The Punjab Pulse News Bureau
महाभारत के समालोचनात्मक संस्करण प्रकाशित करने का भागीरथी प्रयास भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के विद्वानों द्वारा किया गया। श्रीमद्भवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद हो चुका था। महाभारत के महत्व को देखते हुये यूरोप के विद्वानों ने महाभारत का एक अंतरराष्ट्रीय संस्करण तैयार करने का प्रयास किया। प्रथम विश्व-युद्ध के कारण इस योजना में बाधा पड़ी और उसे त्याग दिया गया। तब भण्डारकर शोध संस्थान ने महाभारत का समालोचनात्मक संस्करण लिखने हेतु एक संपादक मण्डल गणित किया। भगवान शिव का पुराण पीडीएफ में डाउनलोड करें। श्री उतगीकर महोदय इसके संपादक बनाये गये।
1924 ई. में उतगीकर महोदय के त्याग-पत्र देने के पश्चात् प्रख्यात संस्कृत विद्वान वी. एस. सुकथोकर को मुख्य संपादक नियुक्त किया गया। महाभारत के आदिपर्व का प्रथम भाग 1927 ई. में प्रकाशित हुआ। 1933 ई. तक विस्तृत भूमिका सहित संपूर्ण आदिपर्व प्रकाशित हो गया। यह एक प्रशंसनीय, सराहनीय, ऐतिहासिक कार्य था। ऑल इंडिया ओरिएंटल कांफ्रेन्स, द इन्टरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरिएण्टलिस्ट एवं अमेरिकन ओरिएण्टल सोसाइटी आदि सभी संस्थाओं ने महाभारत के इस समालोचनात्मक संस्करण की सराहना की।
सर्वश्री के. एम. झाबरवाला ने अपने लेखों में शांति पर्व में भीष्म द्वारा नैतिक व्याख्यान, राजा के कर्तव्यों, युद्ध के नियमों, प्रशासन एवं सामाजिक व्यवस्था में सुधार के दृष्टांत दिये हैं।
एन. सी. बनर्जी महोदय ने अपने लेख में तत्युगीन राजनीति एवं राजनीतिक विचारों का वर्णन किया है।
सोरेन सेन द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘इंडेक्स’ (Index) महाभारत पर एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसकी सहायता से महाभारत की क्रमवार कथा लिखी जा सकती है।
एन. वी. संडानी की पुस्तक ‘Mystry of Mahabharata’ 2000 पृष्ठों की 5 खण्डों में एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। उन्होंने इसमें कुंती को धरती का, द्रोपदी को बलिदान का एवं श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का स्वरूप कहा है। पी. एम. मलिक ने अपनी पुस्तक ‘महाभारत एक ऐतिहासिक नाटक’ में महाभारत की ऐतिहासिक और रोचक घटनाओं का वर्णन किया है।
महाभारत एवं साहित्यिक स्रोतों का उपयोग
प्राचीन भारतीय इतिहास लिखने में साहित्यिक स्रोतों का उपयोग इतिहासकार को अत्यन्त सावधानी के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर करना होता है। प्राचीनकालीन साहित्यिक स्रोत अधिकांशतः काव्य, कथा एवं नाटक के रूप में मौजूद हैं। नाटक का तो नाम ही नाटक है, अतः उसका उपयोग तो मात्र पुरातात्विक साक्ष्यों की अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाने में किया जाता है। इसी प्रकार काव्य में कल्पना एवं सत्य का सम्मिश्रण रहता है। एक इतिहासकार को पुरातात्विक स्रोतों की मदद लेकर सत्य को छाँटना होता है। जब एक ही तथ्य एक साथ कई ग्रन्थों में मिलता है एवं पुरातात्विक स्रोतों से उसकी पुष्टि होती है तभी इतिहासकार उसे ऐतिहासिक तथ्य मानकर इतिहास लेखन में उसका उपयोग करते हैं।
महाभारत की विषय-वस्तु दो प्रकार की है- एक आख्यान एवं दूसरे उपदेशात्मक। उपदेशात्मक भाग में सामाजिक आचार-विचार रहते हैं। आख्यानात्मक भाग विभिन्न कहानियों का चित्रण होता है। महाभारत में प्राप्त तथ्यों को अन्य प्राचीन ग्रन्थों में प्राप्त तथ्यों से मिलाकर देखते हैं। समानता मिलने पर उसे इतिहासकार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परीक्षण उपरान्त इतिहास लेखन में उपयोग करते हैं। जैसे मनुस्मृति में प्राप्त 8 विवाह के प्रकारों एवं महाभारत में भीष्म पितामह द्वारा वर्णित 8 प्रकार के विवाहों में समानता देखने को मिलती है। महाभारत में वर्णित विदुर नीति की समानता अन्य प्राचीन कानून ग्रन्थों में भी मिलती है। इस प्रकार इतिहासकार विभिन्न प्रकार के तथ्यों का परीक्षण करने के उपरान्त ही उसे इतिहास लेखन में प्रयोग करते हैं।
आभार ; https://bestmotivationalstoryhindi.wordpress.com/2020/10/23/critical-edition-mahabharata-hindi/
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