ऋषि गुप्ता
मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की अगुआई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने देश की सबसे बड़ी और पुरानी राजनीतिक पार्टी अवामी लीग पर आतंकवाद-रोधी कानून के तहत प्रतिबंध लगा दिया है। बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान ने किया था। उन्होंने भारत के सहयोग से बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलाई और अवामी लीग को एक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में स्थापित किया।
वर्तमान में अवामी लीग की नेता और बांग्लादेश से निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना इन दिनों भारत में रह रही हैं। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने उनके खिलाफ आतंकवाद-रोधी कानून के तहत सैकड़ों मामले दर्ज किए हैं, जिनमें हत्या, आगजनी और हिंसा जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। यदि अवामी लीग आगामी चुनावों में भाग नहीं ले पाती तो यह बांग्लादेश के लोकतांत्रिक ढांचे और भारत के लिए चिंता की बात होगी।
अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध को मौजूदा सरकार और छात्र संगठन एक अच्छा कदम मानते हैं। वे अवामी लीग पर प्रतिबंध को न्याय की जीत कह रहे हैं। कुछ लोग इस कदम को एक दुष्चक्र की तरह देख रहे हैं, क्योंकि अंतरिम सरकार ने अवामी लीग को प्रतिबंधित करके वही काम किया, जो अवामी लीग ने सत्ता में रहते हुए बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के साथ किया था।
बांग्लादेश में जिस कथित ‘द्वितीय गणतंत्र’ की स्थापना शेख हसीना को बेदखल करने के बाद हुई थी, उसी ने देश के सबसे बड़े दल के लोकतांत्रिक अधिकार छीन लिए। यह घटनाक्रम बांग्लादेश में लोकतंत्र को कमजोर करेगा। इतना ही नहीं, यह उस कट्टर इस्लामिक विचारधारा को मजबूत करेगा, जिसके खिलाफ अवामी लीग आवाज उठाती रही है।
पड़ोस में कट्टर इस्लामी ताकतों का उभार भारत के हित में भी नहीं। बांग्लादेश में ‘सुधारवाद’ की भी बात हो रही है, जिसका प्रतिनिधित्व मोहम्मद यूनुस सरकार चलाते हुए कर रहे हैं। यूनुस सरकार विधायी, सिविल और बैंकिंग सेवाओं में सुधार लाने का प्रयास कर रही है, लेकिन इस काम में उनके समक्ष एक बाधा समय की कमी है। इसी का हवाला देकर यूनुस कई बार यह कह चुके हैं कि बांग्लादेश में चुनाव तब तक नहीं हो सकते, जब तक देश में सुधार पूरी तरह से न हो जाएं।
हालांकि तमाम पार्टियां शीघ्र चुनाव की बात कर रही हैं, लेकिन मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए वहां शीघ्र चुनाव होना मुश्किल लग रहा है। यूनुस भी जल्द चुनाव के लिए तैयार नहीं दिखते। अगर चुनाव हुए तो यूनुस का जाना तय है, क्योंकि वह किसी भी दल से नहीं आते। जिन छात्रों ने उन्हें अंतरिम सलाहकार बनाने में योगदान दिया, उन्होंने अब जातीयो नागरिक पार्टी की स्थापना कर ली है। संभव है वे चुनाव में नए चेहरे को लाएं। इस सबके बीच एक और किरदार है, जिसने सामने आए बिना खुद को मजबूत बनाया है और वह हैं बांग्लादेश सेना के प्रमुख। उन्होंने शेख हसीना के देश से बाहर जाने के बाद कुछ समय के लिए देश की बागडोर भी संभाली थी, लेकिन अब वह पर्दे के पीछे हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि बांग्लादेश की सेना का शीर्ष नेतृत्व अपने किरदार को नए राजनीतिक ढांचे में किस तरह से देखता है और क्या वह लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए स्वयं को राजनीति से अलग रखेगा? अवामी लीग पर प्रतिबंध कुछ पुरानी घटनाओं की याद दिलाता है। 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान का समर्थन करने के लिए अवामी लीग द्वारा जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया गया था। अभी पिछले साल तक जमात के शीर्ष नेतृत्व को आजीवन कारावास और मृत्युदंड जैसी कड़ी सजाएं मिलती रहीं, फिर भी वह भिन्न-भिन्न तरीकों से राजनीति में उग्र तरीकों से सक्रिय रहने का प्रयास करती रही।
ऐसा ही कुछ प्रयास प्रतिबंध लगने के बावजूद अवामी लीग भी कर सकती है। अवामी लीग की विचारधारा और कार्यकर्ता अभी भी सक्रिय हैं। आने वाले समय में उनकी दबी आवाज एक उग्र रूप ले सकती है। अवामी लीग पर प्रतिबंध लगना न केवल बांग्लादेश के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि पूरे क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर सकता है। यह पार्टी दशकों से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और पंथनिरपेक्षता की धुरी रही है। इसके कमजोर होने से वहां कट्टरपंथी और भारत-विरोधी ताकतों को बल मिल सकता है।
भारत को इसके प्रयत्न करने होंगे कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सुनिश्चित करे कि बांग्लादेश में लोकतंत्र सुरक्षित रहे। खतरा इसका है कि बांग्लादेश में वही राजनीतिक ताकतें फिर न हावी हो जाएं, जो अतीत में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर चुकी हैं, मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देती रही हैं और भारत के लिए समस्याएं पैदा करती रही हैं। क्षेत्रीय संतुलन के लिए वहां एक लोकतांत्रिक और जनादेश आधारित राजनीतिक व्यवस्था का बना रहना आवश्यक है। भारत को अपनी सुरक्षा के नजरिये से चौकन्ना रहना होगा। इसलिए और भी अधिक, क्योंकि अंतरिम सरकार भारत के हितों की अनदेखी कर रही है। इसके कारण भारत को बांग्लादेश के खिलाफ कठोर रवैया अपनाना पड़ रहा है।
(लेखक एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ डिप्लोमेसी एंड इंटरनेशनल स्टडीज, काठमांडू में विजिटिंग फेलो हैं)
आभार : https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-why-bangladesh-yunus-govt-awami-league-ban-increases-india-concern-23943511.html
test