पंजाब शब्द पंज+आब से मिलकर बना है जिसका अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश। विभाजन से पूर्व पंजाब में पाँच नदियाँ थी लेकिन अब यहाँ सतलुज और ब्यास दो नदियों ही हैं। पंजाब की माटी का परिचय उसकी जीवन को स्फूर्ति और गति देने वाली सभ्यता में छिपा है। सरिताओं की स्वच्छ जल से सिंचित लहलहाते अन्न की बालियों से हरे भरे खेत, गिद्दा और भंगड़ा के ताल और नृत्य पर थिरकते, गाते पंजाबी सम्पन्न और शक्तिमय सुगठित शरीर के युवक और युवतियाँ, मुटियार और गबरू, वीरों और गरुओं के त्याग और मधुर वाणी पंजाब की जीवन्तता के प्रमाण है। | पंजाब की धरती से पंजाब का बच्चा-बच्चा प्यार करता है तथा अपने साथियों के साथ इक्ट्ठे होकर यह लोक गीत गाया करते थे।
सोहने फुल्लां विच्चों फुल गुलाब नी सखियो।
सोहणे देशां विच्चों देश पंजाब नी सखियो।
बगदी रावी ते जेलम चनाय नी सखियो।
देंदा भुखया ने रोटी पंजाब नी सखियो।
इस गीत में पंजाब और उस की नदियों का वर्णन आता है इसलिए यह गीत उन्हें प्रिय भी लगता है और अपने से बड़े बच्चों तथा भाई-बहिनों से भी वे इस गीत को सीखते हैं। तथा गाते हैं।
पंजाब के विकास का इतिहास
पंजाब के इतिहास का आरम्भ भारत के इतिहास के साथ ही जुड़ा है। वैदिक युग से ही इसकी सभ्यता और संस्कृति, जन और जीवन गौरवशाली था। नदियों के किनारे बसे गुरुकुलों के वटुक प्रातः सायं मण्डलियों में किनारे की विशाल एवं विशद शिलाओं पर बैठे सामगान करते थे। उन चट्टानों से टकराकर कल-कल करता नदियों का निर्मल जल छप-छप कर मानों उनके साथ ताल देता था। उनका यह मन्द एवं मधुर स्वर धरती-आकाश को एक सूत्र में पिरो देता था। सारा वातावरण मानो गाने लगता था। भारतीय संस्कृति के निर्माण में पंजाब का बड़ा महत्त्व है। इस बात को गुरुवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी माना है कि वेद बने भले ही कही हों, पर उनका सस्वर उच्चारण इसी प्रान्त में हुआ।
पंजाब का क्षेत्रफल 50362 वर्ग किलोमीटर है। इससे हिमाचल, हरियाणा तथा राजस्थान और पाकिस्तान की सीमा जुड़ती है। भारत का सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण पंजाब को विदेशी आक्रमणकारियों के हलाहल को सदैव पीना पड़ा है। झेलम के किनारे यूनान के सिकन्दर के विश्व-विजेता बनने के स्वप्न को पोरस ने धूल में मिला दिया था। इसकी धरती पर शक, हूण, कुषाण, मुहम्मद बिन कासिम और मुहम्मद गौरी के आक्रमणों से रक्तपात हुआ। गुलाम वंश के कुतुबुद्दीन ने सूबेदार बनकर यहाँ राज्य किया। खिलजी वंश, तुगलक वंश और तैमूर लंग भी इस पंजाब में शासन करते रहे। तैमूर वंश बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली। मुगलों का शासन लम्बे समय तक चला और ईस्ट इंडिया कम्पनी के आगमन से मुगल साम्राज्य की इति श्री हुई। अंग्रेज़ों के क्रूर अत्याचारों के आघातों की कहानी का प्रमाण आज भी जलियांवाला बाग है। आक्रमणकारियों ने इसे लूटा, रौंद दिया लेकिन इसे मिटा न पाए।
अंग्रेज़ों ने विशाल पंजाब को विभाजित कर खून से लथपथ और क्षत-विक्षत करवाया। सन् 1966 में पंजाब की सीमा को पुनः सिसकना पड़ा जब उसे और छोटा कर दिया गया तथा हरियाणा का उदय हुआ।
पाकिस्तान के आक्रमणों को दो बार पंजाब की धरती ने ही सहन किया। महाराजा रणजीत सिंह, बन्दा बैरागी जैसे शासक इस की पीड़ा को सहन करते रहे और इसे सुन्दर रूप देने के लिए तत्पर रहे।
