चंडीगढ़: पहियेदार कुर्सी (व्हीलचेयर) पर बैठा एक दुर्बल सा व्यक्ति अपना सिर पीछे फेंकता है और अपना चेहरा ऐंठने लगता है, उसकी बाहें फड़कने लगती हैं, पैर कांपते हैं. फिर भी सभी की निगाहें उस पर नहीं, बल्कि पंजाब के ’चर्च ऑफ ग्लोरी एंड विजडम’ में मिनिस्टर प्रॉफेट बजिंदर सिंह, या सिर्फ ‘प्रॉफेटजी’ पर टिकी हैं.
जींस और ब्लेज़र पहने हुए और 30 के दशक के अंत अथवा 40 के दशक की शुरुआत की आयु वाले बजिंदर शुक्रवार के कैसुअल माने जाने वाले दिन पर कार्यरत किसी कॉर्पोरेट कर्मी की तरह दिखते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि उस दिन उनके द्वारा स्वनिर्धारित ‘कार्य’ उस ‘बुरी आत्मा’ को दूर करना है, जिसने कथित तौर पर इस आदमी की चलने-फिरने की क्षमता छीन ली है.
बजिंदर उस आदमी की रोती हुई पत्नी को उकसाते हैं, ‘क्या तुझे यकीन है कि तुम यहां चंगे होकर जाओगे? विश्वास है तुझे‘. वह सुबकते हुए कहती है, ‘हां, मुझे विश्वास है.’ इसके बाद बजिंदर उस कार्यक्रम स्थल पर एकत्रित और मंत्रमुग्ध लग रहे दर्शकों की तरफ तेजी से घूमते हुए उनसे गुजारिश करते हैं, ‘हर कोई, अपने हाथ उठाओ और पवित्र आत्मा को अपना काम करने दो.’ भीड़ इनके कहे का पालन करती है और बजिंदर अपना ध्यान वापस व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति पर केंद्रित कर देते हैं.
‘यीशु, उसे छुओ!’ बजिंदर चिल्लाते हए कहते है, और वह आदमी भी जोर से चिल्लाता है. ‘उठ जाओ!’ बजिंदर उस आदमी को आज्ञा देते हैं.
और वह आदमी उठ खड़ा होता है….
भीड़ उत्साहपूर्ण ‘हाल्लेलुजाह’ के उच्चारण में व्यस्त हो जाती है, और ठीक इसी संकेत के बाद मंच पर प्रतीक्षा कर रहे बैंड- बाजे और गायक वाला दल एक फड़कता हुआ भक्ति गीत शुरू कर देता है. इस आकर्षक लय-ताल के साथ खुद पर क़ाबू पाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है. इस सबसे यह तथाकथित उपचार इतना प्रभावी हो जाता है कि ‘रोगी’ भी थिरकते संगीत के बीच पादरी के साथ भांगड़ा-शैली के नृत्य में शामिल हो जाता है और यहां तक कि मंच के नीचे थोड़ा सा घूम-टहल भी लेता है.
पंजाब के विवादास्पद ईसाई मिनिस्ट्रीज द्वारा यूट्यूब पर साझा किए गए प्रचार वीडियोज में ऊपर वर्णित किये गए दृश्य जैसे वाकये दिखाया जाना असामान्य नहीं हैं. ये मिनिस्ट्रीज इन स्वयंभू ‘पादरियों’ (पास्टर्स), ‘प्रचारकों (अपोस्त्ले)’, और यहां तक कि एक ‘प्रॉफेट’ (पैगंबर) द्वारा भी, निजी चर्चों में चलाए जाते हैं.
ये मिनिस्ट्रीज, जिनमें से लगभग सभी चमत्कारिक इलाज का वादा करते हैं, आमतौर पर उन करिश्माई युवा पुरुषों और महिलाओं द्वारा संचालित होते हैं जिनमें से अधिकांश धर्म परिवर्तन वाले ईसाई होते हैं. ये अपने हिंदू या सिख नामों को भी बरकरार रखते है, हालांकि वे अपने नामों के पहले एक ईसाई धार्मिक पदवी जरूर लगा लेते हैं.
