डॉ. अजय कुमार।
पाकिस्तान के साथ संघर्ष के दौर में एक मोर्चा फर्जी सूचनाओं का भी खुला हुआ है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अपुष्ट सूचनाओं की बमबारी हो रही है। जहां कई देशों ने सूचनाओं को अपनी ताकत के रूप में ढालकर उन्हें हथियार बनाया है, वहीं पाकिस्तान ने आतंकवाद की नीति के साथ झूठी कहानियां गढ़ने का अपना एक माडल तैयार किया है। गत दिवस विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी कहा कि पाकिस्तान अपने जन्म के समय से ही झूठ बोल रहा है।
दूसरे तमाम देशों में तो झूठा आख्यान ट्रोल्स या बोट्स जैसे माध्यमों के जरिये गढ़ा जाता है, लेकिन पाकिस्तान में इसकी कमान जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग ही संभालते आए हैं। रह-रहकर इसके प्रमाण सामने आते रहते हैं। जैसे बीते दिनों एक अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल की एंकर ने पाकिस्तानी रक्षामंत्री से भारतीय विमानों को मार गिराए जाने के उनके दावे की पुष्टि के समर्थन में प्रमाण मांगे तो उन्होंने हास्यास्पद रूप से कहा कि यह सब ‘सोशल मीडिया’ पर मौजूद है।
समग्रता में देखें तो आतंक के साथ दुष्प्रचार के मामले में पाकिस्तान कुख्यात आतंकी संगठन आइएस की रणनीति को अपनाता दिख रहा है। आइएस ने आतंक को बढ़ावा देने में सूचना युद्ध को एक नया कलेवर प्रदान किया। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आतंक और फर्जी सूचनाएं मनोवैज्ञानिक और हाइब्रिड युद्ध में गहराई से जुड़े हथियार हैं। आइएस ने अपने शिकंजे में फंसे लोगों को तरह-तरह की यातनाएं दी हैं और उससे जुड़ी सामग्री का खूब प्रचार-प्रसार किया। इसका असर 2016 में इराक के मोसुल पर उसके हमले में नजर भी आया। वहां बड़ी संख्या में प्रशिक्षित अमेरिकी सुरक्षाकर्मियों और सुरक्षा संबंधी अन्य ढांचे की मौजूदगी के बावजूद आइएस का खौफ ऐसा हावी हुआ कि सुरक्षा पंक्ति तितर-बितर हो गई और आइएस को शहर पर कब्जे के लिए बहुत कम प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। मोसुल पर यह कब्जा भविष्य के मनोवैज्ञानिक युद्धों के लिए एक मिसाल के तौर पर पेश किया गया।
आतंकवाद की तरह सूचना युद्ध भी केवल युद्धकाल तक ही सीमित नहीं रहता, अपितु शांति या सामान्य काल में भी अपना असर दिखा सकता है। नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के विरोध में पाकिस्तानी दुष्प्रचार अभियान इसका एक बड़ा उदाहरण है। पाकिस्तान में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों और प्राधिकारी संस्थाओं के हैंडल से सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान फर्जी सूचनाओं के प्रसार से भारत को मुस्लिम-विरोधी के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
इस तरह पाकिस्तान द्वारा शांतिकाल में भी झूठे आख्यान गढ़कर भारत को अस्थिर करने का षड्यंत्र किया गया। आतंक और सूचना युद्ध में एक और समानता है कि इसके जरिये केवल सैनिकों को ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों को निशाना बनाकर भी देश को भीतर से तोड़ने की कोशिश होती है। पहलगाम आतंकी हमला इसका पुख्ता प्रमाण रहा, जहां आतंकियों ने न केवल धार्मिक पहचान के आधार पर लोगों की जान ली, बल्कि यह भी कहा कि जाकर मोदी से कह देना…। इसके पीछे उनकी मंशा नरसंहार के साथ-साथ देश को विभाजित कर उसका हौसला तोड़ने की भी थी।