गुरु और वीरों की भूमि
जब भारत पर आततायी यवनों का राज्य स्थापित था, हिन्दू जाति प्रताड़ित की जा रही थी, उस समय भारतीयों के धर्म की रक्षा करने के लिए, उनका हिन्दुत्व बचाने के लिए दसों गुरुओं को आगमन पंजाब में ही हुआ। गुरुओं ने जहां एक ओर जनता को ज्ञान दिया, उन्हें उपदेश रूपी अमृत पिलाया, वहीं दूसरी ओर उन हिंसक शासकों से टक्कर भी ली और वह टक्कर हिंसा से नहीं, अहिंसा से ली। गुरु अर्जुन देव और गुरु तेगबहादुर को पंजाबवासी तो क्या, कोई भारतवासी भी भूल नहीं सकता। गुरु गोबिन्द सिंह जी के छोटे-छोटे बच्चों ने धर्म की रक्षा करते हुए प्राण देना तो स्वीकार लिया पर धर्म छोड़ना स्वीकार न किया। उनका कहना था-
सिर जावे तो जावे मेरा धर्म न जावे
दशमेश पिता गुरु गोबिन्दसिंह ने पुत्रों के बलिदान को देश और धर्म की रक्षा के लिए स्वीकार कर लिया था। गुरु नानक देव जी ने तत्कालीन मुगल बादशाहों के अन्याय और अत्याचारों को ही नहीं ललकारा अपितु ईश्वर की सत्ता को भी चुनौती दे डाली जो कमजोर और असहायों की रक्षा के लिए तत्पर न हुआ। सत्य की कमाई पर विश्वास रखते हुए उन्होंने लोगों को गुरुमुख बनने की प्रेरणा दी। शहीदों के इतिहास में गुरुओं की शहीदी सदैव वन्दनीय रहेगी।
इस धरती ने नानक के उपदेश गुरुओं की वाणी आर्य समाज और सनातन धर्म के सिद्धान्तों और धर्म-तत्त्वों को ग्रहण किया है। अतः पंजाब का इतिहास शौर्य-गाथा, त्यागऔर तप का इतिहास है।
स्वतंत्रता संग्राम की कहानी पंजाब के त्याग के बिना अधूरी ही है। लाला लाजपतराय, लाला हरदयाल, सरदार अजीत सिंह, भगत सिंह, मदन लाल ढींगरा, करतार सिंह सराभा के त्याग और बलिदान की कहानी आज भी स्वरर्णाक्षरों में लिखी हुई है। अंग्रेजी सरकार को नाकों चने चबवाने वाले इन वीरों ने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी।
लोक संस्कृति, साहित्य, कला और खेल
पंजाब की आत्मा यहाँ की लोक संस्कृति में बसती है। अपनी मस्ती और वीरता के लिए अपने नृत्य और गीतों के लिए पंजाब प्रसिद्ध है। यहाँ प्रेम और बलिदान के किस्से और कहानियाँ लोक गीतों में बसती हैं। आध्यात्मिक और सांसारिक प्रेम का इन गीतों में अद्धभुत मिलन है। भगत पूरन, ध्यानँ भगत के किस्से तथा सोहनी महिवाल, हीर-रांझा, दुल्ला-भट्टी की कहानियाँ लोक गीतों में बसती हैं। भंगड़ा, गिद्दा और झूमर जैसे लोक नृत्यों के ताल पर युवक-युवतियाँ यहाँ झूम उठते हैं।
पंजाब की राज भाषा पंजाबी है जिसकी अपनी लिपि गुरुमुखी लिपि है। पंजाब में अमृतसर,पटियाला तथा चण्डीगढ़ में विश्व-विद्यालय हैं। अनेक इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेज यहाँ चलते हैं। इन विश्वविद्यालयों में शोध कार्य होते हैं। लुधियाना में भारत का प्रसिद्ध कृषि विश्वविद्यालय है।
साहित्यिक क्षेत्र में आदि ग्रंथ तथा दशम ग्रंथ गुरुओं की महान् साहित्यिक विरासत है। जिनमें धर्म, दर्शन, चिंतन एवं लोक हित की मंगल कामना है। वीरता और आध्यात्मिकता है। पंजाब के साहित्यकारों में नानक सिंह, गुरुबख्श सिंह, करतार सिंह दुग्गल, बलवन्त गार्गी, उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश, अमृता प्रीतम तथा कुलवन्त सिंह विर्क के नाम उल्लेखनीय हैं। सआदत हसन मंटो, साहिर लुधियानवी, राजेन्द्र सिंह बेदी, अब्बास, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, यशपाल, हरिकृष्ण प्रेमी इसी क्षेत्र के प्रसिद्ध शायर और साहित्यतकार हैं।