उनके प्रतिष्ठानों (मिनिस्ट्रीज) के नाम भी एक तयशुदा प्रकार (टेम्पलेट) का अनुसरण करते हैं, जैसे कि: प्रॉफेट जिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज, अपोस्टल अंकुर योसेफ नरूला मिनिस्ट्रीज, पास्टर हरप्रीत देओल खोजेवाला मिनिस्ट्रीज, पास्टर अमृत संधू मिनिस्ट्रीज, पास्टर हरजीत सिंह मिनिस्ट्रीज, पास्टर मनीष गिल मिनिस्ट्रीज, पास्टर कंचन मित्तल मिनिस्ट्रीज, पास्टर दविंदर सिंह मिनिस्ट्रीज, पास्टर रमन हंस मिनिस्ट्रीज, आदि-आदि.
ये पादरी, जिन्हें परमेश्वर तक पहुंचने के माध्यम के रूप में देखा जाता है, दावा करते हैं कि वे हर संभव बीमारी और शारीरिक अक्षमता को ठीक कर सकते हैं, भूतों को भगा सकते हैं और यहां तक कि मृतकों को भी जीवित कर सकते हैं. उनके कहे अनुसार उनका दैवीय प्रभाव लोगों को वीजा प्राप्त करवाने, नौकरी दिलवाने, जीवन साथी की खोज करने, बच्चा पैदा करने, बेहतर राजनीतिक पद पाने आदि में मदद करने तक भी फैला हुआ है.
और इनके भक्तों की भी कमी नहीं है. इन मिनिस्ट्रीज में से कम-से-कम आधा दर्जन के पास बड़ी संख्या में अनुयायी हैं, और उनके ‘उपचार और प्रार्थना’ सत्र (हीलिंग एन्ड प्रेयर सेशंस) में हजारों की भीड़ जमा होती है. इनमे से कुछ की राज्य के लगभग सभी बड़े शहरों और कस्बों में शाखाएं भी हैं.
यह सब एक बड़ी प्रवृत्ति का हिस्सा भी हो सकता है. दिप्रिंट की एक पहले की गहन रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कैसे पंजाब में ईसाई धर्म का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है और मजहबी सिख तथा वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने जाति व्यवस्था के उत्पीड़न से बचने के लिए धर्मांतरण का विकल्प चुनना पसंद किया है. पंजाब के सीमावर्ती इलाकों, जैसे कि गुरदासपुर, में छतों पर भी छोटे-छोटे चर्च स्थापित हो रहे हैं. इन घटनाओं के बाद शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, जो पंजाब और कई अन्य राज्यों में गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है, को इन ईसाई धर्मांतरणों का ‘मुकाबला’ करने के लिए एक अभियान शुरू करना पड़ा है. सिख धर्म की सर्वोच्च धार्मिक संस्था, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने यहां तक आरोप लगाया है कि ईसाई मिशनरियां सिखों को धर्मांतरित करने के लिए धन और बल दोनों का उपयोग कर रहीं हैं.
विश्वास आधारित उपचार (फेथ हीलिंग) करने वाले इन मिनिस्ट्रीज का दावा है कि वे लोगों को परिवर्तित नहीं करना चाहते हैं, बल्कि केवल उन्हें ठीक करना चाहते हैं. लेकिन फिर भी वे उन्हें एक समुदाय जैसी भावना और दर्दनाक वास्तविकताओं के विरुद्ध सहारा प्रदान करते हैं.
