मातृभाषा पंजाबी, लेकिन हिंदी से बेहद लगाव…
पद्मश्री डॉ. हरमहेंद्र सिंह बेदी हिंदी साहित्य में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। मातृभाषा पंजाबी होने के बावजूद उन्होंने हिंदी साहित्य और शोध के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने गुरुमुखी लिपि में हिंदी साहित्य की कई पुस्तकों की खोज और संपादन किया। उन्हें 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने हिंदी साहित्य में पंजाब के आध्यात्मिक सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान को रेखांकित किया।
15 सितंबर, 2025 – अमृतसर : असंख्य भाषाओं और बोलियों के बीच हिंदी वह सूत्र है, जो देश की विविधता को एकता में पिरोती है। यह केवल भाषा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक और वैश्विक मंच पर देश की आवाज है। पंजाब की धरती से निकले पद्मश्री डॉ. हरमहेंद्र सिंह बेदी इस आवाज को और बुलंद कर रहे हैं।
होशियारपुर जिले के मुकेरियां में जन्मे और मातृभाषा पंजाबी होने के बावजूद डॉ. बेदी ने हिंदी साहित्य और शोध के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। डॉ. बेदी ने अपने कई शोधकर्ताओं के साथ गुरुमुखी लिपि में हिंदी साहित्य की कई पुस्तकों की खोज की और उनका संपादन किया।
अमृतसर स्थित गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से एमए (हिंदी), एमए (पंजाबी) और हिंदी में पीएचडी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1978 में व्याख्याता के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय (बिहार) से डी. लिट की उपाधि प्राप्त की। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में उन्होंने गुरुमुखी लिपि में हिंदी साहित्य की खोज करने और उन्हें संकलित करने के क्षेत्र में शोध शुरू किया।
उन्होंने साहित्य और भाषा में पंजाब के योगदान की खोज करते हुए मध्यकालीन हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा। वहीं से हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 2012 से 2014 तक पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला में प्रोफेसर एमेरिट्स के रूप में कार्य किया।
डॉ. बेदी को वर्ष 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 2018 में राजभाषा और 2025 में ज्ञान रत्न पुरस्कार भी मिल चुका है। पंजाब सरकार ने 2004 में शिरोमणि हिंदी साहित्यकार से अलंकृत किया। डा. बेदी के 15 से अधिक कविता संग्रह आ चुके हैं, जिनमें मानव जीवन के सभी पहलुओं को छुआ गया है। उन्होंने हिंदी साहित्य में पंजाब के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान को उल्लेखनीय रूप से रेखांकित किया। डॉ. बेदी वर्तमान में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं में अहम दायित्व निभा रहे हैं।
गुरु ग्रंथ साहिब की व्याख्या की
हिंदू समाज सुधारक व लेखिका शारदा रानी फिल्लौरी पर बेदी के तीन खंडों में संपादित कार्य ने हिंदी साहित्य के इतिहास को नई दिशा दी। उन्होंने पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संदेश की खोज और उसकी व्याख्या है। यह पवित्र ग्रंथ धार्मिक पाठ से अधिक भारतीय परंपरा के समन्वय और गुरुओं, सूफी व भक्तों के अखिल भारतीय चिंतन का प्रतिनिधित्व करता है।
उन्होंने ‘हिंद दी चादर’ के नाम से प्रसिद्ध श्री गुरु तेग बहादुर जी की बाणी और श्री गुरु गोबिंद सिंह के विद्या दरबार के कवियों की रचनाओं का संकलन और संपादन किया। भक्ति काव्य से लेकर गुरु काव्य, उदासी और निर्माले जैसे शिक्षा के कई अन्य केंद्रों तक खोज व संपादन किया।
दैनिक जागरण