कि उग्रवादियों से उनकी जान को खतरा है और उन्हें 15 मई के करीब गिरफ्तार कर आंदोलन को समाप्त करने की सलाह दी गई, लेकिन उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री का एक पत्र दिखाया जिसमें उन्होंने धार्मिक मांगों को जल्द स्वीकार करने की बात कही थी। ! इस ऊंट के होंठ कभी नहीं गिरे !! क्योंकि मांगे मानने के बाद नारे लगा कर बाहर निकलने की योजना थी !!

इस महान राष्ट्रीय क्षति का क्या हुआ? आज भी धार्मिक और राजनीतिक नेता 6 जून को श्री अकाल तख्त साहिब की दीवारों से भाषण देते हैं, अंदर अखंड पाठ और बाहर खालिस्तान के नारे लगाते हैं और पुलिस को हर साल दरबार साहिब के अंदर आने का मौका देते हैं !! 364 दिन सोते रहते हैं !!

खालिस्तान के नारे मरते हम पंजाब को खाली जगह बनाने की ओर बढ़ रहे हैं !! पंजाब में रहने वाले सिख समुदाय की क्या राय है? न शिक्षा है, न रोजगार है, न चिकित्सा सुविधा है, बच्चे बाहर भाग गए हैं और पूरब के लोग यहाँ बन रहा है मालिक !!

गुरमीत और गुरुमुखी को ज़िंदा रखने की कोशिश समय की मांग है !!

7 जून 1984

7 जून 1984 को श्री दरबार साहिब समूह का लगभग सफाया हो गया था, लेकिन पुस्तकालय में लगी आग का धुंआ कई दिनों तक उठता रहा !! पंजाब भर के 36 और गुरुद्वारों में सैन्य अभियान जारी रहा !!

सिख समुदाय के दिल और दिमाग में दरार आज भी है !! कई नौजवानों को पुलिस और सेना ने प्रताड़ित किया और उनमें से लगभग 400 लोग सीमा पार करके पड़ोसी मुल्क पहुँच गए, जिससे स्वर्ण मंदिर पर हमले के समय भारत पर हमला होने की आशंका जताई जा रही है !! कुछ अब भी वहीं बैठे हैं ऊंट के होठ गिरने का इंतज़ार कर रहे हैं !!

राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का भी राजा शीन मुकदम कुत्ते या कुत्ता राज जैसे शब्दों से अभिनंदन किया गया, ये ऊँचे दिलों से आँसू और आशीर्वाद थे !! श्री अकाल तख्त का पतन एक ऐतिहासिक भूल थी जिसको कौम माफ करेगी, यह सोचना भी भूल होगी !! बस यही दो जगह हैं जहां आस्था के केंद्र और गुरु साहिबों ने कर कमला से बनायी है सेवा !!

यह पूरी घटना कुछ अहम सवाल भी उठाती है।

1, क्या श्री दरबार साहिब पर इस सैन्य हमले से बचा जा सकता था?

2, यह कैसे हुआ और भविष्य में ऐसा नहीं होगा, संबंधित दलों की रणनीति क्या है?

3, इससे संबंधित पक्षों ने क्या हासिल किया?

4, क्या यह पूजा स्थल जो प्रेरणा का स्रोत और आस्था का केंद्र है, क्या कभी सिख राजनीति का केंद्र रहा है, गुरुओं का जीवन, मिसल और खालसा राज का पचास साल का इतिहास मार्गदर्शन देता है?

  1. पिछले 36 वर्षों में इससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकारों और पंथिक नेताओं द्वारा क्या कार्रवाई की गई है और युवाओं द्वारा प्रभाव में की गई गलतियों को माफ करने और उन्हें मुख्यधारा में स्थापित करने के लिए क्या किया गया है?
  2. अकाली या सिख नेताओं की शैली से सहमत न होकर सामाजिक विभाजन को समाप्त करने के लिए जो पंजाबी भाषा के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं या श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अनादर और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोध या असहमत हैं। “पंजाब जीता है गुरु के नाम पर वाले भाईचारे के लिए क्या किया?
  3. क्या पड़ोसी मुल्क सिख समाज और धर्म का हितैषी है? या वह अपने संकीर्ण हितों के लिए राष्ट्रीय भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा हैं?
  4. कुछ एसजीपीसी द्वारा नियुक्त अधिनियम के अनुसार, पुजारी या पंथक शब्दावली में जत्थेदार, पूरी कौम जो दुनिया भर में बैठी है, के बारे में फैसला कर सकते हैं? या क्या किसी राजनीतिक दल या पार्टी के कुछ जत्थेदार और प्रचारक राष्ट्रीय निर्णय ले सकते हैं? यहूदी धर्म या अन्य धर्मों की तरह, राष्ट्रीय निर्णयों के लिए किसी भी सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत निकाय का गठन नहीं किया जाना चाहिए।
  5. 1982 से 1993 तक पूरे पंजाब और विशेषकर सिख समुदाय के संघर्ष को लेकर केंद्र और पंजाब सरकार की नीति क्या रही है और क्या होनी चाहिए और पंजाबी के आर्थिक विकास के लिए क्या हुआ और क्या होना चाहिए।
  6. क्या 20/25 साल जेल की सजा काट चुके सिखों को रिहा नहीं किया जाना चाहिए?