उनके बढ़ते हुए प्रभाव का एक संकेत इस बात से भी मिलता है कि विधानसभा चुनावों से ठीक पहले पंजाब के कुछ शीर्ष नेताओं ने इन मिनिस्ट्रीज के चर्चों में इनके ‘आशीर्वाद’ के लिए इस आशा के साथ दौरा किया कि शायद वे वोटों में परिवर्तित हो सकें. पिछले कुछ महीनों के दौरान उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर रंधावा, राज्य कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिद्धू, कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह और परगट सिंह सहित कई विधायकों ने उनके कई सामूहिक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. हालांकि, इनमें से कई चर्च न केवल अपने बेतुके – और संभावित रूप से खतरनाक भी – दावों और ‘उपचार’ की प्रथाओं के कारण विवादों में फंस गए हैं, बल्कि उनके वित्तीय लेनदेन में कथित अनियमितताओं के साथ-साथ उनसे जुड़े कुछ प्रमुख लोगों के व्यक्तिगत आचरण के बारे में भी चिंताए व्यक्त की जा रहीं है. इनमें से एक, बजिंदर सिंह, के खिलाफ फ़िलहाल बलात्कार के एक मामले में मुकदमा भी चला रहा है.
‘उपचार’, ‘भूत भगाना, बप्तिस्मा, भविष्यवाणियां
हालांकि, इन मिनिस्ट्रीज का दावा है कि वे अपने अनुयायियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, और केवल ‘उनके जीवन को बदल रहे हैं’, फिर भी यहां होने वाली प्रार्थना, उपचार, भूत भगाने की कवायद, बपतिस्मा (ईसाई धर्म में दीक्षा) और भविष्यवाणी सत्र आदि पेंटेकोस्टल चर्च की परम्पराओं के साथ हॉली स्पिरिट (पवित्र आत्मा) के नाम पर ही किए जाते हैं.
सभी धार्मिक सभाओं को यीशु मसीह के नाम से आयोजित किया जाता है, और उपस्थित सभी लोगों को हाल्लेलुजाह के उच्चारण में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. यहां के ‘पादरी’ बाइबिल से उपदेश देते हैं और उनके चर्च के स्थल के बाहर आयोजित सत्रों को ‘क्रूसेड’ (धर्मयुद्ध) कहा जाता है.
ये मिनिस्ट्रीज ‘बपतिस्मा’ भी प्रदान करतीं हैं, जिनके दौरान अनुयायियों को पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए कहा जाता है.
प्रमुख मिनिस्ट्रीज साप्ताहिक, द्वि-साप्ताहिक, और कुछ मामलों में दैनिक, प्रार्थना और उपचार सत्र भी आयोजित करते हैं. होर्डिंग, बैनर, पोस्टर, पैम्फलेट और सोशल मीडिया के जरिए इनका जमकर प्रचार-प्रसार किया जाता है. फोन लाइनें, जिन्हें ‘प्रार्थना टावर’ कहा जाता है, सत्र में भाग लेने वालों को पंजीकृत करने के लिए चौबीसों घंटे काम करती रहतीं हैं.
ये सत्र आपने आप में काफी विलासितापूर्ण कार्यक्रम होते हैं और आमतौर पर किसी विशाल तंबू के नीचे या खुले मैदानों, जो जल्द ही पुरुषों, महिलाओं और बच्चों से भर जाते हैं, में आयोजित होते हैं. उनमें से अधिकांश गरीब तबके से और स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याओं के लिए मदद मांगने वाले होते हैं. सलीके से कपड़े पहने और अच्छी तरह से सजा-धजा पादरी एक मंच से (अधिकांश समय के लिए) भीड़ की अध्यक्षता करता है. आमतौर पर उसकी पत्नी भी साथ होती है जो कभी-कभी खुद भी छोटे-बड़े ‘उपचार’ कर सकती है.
ये कार्यक्रम आम तौर पर पंजाबी कैरोल गाते हुए और लाइव बैंड पर नृत्य करते हुए गाने-बजाने वालों के एक समूह के साथ शुरू होता है. उत्तेजक संगीत अक्सर एकत्रित लोगों के बीच उच्च स्तर की भावना और (अक्सरहां) उत्साह भी जगाता है. पादरी उन्हें जो भी करने की आज्ञा देता हैं, वे वही करते हैं: वे अपने हाथों को अपने सिर के ऊपर लहराते हैं, वे जमीन पर लेट जाते हैं, वे हिलते-डुलते हैं, वे अपने आप को उमेठते भी हैं. एक तरह से यह पूर्ण समर्पण का प्रदर्शन होता है. हालांकि, इन तमाशों का सबसे बड़ा आकर्षण तब आता है जब पादरी तात्कालिक रूप से मौके पर ही ‘चमत्कारिक उपचार’ का प्रदर्शन करता है.
