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शिमला समझौते से पाकिस्तान के हटने से भारत के लिए भी सभी विकल्प खुले

April 26, 2025 By News Bureau

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शिमला समझौते में LOC सबसे अहम

एस.के. सिंह

26 अप्रैल, 2025 – नई दिल्ली : पहलगाम में आतंकी वारदात के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते को निलंबित किया तो जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौता समेत सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करने की बात कही है। लेकिन तथ्य तो यह है कि शिमला समझौते की शर्तों का पाकिस्तान हमेशा उल्लंघन करता रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को नहीं मानता, तो भारत के लिए भी इसकी शर्तों से बंधे रहना जरूरी नहीं। नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान इस समझौते की प्रमुख शर्तों में है। समझौते से पाकिस्तान के हटने के बाद अब भारत के लिए भी एलओसी को पार करने का विकल्प खुला है।

पाकिस्तान के साथ 1971 की लड़ाई के बाद 2 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ था। पाकिस्तान की संसद ने इसे 15 जुलाई को और भारत ने 3 अगस्त 1972 को स्वीकृति दी। इस समझौते ने कश्मीर समस्या का समाधान तो नहीं किया, लेकिन इसके शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत का फ्रेमवर्क जरूर तैयार किया।

भारत के लिए सभी विकल्प खुले

शिमला समझौते में कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान आपसी मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाएंगे। समझौते से पाकिस्तान के हटने के बाद भारत के लिए भी सभी विकल्प खुले हैं। इसमें सैन्य विकल्प भी शामिल है।

वर्ष 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग करने वाले आर्मी कमांडर ले. जनरल (रि.) डी.एस. हुड्डा के अनुसार पाकिस्तान के इस फैसले के दो बड़े प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। “पहला है एलओसी का। शिमला समझौते के बाद नियंत्रण रेखा तय करने के लिए भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों की टीम बनी थी। उन्होंने मैप के ऊपर एक लाइन बनाई थी जो आज लाइन ऑफ कंट्रोल है। दोनों पक्षों ने उस पर दस्तखत किए थे। तय हुआ था कि अब यही दोनों देशों की एलओसी होगी।”

“इसे निलंबित करने के बाद फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि लाइन ऑफ कंट्रोल की वैधता क्या है। क्या इसका यह मतलब है कि अभी ऐसी कोई सीमा नहीं जिस पर दोनों देश सहमत हों? क्या इसका मतलब यह निकाला जाए कि कोई निर्धारित बॉर्डर नहीं होने के कारण एलओसी पर अब कुछ भी किया जा सकता है?”

पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में हिस्सा ले चुके लेफ्टिनेट जनरल (रि.) मोहन भंडारी के अनुसार, “भारत इस समय चार स्तर पर काम कर रहा है- मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, राजनयिक और सशस्त्र सेना। सेना अपने स्तर पर काम शुरू कर चुकी है और सेनाध्यक्ष कश्मीर दौरे पर हैं।” उनके मुताबिक कार्रवाई तो होगी, लेकिन कब और कितनी बड़ी होगी, यह सेना तय करेगी।

पाकिस्तान के खिलाफ भारत कितनी बड़ी कार्रवाई कर सकता है, इस सवाल पर ले. जनरल भंडारी ने कहा, “भारत का टार्गेट पाकिस्तान के आम नागरिक नहीं, बल्कि वहां की सेना है। पाकिस्तानी सेना ही आतंकवादियों की आका है। उनके सेना प्रमुख आसिम मुनीर खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख रह चुके हैं। हाल में उन्होंने बेहद भड़काऊ बयान भी दिया है। इसलिए भारत को अपने टारगेट को नेस्तनाबूद करना है। इसके लिए भारतीय सेना पूरी दुनिया में जानी जाती है।”

विवाद में तीसरा पक्ष शामिल होगा?

