जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने निहत्थे भारतीयों पर चलवाई थीं गोलियां, 21 साल बाद उधम सिंह ने लिया बदला
साल 1919 के शुरुआती महीने। ब्रिटिश सरकार रॉलेट एक्ट को लाने की तैयारी कर रही थी। इस एक्ट से ब्रिटिश सरकार को ये ताकत मिल जाती कि वो किसी भी भारतीय को बिना किसी मुकदमे के जेल में बंद कर सकती थी। भारतीयों ने इस एक्ट का पुरजोर विरोध किया। इसके बावजूद 8 मार्च से इस एक्ट को लागू कर दिया गया। विरोध में जगह-जगह हड़ताल और प्रदर्शन होने लगे।
गांधी जी ने इस कड़ी में 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल की। पूरे देश की तरह पंजाब में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। 9 अप्रैल को पुलिस ने अमृतसर के लोकप्रिय नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया। इन नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में 10 अप्रैल को एक प्रदर्शन हुआ, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में कुछ प्रदर्शनकारी मारे गए। हालात बिगड़ते देख सरकार ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दी।
प्रदर्शन फिर भी रुके नहीं। रॉलेट एक्ट को वापस लेने और अपने नेताओं की रिहाई की मांग को लेकर 13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई। सभा में 25 से 30 हजार लोग मौजूद थे। तभी वहां जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ आ धमका और सभा में मौजूद निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। बाग में अफरा-तफरी मच गई। लोग जान बचाने के लिए भागने लगे। कई लोग बाग में मौजूद कुएं में कूद गए। करीब 10 मिनट तक गोलीबारी चलती रही, जिसमें करीब 1 हजार लोगों की मौत हुई। हालांकि इस कांड की जांच के लिए बनी हंटर कमेटी ने मरने वालों की संख्या 379 ही बताई।
जलियांवाला बाग का बदला
इस पूरे कांड के दौरान वहां उधम सिंह नाम के एक युवा भी मौजूद थे। वो पूरे नरसंहार का गवाह थे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के इस जुल्म का बदला लेने की ठानी। उधम सिंह ने जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की कसम खाई, लेकिन जुलाई 1927 में जनरल डायर की ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई। अब उधम सिंह के निशाने पर माइकल ओ डायर था। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में बैठक थी। वहां माइकल ओ डायर भी मौजूद था। उधम सिंह भी वहां पहुंच गए। बैठक के बाद उधम सिंह ने पिस्टल से 6 फायर किए। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं और इसी के साथ जलियांवाला बाग का बदला पूरा हुआ।
जरा ‘याद’कर लो यादगार:जलियांवाला बाग में आज शहीदों की याद में होगा समागम, मगर राज्य सरकार के 8 माह पहले बनाए मेमोरियल में सफाई तक नहीं
जलियांवाला बाग कांड की 103वीं बरसी पर बाग में बुधवार को जहां शहीदों की याद में समागम करवाया जाएगा, वहीं दूसरी ओर 8 महीने पहले राज्य सरकार की ओर से आनंद अमृत पार्क में तैयार किए गए जलियांवाला बाग ‘शहीदी मेमाेरियल’ में सन्नाटा पसरा रहेगा। इस यादगार में साफ-सफाई तक नहीं कराई गई है। बीते साल प्रदेश सरकार ने रणजीत एवेन्यू स्थित आनंद अमृत पार्क में ‘शहीदी मेमाेरियल’ बनाया था।
जलियांवाला बाग के शहीदों को ब्रिटिश सरकार के दिए 13,840 रुपए के मुआवजे को शहादत का अपमान बता, 2 महिलाओं ने ठुकराया था
13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाला बाग में हुए बर्बर गोलीकांड में शहीद हुए सैकड़ों भारतीयों की जान की कीमत बतौर मुआवजा बर्तावनी सरकार ने 13,840 रुपए लगाई थी। इसी शहीदों का अपमान करार देते हुए दो भारतीय महिलाओं ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया था।
