ये थीं समिति की अहम सिफारिशें; क्या होंगे लाभ, जानिए सबकुछ
One Nation One Election Explained Story केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को सरकार के एक राष्ट्र एक चुनाव प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जिसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है साथ ही शहरी निकाय और पंचायत चुनाव 100 दिनों के भीतर कराने का प्रस्ताव है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट में ये सिफारिशें की गई हैं।
19 सितम्बर, 2024 – नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव के बाद उभरे नए राजनीतिक समीकरणों के बीच एक देश-एक चुनाव को लेकर खड़े हो रहे सवालों से फिलहाल पर्दा उठा गया है। मोदी कैबिनेट ने एक देश-एक चुनाव पर बनी राम नाथ कोविन्द समिति की अनुशंसा को मंजूरी दे दी है। साथ ही संकेत दिया है कि सुधार के अपने एजेंडे से सरकार पीछे हटने वाली नहीं है। समिति ने यह सिफारिश इसी वर्ष मार्च में की थी। माना जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में इसे लेकर विधेयक पेश किया जाएगा और इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाएगा।
32 राजनीतिक दलों का समर्थन
कैबिनेट के इस फैसले के बाद राजनीति भी गर्मा गई है। कांग्रेस, आप सहित कई विपक्षी दलों ने जहां इसे सिरे से खारिज किया है, वहीं भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने इसका स्वागत किया। खास बात यह है कि एक देश-एक चुनाव को लेकर गठित कोविन्द समिति ने इस पर सभी राजनीतिक दलों से राय ली थी।
इस दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया था और कहा था कि इसे जल्द लागू किया जाए। जबकि कांग्रेस सहित करीब 15 राजनीतिक दल इसके विरोध में थे। यही वजह थी कि समिति ने अधिकांश राजनीतिक दलों की राय मानते हुए एक देश-एक चुनाव का समर्थन किया और देश के लिए इसे जरूरी भी बताया था।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ
एक देश-एक चुनाव को लेकर कैबिनेट में लिए अहम फैसले की जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्वनी वैष्णव ने बताया कि देश में 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते रहे हैं। लेकिन इसके बाद विधानसभाओं के बीच में भंग होने से इनमें बदलाव आया। मौजूदा समय में स्थिति यह हो गई है कि हर समय देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते रहते हैं। इसका असर देश के विकास पर पड़ता है।
लागू करने के उपायों पर देशभर में चर्चा
उन्होंने बताया कि इसे लेकर 2015 में संसदीय समिति ने भी अपनी सिफारिश की थी। प्रधानमंत्री मोदी भी पिछले कई वर्षों से अलग-अलग मंचों के जरिये एक देश-एक चुनाव की बात मजबूती से उठाते रहे हैं। एक सवाल के जवाब में वैष्णव ने बताया कि संसद में जल्द ही इसे लेकर विधेयक पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोविन्द समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह बनाया जाएगा और अगले कुछ महीनों के दौरान इसे लागू करने के उपायों पर देशभर में चर्चा की जाएगी।
80 प्रतिशत लोगों का समर्थन
इस दौरान सरकार इस पर आमसहमति बनाने की दिशा में काम करेगी। यह विषय ऐसा है जो देश को मजबूत बनाएगा। वैष्णव ने कहा कि विपक्षी पार्टियां अब शायद अंदरूनी दबाव महसूस करेंगी क्योंकि समिति की परामर्श प्रक्रिया के दौरान 80 प्रतिशत लोगों खासकर युवाओं ने इसका काफी समर्थन किया था।
फिलहाल तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव लोकसभा चुनावों से छह महीने पहले होते हैं। जबकि महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और दिल्ली के चुनाव लोकसभा चुनाव से पांच-सात महीने बाद होते हैं। बाकी राज्यों में एक से तीन वर्ष के अंतराल में चुनाव होते हैं।
एक देश-एक चुनाव पर समिति की अहम सिफारिशें
- एक देश-एक चुनाव की योजना को देश में दो चरणों में लागू किया जाए। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाए।
- दूसरे चरण में नगरीय निकायों और पंचायतों के चुनाव कराए जाएं। लेकिन इन्हें पहले चरण के सौ दिन के भीतर ही कराया जाए।
- लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही राज्यों की विधानसभा के चुनाव कराए जाने पर विचार किया जाए।
- अगर किसी विधानसभा का चुनाव अपरिहार्य कारणों से एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तिथि में होगा, लेकिन कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होगा।
- यदि किसी राज्य की विधानसभा बीच में भंग हो जाती है, जो नया चुनाव विधानसभा के बाकी के कार्यकाल के लिए ही कराया जाए।
- सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार किया जाए। अभी लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग मतदाता सूची है, जिसे केंद्रीय निर्वाचन आयोग तैयार करता है। जबकि नगरीय निकाय और पंचायतों की अलग मतदाता सूची होती है, जिसको राज्य निर्वाचन आयोग तैयार करता है।
- इसे अमल में लाने के लिए एक कार्यान्वयन समूह गठित किया जाए।
- समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश भी की है जिनमें से अधिकांश में राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी।
- समान मतदाता सूची और समान मतदाता पहचान पत्र से जुड़े कुछ प्रस्तावित बदलावों के लिए कम से आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की जरूरत होगी।
क्या होंगे लाभ
- देश को बार-बार चुनाव के भंवर में नहीं फंसना होगा।
- विकास कार्यों की रफ्तार सुस्त नहीं पड़ेगी।
- अभी चुनाव के चलते नए कामकाज रुक जाते हैं।
- देश पर बार-बार के चुनावों के कारण वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा।
- केंद्र और राज्य के बीच कटुता की स्थिति नहीं बनेगी।
कई दलों ने साधी चुप्पी
एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने समाज के विभिन्न वर्गों से परामर्श किया था। इनमें 62 राजनीतिक दलों से भी राय मांगी गई थी। भाजपा, राजग की कई सहयोगी पार्टियों सहित 32 दलों ने सहमति जताई है, जबकि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, डीएमके, एआईएमआईएम, सीबीआई (एम) समेत 15 दलों ने प्रस्ताव का विरोध किया।
खास बात है कि जिन 15 पार्टियों ने तटस्थता का भाव दिखाते हुए चुप्पी साध रखी है, उनमें राजग और आइएनडीआइए दोनों के सहयोगी हैं। उदाहरण के तौर पर तेलुगु देसम पार्टी, जम्मू-कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस, जनता दल (एस), राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकदल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राकांपा, बीआरएस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे दलों ने समिति के बार-बार के अनुरोध पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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