हर जुबां पर रनिंग बाबा की जिंदगी का संघर्ष
18 जुलाई, 2025 – जालंधर : फौजी सिंह की अंतिम इच्छा थी कि ‘मैं अपने गांव में दम तोड़ू, ताकि मेरे बाद मिट्टी भी युवाओं को प्रेरणा दे’। फौजा सिंह को देख गांव के युवाओं ने नशा छोड़ दिया था। 114 साल की उम्र में भी बच्चों जैसा व्यवहार था।
पिंड (गांव) मेरे लिए सबकुछ है। मैं यहीं पैदा हुआ, यहीं पला-बढ़ा। इसे कैसे छोड़ दूं? पिछले साल कनाडा गया था। वहां बीमार हो गया तो डर गया कि कहीं वापस ही ना जा पाऊं। मेरा सपना है-‘मरां तां अपणे देश विच मरां, अपणे पिंड विच मरां। यह शब्द थे फौजा सिंह के।
टर्बन टॉरनेडो, रनिंग बाबा और सिख सुपरमैन नाम से मशहूर पंजाब के 114 साल के एथलीट फौजा सिंह की जिंदगी का संघर्ष हर जुबां पर है। उनका अंतिम सफर तो झकझोर देने वाला है।
घर-गांव के लोग हों या क्षेत्र के, फौजा सिंह के लिए सभी अपने थे। खेतों से शुरू हुआ जिंदगी का सफर मैराथन तक कब पहुंच गया पता ही नहीं चला। उन्होंने 80 की उम्र में दौड़ना शुरू किया। वर्ष 2012 के लंदन ओलिंपिक में वह मशाल वाहक भी रहे।
गांव के सरवन सिंह (86) ने कहा कि फौजा सिंह को गांव की मिट्टी से प्यार था। वह ज्यादा समय बाहर नहीं रहे। फौजा सिंह की पहल ने गांव के युवाओं को नशे के दलदल से निकाला और खेलों से जोड़ दिया।
सैर ने जिंदगी बेहतर बनाई और छीन ली
फौजा सिंह के बेटे हरविंदर सिंह बताया कि हादसा घर से महज 300 मीटर की दूरी पर जालंधर पठानकोट नेशनल हाईवे पर हुआ, जब वह दोपहर 3 बजकर 5 मिनट पर घर से निकले। बाहर गली में 3:07 पर जाते दिखाई दिए और 3:10 पर गाड़ी ने टक्कर मार दी।
फौजा सिंह घर से ढाबा और खेतों को देखने के लिए निकले थे। अब उनके संस्कार बेटे बेटियों के विदेश से आने के बाद किया जाएगा। जो शुक्रवार या शनिवार तक किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को मोर्चरी में रखवाया गया है।
बेटा हरविंदर सिंह ने कहा कि पिता को सैर करना पसंद था। एक एथलीट की जिंदगी ऐसी ही होती है। जिसने जिंदगी सुखमय बनाई और सैर पर निकले तो वाहन ने टक्कर मार कर सबकुछ छीन लिया। पिता फौजा सिंह ने खाने के बाद कभी आराम नहीं किया।
SGPC अध्यक्ष ने जताया शोक
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने फौजा सिंह के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि फौजा सिंह 114 वर्ष की आयु में भी जोश और साहस से परिपूर्ण थे।
सौजन्य : अमर उजाला