जो सीधी लड़ाई नहीं लड़ सकते, वही आतंकवाद और सूचना युद्ध यानी फर्जी खबरों का सहारा लेते हैं और पाकिस्तान दशकों से यह करता आया है। जैसे आतंक को राज्य नीति का हिस्सा बनाए जाने के बावजूद पाकिस्तान लगातार उससे इन्कार करता आया है। जबकि उसकी यह हकीकत बार-बार दुनिया के सामने उजागर होती आई है। फर्जी खबरों से लैस सूचना युद्ध भी आतंकी ढर्रे पर लड़ा जाता है, जिसमें छद्म खातों या अनधिकृत चैनलों के जरिये झूठ परोसा जाता है। प्रतिद्वंद्वी के समक्ष कमजोर देश ही इसका सहारा लेते हैं।
चूंकि भारत की सामरिक क्षमताओं के आगे पाकिस्तान कहीं नहीं ठहरता तो उसके पास आतंकवाद और फर्जी सूचनाओं का सहारा लेने के अलावा कोई और चारा शेष नहीं रह जाता। इंटरनेट मीडिया का उद्भव फर्जी सूचनाओं के प्रसार के बड़े आधार के रूप में सामने आया है। यहां हर कोई अपने दृष्टिकोण के साथ उपस्थित है, भले ही तथ्यों से उसका कोई सरोकार न हो। जब लोग साजिशों के तानेबाने और एआइ आधारित डीपफेक के जरिये किसी भी तरह बस यूजर्स को लुभाकर मुनाफा कमाने में लगे हैं तो इस कवायद में सत्य की बलि चढ़ जाना बहुत स्वाभाविक है। फिर लोगों को अपने हिसाब से बरगलाया जाता है।
इससे भी बदतर बात यही है कि कोई गलती से भी एक बार ऐसी फर्जी सूचनाओं के दायरे में आ जाए तो एलगोरिदम फिर वैसी ही सामग्री परोसने लग जाता है। इंटरनेट मीडिया के तमाम मंच इसके प्रतिकार के उपाय उपलब्ध कराने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी प्रभावोत्पादकता बहुत सीमित है। इसका परिणाम यही होता है कि कई बार तथ्यपरक बातें भी संदेह की दृष्टि से देखी जाने लगती हैं। मानव मस्तिष्क और धारणा को सूचना युद्ध जिस प्रकार प्रभावित करता दिख रहा है उसे देखते हुए पाकिस्तान जैसे नाकाम देश द्वारा भविष्य में उसका और अधिक सहारा लेने पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।
यह समय की मांग है कि मनगढ़ंत खबरों वाले सूचना युद्ध से निपटने के लिए आवश्यक उपाय किए जाने में विलंब न किया जाए। इसके लिए एक प्रभावी एवं विश्वसनीय सूचना तंत्र स्थापित करना होगा, जो त्वरित आधार पर झूठी सूचनाओं का प्रतिकार कर सके। आपरेशन सिंदूर पर जानकारी के लिए विदेश सचिव के नेतृत्व में भारतीय सेना और वायु सेना की महिला अधिकारियों की प्रेस ब्रीफिंग में ऐसे प्रभावी तंत्र की झलक मिली। एक ऐसे दौर में जब अधिकांश लोग इंटरनेट मीडिया को लेकर सतर्क हो रहे हैं तब सरकार को भी चाहिए कि वह नागरिकों को इसके लिए सशक्त करे कि वे फर्जी सूचनाओं को पहचानने में सक्षम बनें। इसके लिए जागरूकता अभियान भी उपयोगी होगा। एआइ-आधारित फैक्ट चेक इकाइयों के साथ ही उन्नत निगरानी तंत्र और एआइ से लैस उस तंत्र में निवेश भी करना होगा जो झूठ को पकड़ने में प्रभावी हो।
(लेखक पूर्व रक्षा सचिव और आइआइटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर हैं)
आभार : https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-pakistan-is-resorting-to-fake-news-against-india-23934615.html
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