और भी कई सवाल हैं !!

पहले प्रश्न के उत्तर के संबंध में मैं अपनी राय प्रस्तुत करता हूँ, क्योंकि मैं इन सभी घटनाओं या इतिहास का हिस्सा रहा हूँ !! अगर यह समय पर और अच्छे इरादों के साथ किया गया होता, तो इसकी बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं होती !! सरकार की बेईमानी जो इंदिरा गांधी को देवी बना 1984 के आखिर में सिखों की बाली देकर चुनाव जीतना चाहती थी, अकाली नेताओं की कायरता व मौकापरस्ती और आतंकवादियों की राजनीतिक पैंतरेबाज़ी से अनजान, बाकी पंजाबी नेता सच्चाई के लिए हाँ का नारा न लगाना जिम्मेदार लगते हैं !!

विचार अपने-अपने होते हैं, इसके बारे में सिर्फ बात ही नहीं विचार करके रणनीति बनाना समय की मांग है !!


Share
test

Filed Under: Social & Cultural Studies, Stories & Articles

Primary Sidebar

News

ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਲਈ ਸੌਖਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਚੋਣਾਂ ਦਾ ਰਾਹ

June 5, 2023 By News Bureau

पंजाब के विश्वविद्यालयों का जलवा

June 5, 2023 By News Bureau

सीमा पार कर रहे पाकिस्‍तानी ड्रोन को BSF ने मार गिराया

June 5, 2023 By News Bureau

जालंधर शहर में मंत्री भी सुरक्षित नहीं

June 5, 2023 By News Bureau

अमेरिका में फिर लहराए गए खालिस्तानी झंडे

June 5, 2023 By News Bureau

Areas of Study

  • Governance & Politics
  • International Perspectives
  • National Perspectives
  • Social & Cultural Studies
  • Religious Studies

Featured Article

The Akal Takht Jathedar: Despite indefinite term why none has lasted beyond a few years?

May 15, 2023 By Guest Author

Kamaldeep Singh Brar The Akal Takth There’s no fixed term for the Jathedar (custodian) of the Akal Takht, the highest temporal seat in Sikhism. That means an Akal Takht Jathedar can continue to occupy the seat all his life. Yet, no Akal Takht Jathedar in recent memory has lasted the crown of thorns for more […]

Academics

‘सिंघसूरमा लेखमाला’ धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-10 – भाग-11

सिंघसूरमा लेखमाला धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-10 विजयी सैन्य शक्ति के प्रतीक ‘पांच प्यारे’ और पांच ‘ककार’ नरेंद्र सहगल श्रीगुरु गोविंदसिंह द्वारा स्थापित ‘खालसा पंथ’ किसी एक प्रांत, जाति या भाषा का दल अथवा पंथ नहीं था। यह तो संपूर्ण भारत एवं भारतीयता के सुरक्षा कवच के रूप में तैयार की गई खालसा फौज […]

‘सिंघसूरमा लेखमाला’ धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-8 – भाग-9

सिंघसूरमा लेखमाला धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-8 अमृत शक्ति-पुत्रों का वीरव्रति सैन्य संगठन नरेंद्र सहगल संपूर्ण भारत को ‘दारुल इस्लाम’ इस्लामिक मुल्क बनाने के उद्देश्य से मुगल शासकों द्वारा किए गए और किए जा रहे घोर अत्याचारों को देखकर दशम् गुरु श्रीगुरु गोविंदसिंह ने सोए हुए हिंदू समाज में क्षात्रधर्म का जाग्रण करके एक […]

‘सिंघसूरमा लेखमाला’ धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-6 – भाग-7

सिंघसूरमा लेखमाला धर्मरक्षक वीरव्रति खालसा पंथ – भाग-6 श्रीगुरु गोबिन्दसिंह का जीवनोद्देश्य धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश नरेंद्र सहगल ‘हिन्द दी चादर’ अर्थात भारतवर्ष का सुरक्षा कवच सिख साम्प्रदाय के नवम् गुरु श्रीगुरु तेगबहादुर ने हिन्दुत्व अर्थात भारतीय जीवन पद्यति, सांस्कृतिक धरोहर एवं स्वधर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देकर मुगलिया दहशतगर्दी को […]

Twitter Feed

ThePunjabPulse Follow

@ ·
now

Reply on Twitter Retweet on Twitter Like on Twitter Twitter
Load More

EMAIL NEWSLETTER

Signup to receive regular updates and to hear what's going on with us.

  • Email
  • Facebook
  • Phone
  • Twitter
  • YouTube

TAGS

Academics Activities Agriculture Areas of Study Books & Publications Communism Conferences & Seminars Discussions Governance & Politics Icons of Punjab International Perspectives National Perspectives News Religious Studies Resources Social & Cultural Studies Stories & Articles Uncategorized Videos

Footer

About Us

The Punjab Pulse is an independent, non-partisan think tank engaged in research and in-depth study of all aspects the impact the state of Punjab and Punjabis at large. It strives to provide a platform for a wide ranging dialogue that promotes the interest of the state and its peoples.

Read more

Follow Us

  • Email
  • Facebook
  • Phone
  • Twitter
  • YouTube

Copyright © 2023 · The Punjab Pulse

Developed by Web Apps Interactive