इन मिनिस्ट्रीज के यूट्यूब चैनल में पादरियों को नेत्रहीनों की दृष्टि बहाल करते हुए, व्हीलचेयर पर बैठे बंधे हुए लोगों को इससे मुक्त करते हुए, और शरीर में उत्पन्न कैंसर, अल्सर और पत्थरों जैसे विकारों का काम-तमाम करते हुए दिखाया जाता है. लोगों के सिर पर हाथ रखने या उन पर पवित्र जल छिड़कने के माध्यम से सामूहिक ‘उपचार’ भी होते हैं.
‘मृतकों को पुनर्जीवित करना’ उनकी एक और विशेषता है. एक वीडियो क्लिप में प्रॉफेट बजिंदर सिंह ने एक तीन साल के बच्चे को मौत के मुंह से वापस लाने का दावा किया है. जैसे ही गायकों ने ‘यहोवा, यहोवा, यहोवा’ का नारा बुलंद किया, बजिंदर ने एक निष्क्रिय पड़ी बच्ची को उठाया और एक प्लास्टिक की बोतल से उस पर पानी के कुछ छींटों को मारने के साथ ही उसे पुनर्जीवित कर दिया.
अपोस्त्ले अंकुर नरूला तो इससे भी आगे निकल गये जब उन्होंने दावा किया कि उसने एक गर्भपात को पलट दिया और एक महिला के गर्भ में मृत एक बच्चे को फिर से जीवित कर दिया. उसने उपस्थित दर्शकों से कहा कि कोई धनी मां विश्वास के सहारे इतना लाभकारी जुआ नहीं खेलती और इसके बजाय उसने अस्पतालों में समय बर्बाद कर दिया होता.
इसके अलावा विभिन्न रंगों के भूत भगाने वाले तेल भी काफी लोकप्रिय हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि एक बार जब आप उन्हें अपने शरीर पर रगड़ते हैं और ‘हॉली स्परिट फायर’ का उच्चारण करते हैं – अर्ध-बेहोशी की हालत (ट्रान्स) जैसी अवस्था में करें तो और भी बेहतर – तो यह तुरंत आपके शरीर से बुरी आत्माओं को भगा देती है. इससे भी अधिक परेशान करने वाले तमाशे के रूप में ये पादरी शैतानी ताकतों को बाहर निकालने के नाम पर बच्चों सहित इनके तथाकथित ‘कब्जे वाले’ लोगों के साथ कुश्ती करते नजर आते हैं.
जब कोई पादरी आत्मा को बाहर निकालता है या उसे ‘अपने कब्जे में’ करता है, तो ‘प्रेज द लार्ड’ और ‘हाल्लेलुजाह’ जैसी तेज आवाजों के बीच आनन्दित और उन्मादी नृत्य भी होता है.
जो लोग ठीक हो चुके हैं या जिनकी मनोकामनाएं पूरी हुई हैं, उनकी द्वारा दी गयी गवाही भी इन सत्रों का एक बड़ा हिस्सा हैं. कभी-कभी, अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी या अन्य सफलताओं के रूप में काफी अच्छा परिणाम प्राप्त करने का दावा करने वाले लोगों द्वारा बीज बोने (दान करने) के लाभों को भी लोगों के साथ साझा किया जाता है.
यहां भविष्यवाणी सत्र भी होते हैं, जहां पादरी भविष्य की घटनाओं बारे में भविष्यवाणियां करते हैं या उन घटनाओं के लिए श्रेय लेने का दावा करते हैं जिनके बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने फलां बॉलीवुड सितारों के दुर्भाग्य या प्राकृतिक आपदाओं सहित कई चीजों का पूर्वाभास किया था.
