भारत की बात को गंभीरता से लिया जा रहा, अगले 25 साल में अमेरिका-चीन को पछाड़ सकता है भारत
युद्ध के बाद की आधुनिक दुनिया हमेशा द्वि-ध्रुवीय रही है। अमेरिका और सोवियत संघ ने दो शक्ति केंद्र बनाए, जो सैन्य, वैज्ञानिक और आर्थिक ताकत के बल पर वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे। अमेरिका ने अपने लोकतांत्रिक आधारों पर महिमा का गुणगान किया, तो सोवियत ब्लॉक ने समाजवाद और तानाशाही को प्रोत्साहित किया। यह महाशक्तियों का ऐतिहासिक संघर्ष था, जो स्पेस से शतरंज के बोर्ड तक लड़ा गया। दुनियाभर के देशों ने अपनी पसंदीदा धुरी के साथ औपचारिक व अनौपचारिक रिश्ते बनाए।
भारत उन गिने-चुने देशों में से था जो तटस्थ रहा, यानी किसी गुट से नहीं जुड़ा।
2000 के दशक में द्वि-ध्रुवीय दुनिया की वापसी हुई
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका महाशक्ति बन गया। अमेरिका का प्रमुख सहयोगी होने के साथ यूरोप वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण शक्ति था। दोनों ने मिलकर पूंजीवादी वैश्विक व्यवस्था बनाई, जिसमें निजी उद्यमों का दबदबा था। 1990 में चीन ने खुद को कृषि आधारित व्यवस्था से विनिर्माण आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने का फैसला लिया। इसके बाद चीन का विकास चौंका देने वाला रहा। नतीजतन 2000 के दशक में अमेरिका और चीन के साथ द्वि-ध्रुवीय दुनिया की वापसी हुई।
पिछले दो दशक में पश्चिम अपनी निर्माण की जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर हो गया। चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को क्वाड जैसा गठबंधन बनाना पड़ा।
घरेलू कोविड नीतियों ने चीन को झटके दिए
बीते सात वर्षों में अमेरिका का प्रभाव क्षेत्र कमजोर हुआ है। दुनिया की निर्विवाद करंसी अमेरिकी डॉलर की चमक भी फीकी पड़ रही है। डिजिटल करंसी डॉलर के लिए खतरा बन रही है और संभावित रूप से वैश्विक व्यापार चलाने के तरीके में बड़ा बदलाव ला सकती है। दूसरी ओर, घरेलू कोविड नीतियों ने चीन को भी झटके दिए। बाकी दुनिया से पर्याप्त अंतर के बावजूद चीन-अमेरिका दोनों आर्थिक व सियासी उथल-पुथल से घिरे हैं। यूरोप भी आर्थिक संकट में है।
यूक्रेन युद्ध के बाद रूस की अहमियत भी कम हुई है। अमेरिका, चीन और भारत के साथ त्रिकोणीय शक्ति धुरी बन रही है, जिसके भौगोलिक क्षेत्र के विभिन्न हलकों में प्रभाव अलग-अलग हैं। भारत ने मजबूत कार्यबल आबादी, विशाल उपभोक्ता आधार के साथ स्थिर सियासी परिदृश्य देखा है। भारत में राष्ट्रीय गर्व की भावना पहले से ज्यादा है। अगले 25 साल में अमेरिका और चीन को कोई देश पछाड़ सकता है, तो वह भारत है। यह लंबा सफर है, पर सितारे सधी पंक्ति में हुए तो जरूर संभव होगा।
स्टार्टअप को प्रोत्साहन से स्वदेशी उद्यमशीलता बढ़ी
भारत में सर्विस सेक्टर के उदय और मजबूत आईटी सेक्टर के कारण पारंपरिक विनिर्माण क्षेत्र को बल मिला है। दो दशकों में हुए सुधारों ने उन्नति की राह प्रशस्त की। आधार नेटवर्क, जनधन खाते, ओएनडीसी, जीएसटी और डिजिटल पेमेंट जैसी पहलों के रूप में डिजिटल दखल का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। पीएलआई, मेक इन इंडिया और बुनियादी ढांचे के विकास जैसे सुधारों ने भारत के पूंजीकरण और क्षमता को बढ़ाया है।
