ब्रांडेड दवाएं वे दवाएं हैं जिन्हें मूल निर्माताओं द्वारा विकसित और विपणन किया जाता है। भारत में ज्यादातर ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं, क्योंकि ब्रांडेड दवाएं बहुत महंगी होती हैं।
01 जुलाई, 2025 – नई दिल्ली : मणिकांत ठाकुर और उनकी पत्नी को डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर है। पहले वे हर महीने दवाओं पर लगभग 2,000 रुपये खर्च करते थे। लेकिन पिछले साल दिसंबर में मणिकांत की नौकरी चली गई। नौकरी जाने के बाद उन्होंने खर्च कम करने का फैसला किया। उन्होंने जन औषधि स्टोर से मिलने वाली जेनेरिक दवाएं लेना शुरू कर दिया। ये दवाएं पहले इस्तेमाल की जाने वाली ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं से 50%-80% तक सस्ती थीं।
मणिकांत ने बताया कि उन्होंने अपने परिवार के डॉक्टर की सलाह नहीं मानी। डॉक्टर ने कहा था कि जन औषधि स्टोर पर मिलने वाली जेनेरिक दवाएं अच्छी क्वालिटी की नहीं होती हैं, इसलिए वे सस्ती होती हैं। लेकिन मणिकांत और उनकी पत्नी ने फिर भी इन दवाओं को आजमाने का फैसला किया, क्योंकि उनके लिए एक-एक पैसा मायने रखता था। 2008 में शुरू हुई जन औषधि योजना को लेकर लोगों की राय धीरे-धीरे बदल रही है। सरकारी आंकड़ों में भी यह बदलाव दिख रहा है। 2014-15 तक, योजना शुरू होने के छह साल बाद, देश में केवल 80 जन औषधि स्टोर थे। इनकी बिक्री लगभग 7.5 करोड़ रुपये थी। लेकिन अब इनकी संख्या बहुत बढ़ गई है। लोग अब जेनेरिक दवाओं को आज़मा रहे हैं क्योंकि वे सस्ती हैं और उनकी गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। सरकार भी इनकी उपलब्धता और पहुंच बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
जेनेरिक दवाएं, ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं और ब्रांडेड दवाएं
दवाओं को तीन भागों में बांटा जा सकता है: जेनेरिक दवाएं, ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं और ब्रांडेड दवाएं। जेनेरिक दवा वह होती है जो अपने रासायनिक नाम से बेची जाती है, न कि किसी खास ब्रांड नाम से। ब्रांडेड जेनेरिक दवा में वही सक्रिय तत्व होते हैं जो जेनेरिक दवा में होते हैं। इसका मतलब है कि वे एक ही तरह से काम करती हैं और उनकी गुणवत्ता भी एक जैसी होती है। लेकिन ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं को दवा कंपनियां एक ब्रांड नाम के तहत बेचती हैं। ब्रांडेड दवाएं वे दवाएं हैं जिन्हें मूल निर्माताओं द्वारा विकसित और विपणन किया जाता है। भारत में ज्यादातर ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं, क्योंकि ब्रांडेड दवाएं बहुत महंगी होती हैं।
मणिकांत ठाकुर ने बताया कि वे लगभग छह महीने से जन औषधि स्टोर से जेनेरिक दवाएं खरीद रहे हैं। उनकी ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर दोनों ही नियंत्रण में हैं। मणिकांत एक अकाउंटेंट हैं।
जन औषधि केंद्रों की संख्या 11 सालों में 180 गुना बढ़ी
रवि दधीच, जो हाल तक फार्मास्युटिकल एंड मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ इंडिया (PMBI) के CEO थे, ने बताया कि जन औषधि केंद्रों की संख्या 11 सालों में 180 गुना बढ़ गई है। PMBI ही जन औषधि योजना को चलाती है। इस योजना का आधिकारिक नाम प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) है। दधीच ने कहा कि जन औषधि स्टोर से जेनेरिक दवाएं खरीदने वाले मरीजों की एक बड़ी चिंता इनकी क्वालिटी को लेकर होती है। उन्होंने बताया कि जन औषधि स्टोर पर मिलने वाली सभी दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से प्रमाणित आपूर्तिकर्ताओं से खरीदी जाती हैं। इन आपूर्तिकर्ताओं को WHO-गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस (WHO-GMP) का सर्टिफिकेट मिला होता है। ये दवाएं अच्छी क्वालिटी की होती हैं। इसके अलावा, दवाओं के हर बैच को वेयरहाउस में आने के बाद नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज (NABL) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में टेस्ट किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि दवाएं अच्छी क्वालिटी की हैं।
सरकार ने दवाओं की पैकेजिंग में भी सुधार किया
दधीच ने यह भी बताया कि सरकार ने हाल ही में दवाओं की पैकेजिंग में भी सुधार किया है। अब दवाएं देखने में ज्यादा अच्छी लगती हैं। इसके अलावा, जन औषधि स्टोर पर अब कई नई चीजें भी मिलती हैं, जैसे कि सैनिटरी पैड, BP मॉनिटर, नेबुलाइजर और थर्मामीटर। PMBI ने एक मोबाइल ऐप भी बनाया है, जिसका नाम है जनऔषधि सुगम। यह ऐप लोगों को आस-पास के PMBJK (प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र) को ढूंढने, दवाओं को सर्च करने और उनके टेलीफोन नंबर पता करने में मदद करता है।
सरकार ने डॉक्टरों को जेनेरिक नाम से दवाएं लिखने के लिए भी कहा है। राज्यों को भी यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि डॉक्टर जेनेरिक दवाएं लिखें और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में दवाओं के पर्चे की नियमित ऑडिट करें। लेकिन जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों का संदेह अभी भी दूर नहीं हुआ है। सरकार ने बार-बार लोगों को इनकी सुरक्षा के बारे में आश्वासन दिया है।
दिल्ली की रहने वाली सुमति सिन्हा ने बताया कि वह अपने पूरे परिवार के लिए जेनेरिक दवाएं इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने कहा कि नतीजे पहले जैसे ही हैं, जब वह ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं ज्यादा कीमत पर खरीदती थीं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जेनेरिक दवाओं के बारे में इतनी नकारात्मक बातें सुनने के बाद उन्हें डर लगता है कि कहीं वह पैसे बचाने के लिए अपने परिवार के स्वास्थ्य से समझौता तो नहीं कर रही हैं।
फोर्टिस सी-डॉक के चेयरमैन डॉ. अनूप मिश्रा ने कहा कि ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं आजमाई हुई होती हैं, इसलिए डॉक्टर भी उन्हें जेनेरिक दवाओं से ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं। उन्होंने बताया कि उनके ज्यादातर मरीज अभी भी ब्रांडेड दवाएं ही लेते हैं। लेकिन पिछले दो सालों में 5%-10% मरीजों ने जन औषधि स्टोर से जेनेरिक दवाएं लेना शुरू कर दिया है।
ग्राहक संतुष्टि में सुधार करने की सिफारिश
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल ने कहा कि डॉक्टर जेनेरिक दवाओं के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि इन दवाओं की क्वालिटी सरकार द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए। हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन में भी यह बात सामने आई है। इस अध्ययन को मेहाक चंदोक और सरिता गौतम ने किया था। वे बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संस्थान से हैं। अध्ययन में जेनेरिक दवाओं की पहुंच, उपलब्धता, सामर्थ्य और ग्राहक संतुष्टि में सुधार करने की सिफारिश की गई है।
सौजन्य : नवभारत टाइम्स
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