इशिता माहेश्वरी
उदारवादी लोकतंत्र की स्थिरता का भरोसा, अंतर्राष्ट्रीय शांति का प्रचार प्रसार व सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन व स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर विचार विमर्श व नियोजन, वैश्विक पटल पर स्वास्थ्य सेवाओं में उपलब्धि, न्याय संगत आर्थिक विकास, देश की तकनीकी क्षमता की प्रबलता और अंततः रक्षा क्षेत्र में मजबूती के साथ उभरता एकल देश- यह शब्द चित्र शीत युद्ध की समाप्ति पर द्विध्रुवी (बाइपोलर) विश्व व्यवस्था का अस्त और विश्व पटल पर संयुक्त राज्य अमेरिका के बढ़ते वर्चस्व को दर्शाता है। उन्नीस सौ नव्वे के दशक में अमरीका तरक्की के नए आयामों को छू रहा था। वहीं दूसरी तरफ भारत व अन्य कई वैश्विक दक्षिणी देश अर्ध विकसित/विकासशील देशों की पंक्ति में खड़े अमेरिका व पश्चिम के समक्ष संरक्षण की आस लगाए बैठे प्रतीत होते थे। विगत वर्षों में संपूर्ण विश्व ने अमेरिका के बढ़ते वर्चस्व व विश्वव्यापी एकल अस्तित्व को देखा।
आज ठीक दो दशकों के बाद सन् दो हजार बीस में कोविड-19 की भयानक बीमारी ने वैश्विक स्तर पर बहु स्तरीय हमला कर मानव सभ्यता को क्षति पहुंचाई । इस पूरे घटनाक्रम के हम सभी प्रत्यक्ष साक्षी हैं। यूरोप के देशों में कहर, संयुक्त राज्य अमेरिका में वेंटिलेटर, आईसीयू वार्ड्स की कमी, अफ्रीका व दक्षिणी अमेरिका में कोरोना से बढ़ती मृत्यु दर, दक्षिण एशिया के कम क्षेत्रफल वाले देशों में अस्थिरता, चीन में नागरिकों के बीच सत्ता (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना) में बढ़ता अविश्वास व असुरक्षा का भाव इसी कड़ी के ही अंग हैं। जनसंख्या में दूसरे स्थान वाले हमारे देश भारत में कोरोना महामारी का कहर अन्य देशों से ज्यादा भिन्न नहीं रहा। कई समस्याओं जैसे लॉकडाउन मजदूरों का विस्थापन, अर्थव्यवस्था के चक्र का थम जाना, स्वास्थ्य सेवाओं के आधारभूत ढाँचे में कमियां, रोटी- दवाई की समस्या, मृत्यु दर में इज़ाफा और भी अनेक स्तरों पर चुनौतियों के बीच खड़े भारत के सामने अपार मुश्किलें आईं। अमेरिका जैसे देश जहां महामारी के दौरान कई मायनों में हताश नजर आये, यहां तक की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइङेन, जिनका अहम चुनावी मुद्दा स्वास्थ्य सेवा व कोरोना पर प्रहार रहा, ने हाल ही में कोरोना महामारी के प्रति अपनी असमर्थता पर खेद जताया वहीं दूसरी तरफ इस आपदा को अवसर में बदलने का अदम्य साहस जो भारत के नागरिकों द्वारा किया गया उसकी सराहना ना करना न्यायसंगत नहीं होगा। कोरोना से उबरने के लिए हर देश में वैक्सीन का ब्रह्मास्त्र खोज निकालने की जो दौड़ शुरू हुई उसमें भारत के स्थान को आदर्श लोक के ही तौर पर देखा गया। हमेशा से चली आ रही मिसाल की तर्ज पर अमेरिका पर ही सभी की अपेक्षाएं और उम्मीदें टिकी रहीं। समय निकला और भारत के 72 में गणतंत्र दिवस की दस्तक के साथ ही भारतीय कंपनियों भारत बायो टेक, सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया आदि ने ना केवल भारत को वैक्सीन का तोहफ़ा दिया बल्कि पूरे विश्व में आज सौम्य शक्ति यानी सॉफ्ट पावर सशक्तिकरण में देश का महत्व उल्लेखनीय है। घरेलू उत्पादन में ही नहीं बल्कि भारत दक्षिण एशिया में सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक के रूप में उभर रहा है जिसके चलते नेबरहुड फर्स्ट की नीति के कारण वैक्सीन वितरण में आज हम चाइना जैसे विस्तारवादी ताकतों से कहीं ऊपर सशक्त खड़े हैं। पड़ोसी देशों में ही नहीं बल्कि लेटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों में भी स्वास्थ्य सेवा के रूप में दवाइयां, रक्षा प्रणाली यंत्र, डॉक्टरों की टीम इत्यादि के बाद भारतीय टीके का पहुँचना अद्भुत है। चीन की मोतियों की माला की नीति (स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स )के जवाब में अन्य कई क्षेत्रों में भी तरक्की के साथ भारत को स्वास्थ्य सेवाओं से जो मजबूती मिली है वहां भू राजनीति की रणनीति में हमारा देश चीन के विस्तारवाद के ऊपर प्रभावी साबित हो रहा है। विश्व के सिरमौर रहे अमेरिका को पेरासिटामोल, हाइड्रो ऑक्सिक्लोरो क्वीन, वेंटिलेटर आदि का निर्यात इसी बात का सूचक है। यही नहीं कोविड महामारी के चरम के दौरान भारत द्वारा वतन वापसी के लिए चलाया गया ‘वंदे भारत मिशन’ अपने आप में बहुत बड़ी सफलता है।
