कहा- 300 अरब डॉलर नाकाफी; विकसित देशों पर बढ़ा दबाव
25 नवंबर, 2024 – दुनिया : भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप-29) में नया जलवायु वित्त समझौता खारिज कर दिया। इस वैश्विक मंच पर अपने दो टूक संदेश में भारत ने कहा कि 300 अरब डॉलर नाकाफी हैं। नाइजीरिया, मलावी व बोलीविया ने भी भारत का समर्थन किया। अब विकसित देशों पर दबाव बढ़ गया है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में वैश्विक दक्षिण के लिए 300 अरब डॉलर के नए जलवायु वित्त पैकेज को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि समझौते की राशि बहुत कम और देर से दी गई है। मौजूदा स्वरूप में इसे कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। भारत ने कॉप-29 के अध्यक्ष पद व संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन अधिकारी पर समझौते को थोपने और आपत्ति दर्ज करने का मौका नहीं देने का आरोप लगाया। इस बीच जलवायु कार्यकर्ताओं ने कॉप-29 के आयोजन स्थल के बाहर सम्मेलन के अंतिम दिन भी प्रदर्शन जारी रखा। कार्यकर्ताओं की मांग है कि जलवायु समस्याओं को देखते हुए वित्त बढ़ाया जाना चाहिए।
नाइजीरिया, मलावी व बोलीविया ने भारत का समर्थन करते हुए नए जलवायु वित्त पैकेज को एक मजाक बताया। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आयोजित जलवायु सम्मलेन के समापन सत्र में रविवार को भारत की तरफ से कड़ा बयान देते हुए आर्थिक मामलों के विभाग की सलाहकार चांदनी रैना ने समझौते को अंगीकार करने की प्रक्रिया को अनुचित व कुछ निश्चित प्रभावों के लिए प्रबंधित बताया। उन्होंने कहा, यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में अविश्वास को दर्शाता है। 300 अरब डॉलर विकासशील देशों की जरूरतों व प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं है। यह नजरों का धोखा है। सम्मेलन के परिणाम स्पष्ट रूप से विकसितदेशों की अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की अनिच्छा को दर्शाते हैं।
आग्रह के बावजूद भारत को नहीं दिया गया बोलने का मौका
भारत ने कहा कि उसने सम्मेलन में नए पैकेज को अंगीकार किए जाने से पहले बोलने का मौका देने का आग्रह किया था, जिसे नजरअंदाज किया गया। रैना ने कहा, हमने अध्यक्ष व उसके सचिवालय को सूचित किया था कि हम पैकेज को अंगीकार करने के किसी भी निर्णय से पहले अपनी बात रखना चाहते हैं। हालांकि, यह सभी जानते हैं कि सबकुछ पहले से प्रबंधित था। हम इस घटनाक्रम से बहुत निराश हैं।
विकसित देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार, इसलिए चाहिए वित्तीय मदद
भारतीय आरि्थक सलाहकार रैना ने कहा, विकसित देश ऐतिहासिक रूप से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार रहे हैं। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे विकासशील व निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को वित्त, प्रौद्योगिकी तथा क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करें, ताकि उन्हें गर्म होती दुनिया से निपटने में मदद मिल सके। उन्होंने 2009 में 100 अरब डॉलर के पैकेज का एलान किया था। वर्ष 2020 तक पैकेज के सिर्फ 70 प्रतिशत लक्ष्य को ही हासिल किया सका और वह भी कर्ज की शक्ल में। 300 अरब डॉलर से विकासशील देशों का कुछ नहीं होने वाला। भारत की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद अब विकसित देशों पर जलवायु वित्त को बढ़ाने का दबाव बढ़ गया है।
प्रभावित देशों को ही उपायों के लिए किया जा रहा मजबूर
भारतीय प्रतिनिधि ने कहा, विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं और उन्हें ही कम कार्बन वाले रास्ते अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। विकासशील देशों पर इसके जरिये उनके विकास को खतरे में डालने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। उन्हें विकसित देशों के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) जैसे एकतरफा उपायों का भी सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा पैकेज विकासशील देशों की जलवायु परिवर्तन को अपनाने की क्षमता को प्रभावित करेगा। इससे उनका विकास गहरे तौर पर प्रभावित होगा।
जलवायु समझौते को लेकर गहराया असंतोष; अल्प विकसित देशों ने भी बताया निराशाजनक
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में वैश्विक दक्षिण के लिए 300 अरब डॉलर के नए जलवायु वित्त पैकेज पर भले ही सहमति बन गई हो, लेकिन बड़ी संख्या में देशों की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि इससे हर कोई खुश नहीं है। अल्प विकसित देशों (एलडीसी) समूह के अध्यक्ष इवांस नेजेवा ने इसे निराशाजनक बताया। जेनेवा ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, हमने जलवायु संकट से सबसे कमजोर लोगों को बचाने व अपने ग्रह को स्वस्थ बनाने का मौका खो दिया। नए जलवायु वित्त लक्ष्य को लेकर गंभीर चिंताएं बनी हुई हैं। हमारे साथ खड़े होने वाले सभी लोगों का धन्यवाद। हम लड़ते रहेंगे।
पूर्व यूएन अधिकारी ने सम्मेलन को बताया विफल संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की पूर्व उच्चायुक्त मैरी रॉबिंसन ने कहा कि यूएन जलवायु सम्मेलन लगभग विफल रहा। यह एक निराशाजनक समझौते के साथ समाप्त हुआ। यूनियन ऑफ कंसंर्ड साइंटिस्ट्स की नीति निदेशक रेचल क्लीटस ने जलवायु वित्त वार्ता के अजरबैजानी अध्यक्षता की आलोचना की।
अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहा कॉप : अरुणाभ
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायनरमेंट एंड वॉटर के सीईओ व वरिष्ठ पर्यावरणविद अरुणाभ घोष ने कहा कि कॉप29 अपने मूल उद्देश्यों पर खरा उतरने में विफल रहा,। वास्तविक वित्तीय सहायता पर फैसले की जगह हमने खोखले वादों का दोहराव देखा। विकसित देश अपने वादे के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने में विफल रहे हैं। इसके बावजूद वे वैश्विक दक्षिण पर बोझ डालने में भी लगे रहते हैं।
सौजन्य : अमर उजाला
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