समें एक अंग्रेज महिला भी थी, जिसने भी उक्त रकम लेेने से मना कर दिया था। इतिहासकार आशीष कुमार का कहना है कि हालांकि अंग्रेज सरकार ने इन दोनों महिलाओं को अलग से 25-25 हजार रुपए देने की पेशकश की थी लेकिन उनका कहना था कि वह शहीदों के खून की कीमत नहीं लेंगी, यह शहादत का अपमान है।
अतर कौर घटना के वक्त गर्भवती थीं… पति का शव वह खुद लेकर गईं थीं, 7 माह बाद सोहन को दिया था जन्म
अतर कौर घटना के वक्त गर्भवती थीं और बाग में उनके पति भागमल भाटिया शहीद हुए थे। पति का शव लेकर वह खुद घर गई थीं। आशीष के मुताबिक उनके बड़े बेटे मोहन लाल की उम्र 3-4 साल की थी और उनकी मदद से संस्कार किया था। अतर कौर ने 7 महीने बाद बेटे सोहन लाल को जन्म दिया था। यह वही सोहन लाल रहे, जिनको तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जलियांवाला बाग का अभिमन्यु का खिताब दिया था। बाद में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और ज्ञानी जैल सिंह ने भी उनको सम्मानित किया था।
अभी तक नहीं मिला बाग के शहीदों का सही आंकड़ा
बाग में गोलीबारी में शहीदों का अभी तक सही आंकड़ा नहीं मिल सका है। कोई 379, कोई 501 तो कोई 1,000 के आसपास बताता है। इधर गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी में स्थापित जलियांवाला बाग चेयर के जरिए जारी शोध में अभी तक में 379 लोगों की पूरी जानकारी मिल सकी है। चेयर की मुखी डॉ. मनदीप कौर बल शोध का हवाला देते हुए कहती हैं कि हमारे लोगों के जान की कीमत बर्तानवी सरकार ने चंद रुपए लगाए थे। उनके मुताबिक 1921 में शहीदों को 13,840 रुपए मिले थे। वहीं दूसरी ओर जनरल डायर को इस गोलीकांड करने के कारण सरकार द्वारा उसके खिलाफ की गई कार्रवाई के चलते ब्रिटेन की संस्थानों ने उसे 23,250 रुपए बतौर राहत भेंट किया था। पति के शव की बाग में ही रखवाली करती थी रतना: मुआवजा न लेने वाली महिला रतना के पति छज्जू मल बाग में शहीद हुए थे। वह बाग में रात भर लाशों की रखवाली करती रहीं और सुबह पति की लाश संस्कार के लिए ले गई थीं। उन्होंने अंग्रेजों के मुआवजे को शहादत का अपमान बताया था।
दर्शकों की तादाद में इजाफा: रेनोवेशन के बाद जलियांवाला बाग में ढाई गुणा टूरिस्ट बढ़े, शहीदी कुएं के चढ़ावे में भी इजाफा हुआ
13 अप्रैल 1919 के बैसाखी वाले दिन हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड की 103वीं बरसी आज मनाई जाएगी। बाग को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किए जाने के बाद इस बार पहला मौका है जब बाग में आने वाले दर्शकों की तादाद में इजाफा हुआ है। यही नहीं शहीदी कुएं में लोगों द्वारा किए जाने वाले चढ़ावे में भी बढ़ोतरी हुई है।
देश की आजादी के बाद बाग को शहीदी स्मारक घोषित किया गया। 1960 से इसके रखरखाव का काम शुरू किया गया। कुछ काम 50वीं वर्षगांठ के मौके पर हुआ। इसके बाद 1994 में 75वीं वर्षगांठ पर इसे विधिवत संरक्षित किया गया। शताब्दी के मौके पर 2019 में इसे 20 करोड़ की लागत से नवीनीकृत किया गया। इससे बाग का आकर्षण और बढ़ गया है।
नवीनीकरण से पहले रोज आते थे 25 हजार पर्यटक, अब रोज 90 हजार तक आ रहे हैं
नवीनीकरण से पहले यहां पर रोजाना आम दिनों में 20 से 25 हजार लोग आते रहे। पर्व-त्योहार, छुट्टियों के मौके पर यह तादाद 40 से 50 हजार तक पहुंचती रही है। पुलिस के रिकॉर्ड पर गौर करें वर्तमान में आम दिनों की आमद 80 से 90 हजार हो रही है।
सौजन्य : दैनिक भास्कर
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