The Punjab Pulse News Bureau
09 जुलाई, 2024 – देश : करगिल युद्ध के दौरान थल सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक बताते हैं कि बटालिक सेक्टर के चोरबाट ला के पूरब में साउथ ग्लेशियर और सब सेक्टर वेस्ट (तुर्तुक चालुंका) में भी करगिल सेक्टर की तरह पाकिस्तानी सेना की गतिविधियां देखी जा रही थीं। खास बात यह थी कि उस इलाके का भूगोल बेहद दुर्गम होने की वजह से लाइन ऑफ कंट्रोल और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से सटे कुछ इलाकों में सेना की तैनाती नहीं थी।
भारतीय सेना अपने प्रोफेशनलिज्म के लिए पूरी दुनिया के सेनाओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जहां सियासी दलों के बहकावे में आकर लोगों की सांप्रदायिक भावनाएं उबाल लेनी लगती हैं, तो वहीं भारतीय सेना जात-पात से ऊपर है। जहां सभी धर्मों का बराबर मान-सम्मान किया जाता है, तो सभी धर्मों के त्योहार पूरे हर्षोंल्लास से मनाए जाते हैं। आज से 25 साल पहले करगिल जंग में यही मिसाल देखने को मिली थी। जहां भारतीय सेना की 11 राजपूताना राइफल्स के कैप्टन हनीफ उद्दीन ने न केवल अपने शौर्य से पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए, बल्कि जब वीरगति को प्राप्त हुए, तो उनका पार्थिव शरीर 43 दिन तक बर्फ में पड़ा रहा। जहां उनकी शहादत हुई, आज भी उस जगह पर भारतीय सेना हर दिन मौत को चुनौती देती है। वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन हनीफ के शौर्य और बलिदान और उनके परिवार के संघर्षों की दास्तां किसी भी भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर देगी।
तुर्तुक में गतिविधियां बढ़ा रहा था पाकिस्तान
करगिल युद्ध के दौरान थल सेनाध्यक्ष रहे जनरल वीपी मलिक बताते हैं कि बटालिक सेक्टर के चोरबाट ला के पूरब में साउथ ग्लेशियर और सब सेक्टर वेस्ट (तुर्तुक चालुंका) में भी करगिल सेक्टर की तरह पाकिस्तानी सेना की गतिविधियां देखी जा रही थीं। खास बात यह थी कि उस इलाके का भूगोल बेहद दुर्गम होने की वजह से लाइन ऑफ कंट्रोल और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल से सटे कुछ इलाकों में सेना की तैनाती नहीं थी। मई 1999 में दोनों देशों के बीच पेट्रोल पार्टी के बीच घुसपैठ के बाद जब हमारी सीमा में 200-250 की घुसपैठ का पता चला, 102 इन्फैंट्री ब्रिगेड के ब्रिगेडियर पीसी कटोच ने फैसला लिया कि चोरबाट ला क्षेत्र में हुई घुसपैठ की कोशिशों को विफल किया जाए। तुर्तुक लुंगपा एक मार्ग और नाला था, जो लद्दाख से तुर्तुक के बाद श्योक नदी तक जाता था। श्योक को यारकंडी उइगर में मौत की नदी कहा जाता है, जो पाकिस्तान में घुसने से पहले तुर्तुक के विशाल इलाकों से होकर बहती है और स्कार्दू में सिंधु नदी में मिल जाती है। दुश्मन को रोकने के लिए इसके आसपास की सभी चौकियों पर कब्जा करने का फैसला लिया गया। इसके बाद 9 महार बटालियन ने तुर्तुक लुंगपा के पश्चिम में औऱ दूसरी कंपनी को त्याक्षी माउंटेन स्पर पर रामदान लुंगपा पर भेजा गया है।
सियाचिन से वापस लौट रहे थे हनीफ
जनरल मलिक बताते हैं कि कैप्टन हनीफ उद्दीन और उनकी 11 राजपूताना राइफल्स सियाचिन ग्लेशियर में अपना चार महीने का लंबा कार्यकाल पूरा करके वास लौटी थी। आम तौर पर जब कोई यूनिट सियाचिन की तैनाती से वापस आती है, तो उन्हें आराम का समय दिया जाता है। लेकिन करगिल युद्ध ने उस समय हालात बदल दिए थे। कैप्टन हनीफ उद्दीन और उनकी कंपनी सियाचिन बेस कैंप में थे, जब 12 जाट बटालियन ने सब-सेक्टर वेस्ट के तुर्तुक सेक्टर में दुश्मन की घुसपैठ की सूचना दी। बटालिक सेक्टर में भारतीय सैनिकों और पाकिस्तानी घुसपैठियों के बीच भीषण झड़पों के चलते, 11 राजपूताना राइफल्स तुर्तुक-लुंगपा से प्वाइंट 5500 चोटी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ी। यह पूरा इलाका गहरी दरारों से भरा हुआ था, और संचार का अंतिम बिंदु एक छोटी सी पोस्ट जंगपाल थी, जो करचेन ग्लेशियर से छह किलोमीटर पहले थी। 22 मई 1999 तक, 11 राज रिफ के सीओ कर्नल अनिल भाटिया ने सुनिश्चित किया था कि बटालियन ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है, और आगे कोई घुसपैठ नहीं हो सकती।
खत्म हो गया था गोलाबारूद, सब सेक्टर हनीफ नाम रखा
