31 किसानों पर लगा जुर्माना; टीमें अलर्ट
अमृतसर जिले में पराली जलाने के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। मात्र नौ दिनों में ही 51 केस सामने आ चुके हैं। प्रशासन ने 31 किसानों पर 67500 रुपये का जुर्माना लगाया है। पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण और पर्यावरणीय नुकसान को देखते हुए किसानों से अपील की जा रही है कि वे पराली को जलाने के बजाय खेतों में ही मिला दें।
24 सितम्बर, 2024 – अमृतसर : जिले में सख्ती और जागरूक करने के बावजूद पराली जलाने के केस लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अमृतसर जिले में मात्र नौ दिन में ही 51 के करीब पराली जलाने के मामले सामने आ चुके हैं। पीपीसीबी ने इनमें से 31 जगहों पर पराली को आग लगने की पुष्टि की है।
प्रशासन की तरफ से अब तक 31 किसानों को 67,500 रुपये जुर्माना किया गया है। इसमें से 32,500 रुपये जुर्माना वसूला भी जा चुका है। जिले में पराली जलाने के ज्यादा केस अमृतसर-2 और मजीठा में सामने आ रहे हैं। जिले में 22 सितंबर तक अमृतसर-2 में 15, मजीठा में 15, अमृतसर-1 में आठ, बाबा बकाला में पांच, अजनाला में एक और लोपोके में एक केस सामने आया है।
पराली जलाने के ज्यादा केस आने की संभावना
जिले में इस बार पिछली बार के मुकाबले ज्यादा रकबे में धान की फसल लगाई गई है। ऐसे में इस बार पराली जलाने के केस भी ज्यादा आने की संभावना है। जिले में इस बार 34 हजार हेक्टेयर में धान की फसल लगाई गई है और अनुमानित 2,45,000 मीट्रिक टन पैदावार हुई है। वहीं, पिछले वर्ष 41,149 हेक्टेयर में फसल लगाई गई थी, जिसमें 2,94,585 मीट्रिक टन की पैदावार हुई। इससे पहले वर्ष 2022-23 में 72,943 हेक्टेयर में धान लगाया गया, जिसमें 4,90,000 मीट्रिक टन पैदावार हुई। अब फसल की कटाई हो रही है तो किसान अगली मटर की फसल बीजने के लिए खेतों को जल्द खाली करने के लिए पराली को आग लगा रहे हैं।
अमृतसर में 22 सितंबर तक पराली जलाने के केस
इलाका | केस |
अमृतसर-2 | 15 |
मजीठा | 15 |
अमृतसर-1 | 8 |
बाबा बकाला | 5 |
अजनाला | 1 |
लोपोके | 1 |
(नोट : जांच में 25 जगहों पर पराली को आग लगने की हुई पुष्टि)
जिले में 51 जगहों पर आग लगने की सूचना मिली थी और सभी स्थानों पर टीमें मौके पर पहुंची, जिनमें से 31 खेतों में पराली को आग लगाने की पुष्टि हुई, जिसके चलते उक्त खेतों के मालिकों को 67,500 रुपये जुर्माना किया गया, जिसमें से 32,500 रुपये की वसूली मौके पर ही कर ली गई है। डीसी की हिदायतों पर टीमें दिन रात खेतों में नजर रख रही है और तहसील स्तर पर एसडीएम इन टीमों की अगुआई कर रहे हैं।
सुखदेव सिंह, एक्सईएन, पीपीसीबी
डीसी ने माना मटर की खेती के लिए पराली को लगा रहे आग
डीसी साक्षी साहनी का कहना है कि किसान धान के बाद अपने खेतों में मटर की फसल लगाते हैं। इसके लिए वह खेत को जल्द खाली करने के चक्कर में पराली को जला देते हैं। मटर की खेती करने के बाद उस जमीन का इनसिटू कैसे किया जाना है, उसके लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों से राय ली जा रही है। किसान खेतों में पराली न जलाएं, इसके लिए प्रशासन हरसंभव प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा कि सभी एसडीएम को अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर जहां किसानों को समझाने को कहा गया है, वहीं जहां भी पराली जलाने की शिकायत मिलती है, उन क्षेत्रों में किसानों पर कार्रवाई करने को भी कहा है। किसानों के लिए फ्री मशीनरी उपलब्ध करवाई गई है। इतना ही नहीं इनके लिए बेलरों का बंदोबस्त भी किया गया है। मुक्तसर, गुरदासपुर व अन्य जिलों से बेलर मंगवाए गए हैं।
डीसी साक्षी साहनी ने कहा कि इन बेलरों को टोल टैक्स से फ्री पास की भी सुविधा है। वह पराली को लेकर गुरदासपुर व अन्य जिलों में आसानी से आ जा सकते हैं। कुछ किसान ऐसे हैं, जिनके पास ट्रैक्टर-ट्राली नहीं है और वह ट्रैक्टर-ट्राली व उसमें लगने वाले डीजल खर्च के कारण पराली को खेतों में नहीं मिला पाता है। ऐसे छोटे किसानों की पहचान की गई है। जो ढाई एकड़ जमीन वाले किसान हैं, उनकी पराली की देखभाल का जिम्मा प्रशासन ने लिया है। उन खेतों में प्रशासन द्वारा फ्री पराली का प्रबंधन किया जा रहा है। अन्य किसान बेलरों की सहायता ले सकते हैं, उनके नंबर भी जारी किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं इसके लिए लघु सचिवालय स्थित एक कंट्रोल रूम भी बनाया गया है।
इनसे सीखें जिले के किसान
जिला प्रशासन जहां किसानों को पराली न जलाने को प्रेरित करने में अपना समय और पैसे खर्च कर रहा है, वहीं अजनाला ब्लाक के गांव भोएवाली का किसान गुरदेव सिंह पिछले पांच साल से बिना पराली जलाए गेहूं की बिजाई करके इलाके में कई किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
गुरदेव का कहना है कि वह 2019 से 20 एकड़ रकबे में गेहूं की बिजाई बिना पराली जलाए कर रहा है, जिससे उसकी यूरिया खाद की मात्रा लगभग आधी रह गई है और झाड़ में डेढ़ से दो क्विंटल प्रति एकड़ की वृद्धि हुई है। उसने बताया कि वह इसके लिए पराली को बेलर से बाहर निकालने का काम भी नहीं करता बल्कि पराली को खेतों में ही मिट्टी में मिला देता है, इसके लिए वह हैप्पी सीडर और सुपर सीडर का इस्तेमाल करता है। उसने बताया कि पहले दो साल तो उसे इसके फायदे का कोई स्पष्ट पता नहीं चला, लेकिन उसके बाद खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ने लगी और उसे यूरिया खाद की मात्रा कम करनी पड़ी।
गुरदेव ने बताया कि अब वह गेहूं की फसल के लिए प्रति एकड़ दो बोरी यूरिया ही डालता है, जबकि पहले वह तीन से चार बोरी यूरिया का इस्तेमाल करता था। उसने बताया कि अब उसके खेतों में न तो वर्षा का पानी लंबे समय ठहरता है और न ही मिट्टी बहुत ज्यादा सख्त होती है, जिससे खेत को बीजने और जोतने में परेशानी नहीं आती। उसने किसानों से अपील की कि वह पराली को जलाने या बेलर से बाहर निकालने के बजाय खेतों में ही मिला दें, ताकि उनके खेतों की मिट्टी उपजाऊ हो और खेती खर्चे कम हों।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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