यहां मुसलमान और सिक्खों के शासन काल में कला के क्षेत्र में कांगड़ा शैली की चित्रकला का विकास हुआ। संगीत के क्षेत्र में बैजू बावरा, हरिदास, मियाँ कादर बख्श, कुन्दन लाल सहगल, गुलाम अली खां, फतह अली, आदि चर्चित व्यक्तित्व हैं।
फिल्म जगत के अभिनय क्षेत्र में भी पंजाब का विशेष योगदान है। पृथ्वीराज कपूर जैसे थियेटर और सिनेमा के स्तम्भ, राजकपूर और उनके परिवार के अन्य कलाकार, दिलीप कुमार, सायरा बानो सुनील दत्त, बी. आर. चोपड़ा और उनके अन्य बन्धु, प्राण, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना और राजेश खन्ना जैसे सिने कलाकार पंजाब की उपज हैं।
पंजाब ने खेल जगत में भी अपना अधिकार जमाया यहाँ के अखाड़े तो प्रसिद्ध ही है। हॉकी की खेती भी मानो यहीं होती है। गामा, दारा सिंह, जैसे पहलवान, बलवीर सिंह और सुरजीत सिंह जैसे हाकी के खिलाड़ी, मिल्खा सिंह जैसे धावक क्रिकेट में अमरनाथ बन्धु, बिशन सिंह बेदी, कपिल देव, के नाम कौन नहीं जानता है।
वर्तमान पंजाब
अंग्रेज़ों की कुटिल नीति ने पाकिस्तान बना कर पंजाब को आधा कर डाला। उसके बाद स्वतंत्र भारत में भी पंजाब से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश बन गए। अतः पंजाब सिमट कर रह गया। लेकिन आज पंजाब प्रगति के क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ता जा रहा है। पंजाब में ही बसा शहर चण्डीगढ़ तो विश्व के श्रेष्ठ नगरों में एक प्रसिद्ध नगर है। यहां का रॉक गार्डन भी विख्यात है। चण्डीगढ़ में रॉक-गार्डन, रोज़ गार्डन, अजायब घर, सुखना झील, विश्वविद्यालय प्रमुख आकर्षण है।
भाखड़ा बाँध सतलुज नदी पर बना हुआ है जो पंजाब की धरती को हरा भरा रखता है तथा शहरों और गांवों को प्रकाश देता है। पंजाब के दर्शनीय स्थलों में अमृतसर में जलियांवाला बाग, स्वर्ण मन्दिर, दुग्र्याणा मन्दिर, जालन्धर में देवी तालाब मन्दिर, भटिण्डा में बाबा हाजी का मकबरा, पटियाला में बारादरी महल तथा गुरुद्वारा दुःख निवारण साहिब, व्यास में डेरा राधा स्वामी, बटाला में वीर हकीकत राय स्मारक तथा सती पौरा, सरहिन्द को मस्जिदें, मंजी साहब, दमदमा साहब, आदि प्रमुख ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्त्व के स्थल एवं भवन हैं।
उद्योग धन्धों में आज का पंजाब अब पिछड़ा हुआ नहीं है। लुधियाना शहर तो साइकिल और हौजरी उद्योग के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। जालन्धर में खेल का सामान तथा पाइप फिटिंग्स का सामान बनता है। अमृतसर, धारीवाल तथा फगवाड़ा में वस्त्र उद्योग उल्लेखनीय है। इसी प्रकार बटाला, चण्डीगढ़ और अन्य शहरों में अनेकों कल-कारखाने हैं। जहाँ अनेक प्रकार के औजार, मशीनें तथा कल पुजें बनाए जाते हैं।
गुरुओं और वीरों की भूमि, मस्ती एवं सौन्दर्य की भूमि पंजाब हरित क्रान्ति तथा श्वेत क्रान्ति लेकर आया जिससे अन्न एवं दूध की कमी भी पूरी हुई। एक बार आतंकवाद के काले बादलों के बीच से घिरा पंजाब अब सुख एवं शान्ति के उजले प्रकाश में खिल खिला उठा है। यहां के परिश्रमशील लोग आनन्द, खुशहाली एवं मस्ती भरे जीवन में विश्वास रखते हैं।
Courtesy: Hindi Ki Guide
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