छह-सात जून 1999 की रात को, प्वाइंट 5590 पर दुश्मन के ठिकानों की पहचान करने की कोशिश में, कैप्टन हनीफ उद्दिन ने करचेन ग्लेशियर में गश्त करने का फैसला किया। नायब सूबेदार मंगेज सिंह के साथ, उन्होंने एक विशेष गश्ती मिशन का नेतृत्व किया, जिसमें एक जेसीओ और बारह अन्य रैंक के सैनिक शामिल थे। उनका गश्ती दल माइनस जीरो के तापमान में 18500 फुट की ऊंचाई पर आगे बढ़ते हुए, दुश्मन के ठिकानों से 200 मीटर के करीब पहुंच गया। दुश्मन ने निकट आ रहे गश्ती दल को देख लिया और उन पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। कैप्टन हनीफ उद्दिन और दो अन्य जवानों से दुश्मन की गोलीबारी का सामना करने का फैसला किया, ताकि अपने लोगों को दुश्मन की गोलीबारी से बचाया जा सके और उन्हें बाहर निकलने का रास्ता दिया जा सके। इस भीषण गोलीबारी में कैप्टन हनीफ उद्दीन को कई गोलियां लगीं, उनका गोलाबारूद खत्म हो गया था, फिर भी वे तब तक एक इंच भी नहीं हिले, जब तक कि उनकी टीम सुरक्षित स्थान पर नहीं पहुंच गई। प्वाइंट 5590 की बर्फीली ऊंचाइयों पर लड़ते हुए कैप्टन हनीफ उद्दिन वीर गति को प्राप्त हुए। अपने युवा अफसर के बलिदान से प्रेरित होकर, उनकी टीम ने पहाड़ पर पैर जमा लिया और सभी बाधाओं के बावजूद कब्जा बनाए रखा। बाद में इस सब सेक्टर वेस्ट (तुर्तुक चालुंका) का नाम बदल कर कैप्टन हनीफ उद्दिन के सम्मान में उसका नाम सब सेक्टर हनीफ कर दिया गया।
कंप्यूटर फील्ड की बजाय सेना को चुना
वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन हनीफ उद्दिन आईएमए से पास होने के ठीक दो साल बाद तुर्तुक में शहीद हुए। कैप्टन हनीफ उद्दिन ने ईद और दिवाली दोनों मनाईं, क्योंकि मां हिंदू औऱ पिता मुस्लिम थे। वह उस 11 राजस्थान राइफल्स बटालियन का हिस्सा थे, जिसका युद्धघोष है ‘राजा राम चंद्र की जय’। 23 अगस्त 1974 को दिल्ली में जन्मे कैप्टन हनीफ उद्दिन की मां हेमा अजीज शास्त्रीय गायक और पिता अजीज उद्दीन सूचना और प्रसारण मंत्रालय में काम करते थे। कैप्टन हनीफ उद्दीन अपने शुरुआती सालों में पुरानी दिल्ली में अपनी दादी के साथ रहे। आठ साल की उम्र में अपने पिता के निधन के बाद ही वह अपनी मां के साथ रहने लगे। वह अपने स्कूल और कॉलेज में एक असाधारण छात्र थे। वे कंप्यूटर के एक्सपर्ट थे। उनके पास कंप्यूटर फील्ड में कैरियर बनाने सुनहरा मौका था, लेकिन उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला किया।
43 दिन बाद देखी शहीद बेटे की आखिरी झलक
दिल्ली के द्वारका में सेक्टर-18 में वीर आवास कॉलोनी में अपने छोटे से अपार्टमेंट में बैठी उनकी मां हेमा अजीज कहती हैं, “जब मैं नौकरी करती थी, तो मेरा काम मेरी पहली प्राथमिकता होता था। हनीफ के लिए भी कुछ ऐसा ही था। भरी आंखों के साथ वह कहती हैं, लेकिन मुझे गर्व है कि वह अपना कर्तव्य निभाते हुए शहीद हो गए। जब उनके वीरगति को प्राप्त होने की खबर मिली तब मैं बेंगलुरु में अपनी बहन से मिलने गई थी। मेरे बड़े बेटे ने मुझे दिल्ली से फोन किया। प्रेस, परिवार के सदस्य, पड़ोसियों से घर भरा हुआ था। लेकिन मेरे बेटे का शव वहां नहीं था। दुश्मन की गोलीबारी के कारण युद्ध के आखिर तक हनीफ का शव नहीं मिल सका। उनकी मौत के 43 दिन बाद उनका शव मिला। 18 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने अपने वीरों के बर्फ जमे हुए शवों को बाहर निकलने के लिए अभियान चलाया, जिनमें से एक कैप्टन हनीफ उद्दीन की पार्थिव शरीर भी था। अपने कर्तव्य से परे अनुकरणीय नेतृत्व और वीरता के प्रदर्शन के लिए, कैप्टन हनीफ उद्दीन को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
‘नहीं चाहती दूसरी मां का बेटा अपनी जान जोखिम में डाले’
जनरल मलिक बताते हैं कि जब उन्होंने हनीफ की मां हेमा अजीज से दिल्ली के मयूर विहार स्थित अपार्टमेंट में मुलाकात की और उन्हें बताया कि हनीफ के शव को फिलहाल वापस नहीं लाया जा सकता, क्योंकि दुश्मन लगातार गोलीबारी कर रहा है, तो मां हेमा अजीज ने बड़ी बहादुरी से कहा, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे मृत बेटे के शव को निकालने के लिए किसी दूसरी मां का बेटा अपनी जान जोखिम में डाले, लेकिन जब युद्ध समाप्त हो जाएगा, तो मैं उस जगह पर जाना चाहती हूं, जहां मेरे बेटे ने अपनी आखिरी सांस ली थी।’ हनीफ का शव 43 दिनों तक खुले आसमान और गिरती बर्फ के नीचे पड़ा रहा, उसका खूबसूरत चेहरा एक ठंडे मास्क में जम गया था। उनके शव को आखिरकार नीचे लाया, जहां दिल्ली में उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ दफनाया गया।
सौजन्य : अमर उजाला
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