पुनर्गठन के 56 साल: कटा, बंटा और फिर सीना तानकर खड़ा हुआ पंजाब
शशिभूषण पुरोहित
पवित्र गुरुओं की धरती पंजाब ने पीढ़ियों से कई दर्द सहे। 1947 के बंटवारे के दौरान पंजाब ने हैवानियत का एक बड़ा संताप झेला। पंजाबियत पर इससे पहले कभी इतना बड़ा संकट नहीं आया। लाखों मजलूमों के कत्ल, दुष्कर्म, अपहरण, लूटपाट, विश्वासघात और जबरन धर्मांतरण, आखिर क्या नहीं सहा पंजाब ने। पांच से सात लाख लोग पंजाब के दोनों तरफ मारे गए।
80 लाख लोगों को 90 दिन के अंदर अपने घर-बार छोड़कर भागना पड़ा। पंजाब टूट गया, आधा पाक में तो आधा भारत में आ गया। 20 लाख बीघा खेतीबाड़ी की जमीन पाकिस्तान की तरफ चली गई। कत्लेआम से पंजाब शून्य पर आ गया। पंजाब की 553 किलोमीटर की सीमा पाक से सट गई। भारत पाकिस्तान से अलग तो हो गया लेकिन पंजाब में आग सुलगती रही।
संताप के इन 19 वर्षों बाद 1 नवंबर 1966 को पंजाब का फिर से पुनर्गठन हुआ और इसके तीन टुकड़े एक मूल पंजाब, दूसरा हरियाणा और तीसरा हिमाचल प्रदेश के रूप में सामने आए। कई बार कटने और बंटने के बावजूद पंजाब फिर से सीना तानकर खड़ा है। लंबे समय तक आतंकवाद का दंश झेलने वाले पंजाब ने इसका डटकर मुकाबला किया लेकिन नशे के मकड़जाल में फंस गया। पंजाब पाकिस्तान से नशे की आपूर्ति और अंतरराष्ट्रीय गिरोहों के ड्रग नेटवर्क से लगातार मुकाबला करता आ रहा है।
पंजाब की राजनीति इस बात की गवाह रही है कि यहां पंथक, हिंदुओं, अनुसूचित जातियों ने मिलकर सरकार का गठन किया है। इसमें डेरों की भूमिका भी काफी अहम रही है। अकाली दल ने अगर पंजाब में 25 साल सत्ता संभाली है तो वह पंथक, हिंदुओं और अनुसूचित जातियों के वोट के बल पर।
प्राचीन समय से अब तक पंजाब की गाथा संघर्ष भरी रही है। मुगल हों या अंग्रेज या फिर आज का पाकिस्तान, सबकी नजर पंजाब पर ही रही। प्राचीन समय में पंजाब को सप्त सिंधु के नाम से पुकारा जाता था और सिकंदर ने सबसे पहले पंजाब को अपना बनाने के लिए आक्रमण किया था। बाद में इस पर मुगलों की नजर पड़ी तो अनेक हमले झेले।
इस तरह पड़ी अलग राज्य की नींव
1950 के दशक में अकाली दल ने मास्टर तारा सिंह के नेतृत्व में पंजाबी सूबा आंदोलन चलाया। उन्होंने भाषा के आधार पर राज्य के विभाजन की मांग रखी क्योंकि उस समय सिखों के साथ-साथ बहुत से हिंदू भी इसी एक राज्य में रहते थे। उस समय सभी हिंदुओं ने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने का समर्थन किया, जो कि पंजाबी बोलने वाले सिखों को नामंजूर था। इस मामले को राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
राज्य पुनर्गठन आयोग ने पंजाबी को हिंदी से अलग (व्याकरण की दृष्टि से) न मानते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया लेकिन उन्होंने अपनी मांगों को जारी रखा और वे प्रदर्शन करते रहे। 16 साल के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार, सितंबर 1966 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इनकी मांगों को स्वीकार किया और पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार 1 नवंबर 1966 को पंजाब को तीन भागों में बांट दिया गया।