ले. जनरल हुड्डा के मुताबिक, “शिमला समझौते में दोनों देश इस बात पर राजी हुए थे कि आपसी मुद्दों का द्विपक्षीय समाधान निकाला जाएगा, उसमें कोई अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता नहीं होगी। उससे पहले कराची समझौते (1949) में संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक थे। शिमला समझौते के बाद भारत ने कहा कि द्विपक्षीय मुद्दों में अब संयुक्त राष्ट्र की कोई भूमिका नहीं रहेगी। जो भी विवाद होंगे, उन्हें दोनों पक्ष आपस में मिलकर सुलझाएंगे। अब अगर समझौता निलंबित है तो इस विवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की प्रयास भी हो सकते हैं।”

गौरतलब है कि 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद कराची समझौता 27 जुलाई 1949 को हुआ था। संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में इसमें दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों ने दस्तखत किए थे। इस समझौते में जम्मू-कश्मीर में सीजफायर लाइन तय की गई थी। सीजफायर लाइन के साथ जम्मू-कश्मीर के नक्शे को भारत ने उसी साल 29 जुलाई को और पाकिस्तान ने 30 जुलाई को स्वीकृति दी।

पाकिस्तान ने हमेशा किया शर्तों का उल्लंघन

शिमला समझौते के तीन प्रमुख हिस्से हैं। पहला है द्विपक्षीय बातचीत। इसके तहत दोनों देश सभी विवाद आपसी बातचीत के जरिए सुलझाएंगे, और इसमें तीसरे पक्ष को शामिल नहीं करेंगे। लेकिन पाकिस्तान हमेशा विभिन्न मंचों पर कश्मीर मुद्दा उठाकर तीसरे पक्ष को शामिल करने की कोशिश करता रहा है। हालांकि भारत के कड़े विरोध के कारण वह कभी इसमें कामयाब नहीं हो सका।

दूसरा है नियंत्रण रेखा का सम्मान। इसमें कहा गया कि दोनों देश नियंत्रण रेखा (LoC) को मानकर एक दूसरे के खिलाफ बल का इस्तेमाल नहीं करेंगे। दोनों देश हमेशा एक दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखंडता, राजनीतिक स्वतंत्रता और सार्वभौमिक समानता का सम्मान करेंगे। लेकिन पाकिस्तान ने न सिर्फ अपनी जमीन का भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने दिया, बल्कि उसने 1984 में सियाचिन युद्ध और 1999 में कारगिल युद्ध को भी अंजाम दिया।

तीसरा है शांति को बढ़ावा, जिसके तहत दोनों देशों को विवाद दूर करने के लिए व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे दोस्ताना कदम उठाने थे। पाकिस्तान की तरफ से पहली दोनों शर्तों के उल्लंघन के कारण इस पर भी सही तरीके से अमल नहीं हो सका।

नाराज इंदिरा ने भुट्टो से जाने को कह दिया था

शिमला समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने दस्तखत किए थे। 1971 की लड़ाई में हारने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान ने इस्तीफा दे दिया और भुट्टो राष्ट्रपति बने थे। बाद में भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी बने।

ले. जनरल भंडारी बताते हैं, “पहले तो शिमला समझौता विफल हो गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जुल्फिकार अली भुट्टो को लौट जाने के लिए कह दिया था। तब भुट्टो ने रात करीब दो बजे इंदिरा जी को संदेश भिजवाया और बात आगे बढ़ी। भुट्टो भारत से खाली हाथ नहीं जाना चाहते थे।” इसी समझौते के बाद भारत ने युद्ध के दौरान कब्जा की गई 13,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक जमीन पाकिस्तान को लौटा दी थी।

भारत अभी तक कश्मीर मसले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के पाकिस्तान के प्रयासों को नाकाम करता रहा है, लेकिन अब भारत के लिए भी यह विकल्प खुला है। भारत इस समय अमेरिका, रूस और यूरोपीय देशों के साथ अपने मजबूत संबंधों का इस्तेमाल पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए कर सकता है। गुरुवार को भारत ने जी-20 देशों के साथ पहलगाम मसले पर बात भी की है।

पहलगाम की घटना को अमेरिका भी आतंकवादी कार्रवाई मान रहा है। इस घटना की कवरेज करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स ने जब उग्रवादी (मिलिटेंट) शब्द का इस्तेमाल किया तो अमेरिका की विदेश मामलों की समिति ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि वे उग्रवादी नहीं आतंकवादी (टेररिस्ट) हैं।

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के पूर्व अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो माइकल रुबिन ने एक बातचीत में कहा कि “अमेरिका को पाकिस्तान को आतंकवाद का ‘प्रायोजक देश’ और सेना प्रमुख असीम मुनीर को आतंकवादी घोषित कर देना चाहिए। ओसामा बिन लादेन और असीम मुनीर के बीच एक ही अंतर है कि लादेन गुफा में रहता था और मुनीर महल में रहते हैं। इसके सिवाय दोनों एक जैसे हैं और उनका अंत भी एक जैसा होना चाहिए।”

सौजन्य : दैनिक जागरण


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