कॉर्पोरेट टैक्स घटाने के साथ ज्यादा विदेशी निवेश के लिए खोलना और स्टार्टअप को प्रोत्साहन से स्वदेशी उद्यमशीलता बढ़ी है।
सुपरपावर बनने के लिए बड़ी प्रेरणा व मजबूत आधार जरूरी
कुछ माह पहले ब्रिटेन को पछाड़कर भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। अब सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी इससे बड़े हैं। बीते अप्रैल में चीन को पीछे छोड़ भारत सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बना। 2030 तक भारत की जीडीपी जापान और जर्मनी को पार करने को तैयार है। भारत की बात को गंभीरता से लिया जा रहा। भारत जो कहता है, उसमें वजन होता है।
भारत अपनी युवा कामकाजी आबादी से फायदा उठाने और खुद को चीन के विनिर्माण प्रतिद्वंद्वी के तौर पर स्थापित करने के लिए तैयार है। चीन की उम्रदराज श्रमशक्ति और बढ़ते वेतन उसकी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त घटा रहे हैं। चीन और पश्चिम के विवाद से भारत के पास अंतरराष्ट्रीय सप्लाई में पैर जमाने का मौका है। एपल ने 2022 में अपने 85% फोन चीन में बनाए। भारत शिफ्ट होने के बाद उम्मीद है कि एपल के 50% फोन का उत्पादन हमारे पास होगा।
2047 तक जब भारत आजादी के 100 साल पूरे करेगा, 25 साल की अवधि के दौरान देश को बहुत कुछ करने की जरूरत है। ये पर्याप्त कोशिश से हासिल कर सकते हैं।
ऐसा हो ढाई दशक का रोडमैप
- पूरी कामकाजी आबादी को बुनियादी शिक्षा और कौशल दें।
- 2047 तक वर्कफोर्स में महिला भागीदारी 45% हो, अभी 19% है।
- 2047 तक 60 करोड़ नौकरियां (वर्तमान से 3 गुना) दी जाएं। युवा कार्यबल को टैलेंट फैक्ट्री में बदलें।
- 100% आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जाए। फिलहाल 80% हैं।
- बिजली उत्पादन में ग्रीन एनर्जी की हिस्सेदारी 40% से ज्यादा करें। सालाना 50 लाख टन हाइड्रोजन उत्पादन करके भारत दुनिया का सबसे सस्ता उत्पादक बने।
- टेक्नोलॉजी से जुड़े इनोवेशन में अग्रणी बनना, चाहे डिजिटल हो, एआई या सेमीकंडक्टर।
- कृषि निर्यात 2 लाख करोड़ रु. पर ले जाना, अभी 1.98 लाख करोड़ है।
- फूड प्रोसेसिंग सेक्टर को 6 लाख करोड़ रु. तक ले जाना। यह अभी 24.8 लाख करोड़ रु. है।
- हाई वैल्यू एक्सपोर्ट 33 लाख करोड़ रु. को पार कर लेगा। मैन्यूफैक्चरिंग में आयात निर्भरता आधी रह जाएगी।
- देश में प्रति 10 हजार लोगों पर डॉक्टर्स-नर्सेस की संख्या दोगुनी करें।
भारत के महान दर्शन, समृद्ध विरासत, आयुर्वेद, समृद्ध खानपान, आध्यात्मिकता, योग, बॉलीवुड और इसके प्राचीन ज्ञान की सॉफ्ट पावर को सक्रिय रूप से बढ़ावा दें। सैन्य शक्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
पीएम मोदी दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक के रूप में उभरे हैं। उन्होंने देश के भीतर और विदेश में भारतीयों के बीच राष्ट्रीय गर्व की भावना पैदा की है। ‘अमृत काल’ के दौरान, भारत को सुपरपावर बनने के लिए, एक मजबूत आधार और एक बड़ी प्रेरणा की जरूरत होगी। भारत को उसकी नियति तक ले जाने के लिए इस महत्वपूर्ण मोड़ पर शक्ति प्रदान करने वाले व्यक्ति नरेंद्र मोदी ही हैं।
सौजन्य : दैनिक भास्कर
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