शाह कमीशन के सुझाव पर पंजाब का दक्षिण भाग (जहां हरियाणवी बोली जाती थी) बन गया हरियाणा और जहां पहाड़ी बोली जाती थी, उस भाग को हिमाचल प्रदेश बना दिया गया। शेष क्षेत्रों को मिलाकर (चंडीगढ़ को छोड़कर) एक नए पंजाबी बहुल राज्य का गठन किया गया। हरियाणा और पंजाब, दोनों ने ही चंडीगढ़ पर अपना अधिकार जताया। इस वजह से चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया, जो कि दोनों राज्यों की राजधानी के रूप में जाना जाता है।
आतंकवाद: 14 साल ठहर सा गया था पंजाब
खालिस्तान के रूप में एक अलग देश की मांग 1980 के दशक में और भी जोर पकड़ने लगी। मांग तेज होने के साथ इसका नाम खालिस्तान आंदोलन पड़ा। पंजाब के विरुद्ध भारत सरकार के पक्षपात और रावी तथा ब्यास नदी के पानी के विभाजन को लेकर हुए विवाद को भी इस आंदोलन का एक कारण माना जाता है। इसी बीच एक चरमपंथी सिख नेता के रूप में दमदमी टकसाल के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी।
पंजाब में खालिस्तान आंदोलन बार-बार फन फैलाता रहा है। भारत में यह सबसे हिंसक अलगाववादी आंदोलनों में एक था। इसके कारण 1980 से 1995 के बीच डेढ़ दशक में कुल 21,532 लोग मारे गए जिनमें 8,090 अलगाववादी, 11,796 आम लोग और 1,746 सुरक्षाकर्मी थे। खालिस्तान आंदोलन का फिर से उभार पंजाब में 2007 के बाद हुए सभी चुनाव में एक बड़ा मुद्दा रहा है। हालांकि गृह मंत्रालय की 2019-2020 की वार्षिक रिपोर्ट में खालिस्तान आंदोलन का कोई जिक्र नहीं है, सिवाय इसके कि सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नामक संगठन को यूएपीए-1967 के तहत गैरकानूनी संघ घोषित किया गया है। 1 जुलाई 2020 को नौ कुख्यात खालिस्तान समर्थकों को अगस्त 2019 में संशोधित यूएपीए के तहत औपचारिक तौर पर आतंकवादी घोषित किया गया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
खालिस्तान आंदोलन के एक हिंसक रूप धारण करने के बाद पंजाब में आतंकी घटनाओं में काफी तेजी आने लगी। भिंडरावाले की लोकप्रियता तत्कालीन सरकार के लिए चुनौती बन गई। 1980 के बाद पंजाब ठहर सा गया। निवेश तो दूर की बात, पंजाब से उद्योग और कारोबारी पलायन करने लगे। 6 जून, 1984 को श्री हरमंदिर साहिब के भीतर भारतीय सेना ने ब्लू स्टार के नाम से एक व्यापक अभियान चलाया और जरनैल सिंह भिंडरावाला और उसके समर्थकों की मृत्यु हो गई।
पंजाब में आतंकवाद का दौर फिर भी जारी रहा। 1992 में बेअंत सिंह की सरकार बनी और डीजीपी केपीएस गिल को लगाया गया। इसके बाद आतंकवाद का सफाया हो गया लेकिन 1995 में खालिस्तानी अलगाववादियों के हमले में बेअंत सिंह की भी हत्या कर दी गई। पंजाब की अमन शांति को भंग करने के लिए पाकिस्तान से आज भी हथियार, गोला बारूद भेजा जा रहा है। वहीं, दूर देशों में बैठे गैंगस्टर पंजाब की शांति को भंग करने का कुप्रयास करते रहते हैं।
एक नजर में पंजाब
- पंजाब में प्रति व्यक्ति (सामान्य हाउस होल्ड) औसतन मासिक आमदनी 16,020 रुपये है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
- पुरुषों की अनुमानित जनसंख्या करीब 1.60 करोड़, महिलाओं की अनुमानित जनसंख्या 1.44 करोड़ है।
- पंजाब में बिजली की मांग करीब 8,000 मेगावाट है।
- पंजाब का बजट 2021-22 के लिए 1,68,015 करोड़ रुपये है।
सौजन्य : अमर उजाला
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