स्वच्छ भारत मिशन, स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, आयुष्मान भारत, उज्जवला योजना, उजाला योजना, मेक इन इंडिया, मुद्रा योजना, डिजिटल इंडिया व कई तरह की कृषि संबंधित योजनाएं सामान्य काल में आम और उन्नति के लिए अपरिहार्य तो हो सकती हैं लेकिन कोरोना जैसी भयंकर महामारी के दौरान चरमराती अर्थव्यवस्था के बीच आत्मनिर्भरता की रणनीति का नियोजन और संघीय (फेडरल) सरकार द्वारा सीधा बीस लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा का होना आश्चर्य से कम नहीं है। उदारवादी लोकतंत्र जहां हर व्यक्ति को उसकी पहचान से परे शासन विधि में साझेदारी मुहैया होने और न्याय संगत अर्थ नीति के लिए क्रमशः पॉलिसी बनाने में जनमत का होना (उदाहरण के लिए नई शिक्षा नीति 2020) और हर व्यक्ति के उत्थान के लिए पीएम स्ट्रीट वेंङर्स आत्म निर्भर निधि के तहत रेहड़ी पटरी लगाने वाले वर्ग का सशक्तीकरण होना अपने आप में खूबसूरत है।
समर्पित सरकारी तंत्र, उदारवादी प्रशासन,निष्पक्ष जन सेवा,अधिकार व कर्तव्य के साथ समन्वय बनाने वाले नागरिक, प्रगतिशील समाज और अंततः उदारवादी लोकतंत्र की कल्पना (जिसका श्रेय हमेशा से अमेरिका व पश्चिमी देश लेते आये) भारत के लिए लंबे काल तक आदर्श लोक की बात रहे। आज के परिवेश में देश की स्थिति के आकलन में अभी कई बदलाव व क्रांतियाँ आनी बाकी हैं लेकिन साथ ही बहत्तर वें गणतंत्र दिवस के मौके पर देश में गढ़ के द्वारा, गढ़ के लिए, गण से स्थापित तंत्र देश के साथ कदम से कदम मिलाकर विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। वह विश्व गुरु जो अमेरिकी मायनों में एकल ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विश्वास करने वाला, सामंतवादी, विस्तारवादी, विश्व का प्रथम, द्तीय व तृतीय श्रेणी में विभाजन करने वाला, कम विकसित देशों में सत्ता स्थापित करने वाला, अन्य देशों की संप्रभुता को प्रभावित करने वाला, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में मनमानी करने वाला, संधियों को अपने फायदे के अनुसार मोड़ने वाला, छल नीति में भरोसा रखने वाला; ना हो करके भारतीय संस्कृति व सभ्यता से प्रेरित होकर “वसुदैव कुटुंबकम” और “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” के सूत्र के अनुसार सही मायनों में उदारवादी लोकतंत्र व अंतरराष्ट्रीय शांति की ओर अग्रसर रहने वाले विश्व गुरू भारत की कल्पना करते हैं। वह भारत जहां कोई बच्चा शिक्षा से वंचित ना हो, हर व्यक्ति के सिर पर छत और हर नागरिक को पौष्टिक भोजन के लिए संघर्ष ना करना पड़े, जहां महिलाएं आजादी की हवा में सांस ले सकें,जहां संप्रदाय आदि के नाम पर दंगे, जातिगत छुआछूत आदि का वायरस ना उपजे, अतः –
ब्रह्मन स्वराष्ट्र में हों द्विज ब्रह्म तेजधारी
क्षत्रिय महाबली हों अरीदल विनाशकारी
बलवान, सभ्य, योद्धा, यजमान पुत्र होगें
इच्छानुसार वर्षा पर जन्य ताप बोलें
होवे दुधारू गऊऐं, वृष, अश्व आषुवाही
आधार राष्ट्र की हों नारी सुभग सदा ही
फल फूल से लदी हो औषधि अमोघ सारी
हो योग क्षेमकारी स्वाधीनता हमारी।।
आइए हम सब इस बदलते भारत के सपने को साकार करें।
(इशिता माहेश्वरी, छात्रा, एम ए, राजनीति शास्त्र, दिल्ली विश्वविद्यालय)
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