रजिन्द्र बंसल अबोहर
लोकतंत्र की हत्या की,जब इन्दिरा ने ठानी थी।
जून 75 रात वो काली,सत्ता की शैतानी थी।।
इन्दिरा के अवैध चुनाव को,इलाहाबाद ने रोक दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ राहत दे,छः मास तक रोक दिया ।
बिन पानी जैसे मच्छली सा, इन्दिरा का सब बोध गया।
वो तो सत्ता की आदी थी,उसको बस कुर्सी बचानी थी।।
लोकतन्त्र की हत्या की——-।।
सूर्योदय से पहले ही,समय का चक्का घूम गया।
इन्दिरा ने कुर्सी बचाने को,आपातकाल ऐलान किया ।
जेपी अटल अडवानी चरण सिंह,सबको जेलों में ठूंस दिया ।
क्रूरता भरी इस क्रूर भौर की,रात अभी गहरानी थी।।
लोकतन्त्र की हत्या की——–।।
जंगल राज सा भारत सारा,कोर्ट कानून सब सब खत्म हुये।
लालू मुलायम जार्ज मुरली संग,देश में लाखों धरे गये।
असीमित अत्याचारों ने रोंदे,जो लोकतंत्र संग खड़े हुये।
धरती अम्बर दीवारें गुमसुम,सुन चीखें विह्वल जवानी की।।
लोकतन्त्र की हत्या की———।।
जो लोकतंत्र के प्रहरी थे,लिटा लिटा बर्फ पर पीट दिये।
कुछ के बंद पायजामों में,भूखे चूहे छोड़ दिये।
सूखा कंठ न्यायालय का,कानून के खम्बे उखड़ गये।
जुल्मी सत्ता के जुल्मों की,हर पल कोई नई कहानी थी।।
लोकतन्त्र की हत्या की———।।
समय ने फिर से करवट ली,वो नहीं एक राह चल पाया।
दम्भ में डूबी महारानी का,ऐलान चुनावी इक आया।
अब तक संकट था जनता पर,वो महारानी पर चढ धाया।
जागी जनता और सत्ता पलटी,की ऐसी तैसी महारानी की।।
लोकतन्त्र की हत्या की———-।।
लोकतंत्र का मंदिर संसद, टिका एक सौ चौदह थम्बो पर।
तब लोकतंत्र था बच पाया,ढेरों लाशें ढो कन्धों पर।
अगिनत अनाम शहीदों का,हर नाम लिखो तटबंधो पर।
हमें जयकार गुंजानी ही होगी,हर लोकतंत्र सेनानी की।।
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