मंजीत सिंह
भाई मतिदास सिख इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शहीदों में गिने जाते हैं। वह ब्राह्मण जाति के थे। भाई मतिदास तथा उनके छोटे भाई भाई सती दास और भाई दयाला जी नौवें गुरु गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद हुए थे। उनको औरंगजेब के आदेश से दिल्ली के चांदनी चौक में 09 नवम्बर 1675 को आरे से चीर दिया गया था। उन्हें मृत्यु स्वीकार थी, परंतु इस्लाम नहीं। भाई मतिदास गुरु तेगबहादुर जी के बेहद करीबी थे। ‘भाई’ का सम्मान स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन शहिदों और पंज प्यारों को दिया था।
औरंगजेब ने पूछा “मतिदास कौन है” ? तो भाई मतिदास ने आगे बढ़कर कहा “मैं हूँ मतिदास, यदि गुरु जी आज्ञा दें तो मैं यहाँ बैठे-बैठे दिल्ली और लाहौर का सभी हाल बता सकता हूँ तेरे किले की ईंट-से-ईंट बजा सकता हूँ।”औरंगजेब गुर्राया और उसने भाई मतिदास को धर्म-परिवर्तन करने के लिए विवश करने के उद्देश्य से अनेक प्रकार की यातनाएँ देने की धमकी दी। खौलते हुए गरम तेल के कड़ाहे दिखाकर उनके मन में भय उत्पन्न करने का प्रयत्न किया, परंतु धर्मवीर पुरुष अपने प्राणों की चिन्ता नहीं किया करते। धर्म के लिए वे अपना जीवन उत्सर्ग कर देना श्रेष्ठ समझते हैं।
जब औरंगजेब की सभी धमकियाँ बेकार गयीं, सभी प्रयत्न असफल रहे, तो वह चिढ़ गया। उसने काजी को बुलाकर पूछाः “बताओ इसे क्या सजा दी जाये” ? काजी ने कुरान का हवाला देकर हुक्म सुनाया कि “इस काफिर को इस्लाम ग्रहण न करने के आरोप में आरे से लकड़ी की तरह चीर दिया जाये।”औरंगजेब ने सिपाहियों को काजी के आदेश का पालन करने का हुक्म जारी कर दिया।
दिल्ली के चाँदनी चौक में भाई मतिदास को दो खंभों के बीच रस्सों से कसकर बाँध दिया गया और सिपाहियों ने ऊपर से आरे के द्वारा उन्हें चीरना प्रारंभ किया। किंतु उन्होंने ‘सी’ तक नहीं की। औरंगजेब ने पाँच मिनट बाद फिर कहाः “अभी भी समय है। यदि तुम इस्लाम कबूल कर लो, तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा और धन-दौलत से मालामाल कर दिया जायेगा।”
वीर मतिदास जी ने निर्भय होकर कहा “मैं जीते जी अपना सनातन धर्म नहीं छोड़ूँगा।” ऐसे थे ‘धर्मवीर मतिदास’ जिन्हे अपना बलिदान देकर सनातन धर्म की रक्षा की। यह देखकर भाई दयाला बोले “औरंगजेब तूने बाबर वंश को और अपनी बादशाहियत को चिरवाया है।” यह सुनकर औरंगजेब ने भाई दयाला जी को उबलते पानी के कढाहे में डलवाकर जिंदा ही जला दिया। भाई दयाला जी को गुरु तेगबहादुर जी की मौजूदगी में एक बड़ी देग, जो पानी से भरी थी, देग में बैठाया गया। देग को आग लगाई गई उबलते पानी में दयाला जी की शहादत हुई।
भाई सतीदास के शरीर पर रुई लपेटकर आग लगा दी गयी, पर उन्होंने भी सनातन धर्म त्याग कर इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया।
test