भीड़ और मंच का प्रबंधन करने वाले सैकड़ों स्वयंसेवकों और मिनिस्ट्रीज के कर्मचारियों के सहयोग के साथ हर कार्यक्रम के हर मिनट को सावधानीपूर्वक व्यवस्थित किया जाता है. हरेक चमत्कार को कई कैमरों द्वारा कैद किया जाता है और बाद में इनके वीडियो मिनिस्ट्रीज के सोशल मीडिया हैंडल पर अपलोड किए जाते हैं. प्रमुख मिनिस्ट्रीज के यूट्यूब और फेसबुक पेज पर लाखों अनुयायी हैं, और कुछ सत्र, विशेष रूप से फेथ हीलिंग के सत्र, लाखों बार देखे जाते हैं (यहां उदाहरण के लिए….)
जब ‘उपचार’ में हो जाती है गड़बड़ ….
इन तथाकथित चमत्कारी ‘चिकित्सकों’ के बारे में ऐसी खबरें आई हैं कि कई बार उनके द्वारा मरीजों को अपना पहले से चल रहा इलाज छोड़ने के लिए कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी उनकी स्थिति और बिगड़ जाती है या फिर उनकी मृत्यु भी हो जाती है, लेकिन इस तरह की बहुत कम शिकायतें पुलिस तक पहुंचती हैं.
हालांकि, अप्रैल 2021 में मुंबई के एक परिवार ने पंजाब में पुलिस से शिकायत की थी कि प्रॉफेट बजिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज ने कैंसर से पीड़ित एक 17 वर्षीय लड़की के इलाज के लिए उनसे 80,000 रुपये का शुल्क लिया था. शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसकी मृत्यु के बाद, मिनिस्ट्रीज के कर्मचारियों ने उसे ‘वापस लाने’ की पेशकश करते हुए और अधिक पैसे की मांग की थी.
करतारपुर के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) सुखपाल सिंह रंधावा के मुताबिक, इस मामले में जांच अभी जारी है. डीएसपी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम शिकायतकर्ताओं के बयान दर्ज कर रहे हैं और सबूत जुटा रहे हैं.’
ऐसी भी चिंताएं जताई जा रहीं हैं कि ये ‘फेथ हीलिंग’ मिनिस्ट्रीज अपने अनुयायियों की तंदुरुस्ती की कीमत पर अपने लाभ के लिए अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं.
एक तर्क-आधारित (रेशनलिस्ट) संगठन तर्कशील सोसाइटी, के संस्थापक मेघ राज मित्तर ने कहा कि यह खेदजनक विषय है कि राजनेता भी ऐसे मिनिस्ट्रीज को प्रोत्साहित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘पैसे कमाने के लिए अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है. यह उन लोगों को जिन्हें उनके खिलाफ काम करना चाहिए सहित, सभी को पसंद आता है. लोगों को इनके जालों में फंसने से रोकने का एकमात्र तरीका तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करना है.’
तर्कशील सोसाइटी के पंजाब चैप्टर के प्रभारी हेमराज स्टेनो ने भी कुछ ऐसे ही बिंदु सामने रखे. उन्होंने कहा, ‘ये उपचार करने वाले ‘धोखेबाज’ हैं. यदि वे किसी मृत व्यक्ति को जीवित कर सकते हैं या किसी अंधे व्यक्ति की आंखों की रोशनी फिर से बहाल कर सकते हैं तो हम उन्हें 5 लाख रुपये देंगे – बशर्ते उस मृत शरीर या अंधे व्यक्ति को हम लाएं, और वे (फेथ हीलर्स) सार्वजनिक रूप से अपना ‘चमत्कार’ दिखाएं.’
उन्होंने यह भी कहा कि यह बड़े अफ़सोस की बात है कि सरकार इन ‘फेथ हीलर्स’ को दण्डित करने के लिए कोई काम नहीं कर रही है. वे कहते हैं ‘राजनेताओं के लिए, ये लोग वोट बैंक बन जाते हैं.’
स्टेनो ने कहा कि अंधविश्वास की प्रवृत्ति सभी धर्मों में व्याप्त है और इन सभी का विरोध किया जाना चाहिए.
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