सौरभ कपूर
महान भारतीय संस्कृति और परंपरा में कृषि को मानव कल्याण का साधन माना गया है। यजुर्वेद में कहा गया है- ‘कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा’। अर्थात राजा का मुख्य कर्त्तव्य कृषि की उन्नति, जन कल्याण और धन-धान्य की वृद्धि करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के किसानों को छोड़कर अंबानी,अडाणी और देश के उद्योगपतियों के साथ खड़े होंगे, यह उतना ही बड़ा झूठ है जितना बड़ा कोई यह कहे कि सूर्य पूर्व से नहीं पश्चिम से उग रहा है। भारत कृषि और ऋषि प्रधान देश है। अब किसान खेती के साथ – साथ व्यापार भी कर सकेंगे। अब भारत के किसान भी विदेशों की तर्ज पर व्यापारी भी बनेंगे। किसानों की आय को दोगुना करने के लिए केंद्र सरकार किसान उत्पादक संगठनों का गठन करके किसानों को आत्मनिर्भर बनने के लिए 15 लाख रुपये का एक मुश्त कर्ज देकर अपना व्यापार करने के अवसर उपलब्ध कराएगी। 6,850 करोड़ रूपए की लागत में एफपीओ बनने जा रहे हैं। कृषि सेक्टर का आत्मनिर्भर बनाने और कृषक को उसकी उपज का अधिकतम मूल्य दिलाने के साथ उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की इस योजना में पहले चरण में 10 हजार कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित किए जा रहे हैं।
आइए जाने किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) क्या है-
एफपीओ एक प्रकार का किसान उत्पादक संगठन है जो किसानों के हित में कार्य करता है और कंपनी एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर्ड होता है। पीएम किसान एफपीओ योजना के अंतर्गत ऐसे संगठनों को बढ़ावा दिया जाएगा। इस योजना के माध्यम से संगठनों को 15 लाख रुपए की आर्थिक सहायता सरकार द्वारा प्रदान की जाएगी। अब देश के किसान को खेती में भी कारोबार की तरह लाभ मिलेगा। एफपीओ योजना का लाभ उठाने के लिए कम से कम 11 किसानों को संगठित होकर अपनी कृषि कंपनी बनानी होगी। एफपीओ संगठनों को सरकार द्वारा वह सभी फायदे भी प्रदान किए जाएंगे जो एक कंपनी को प्रदान किए जाते हैं। इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि 3 सालों में प्रदान की जाएगी। इस योजना के माध्यम से देश के 10000 नए किसानो का संगठन बनाया जाएगा।
किसानों के काम का आकलन करके नाबार्ड कंस्ल्टेंसी सर्विस संगठन काम देखकर मूल्यांकन करेगी। इसके बाद कंपनी को रेटिंग दी जाएगी। जिसके आधार पर किसान को बाजार में अपनी साख बनाने में सहायता मिलेगी। इससे किसानों को अपनी फसल के देश में भर में उचित कीमत पर कहीं भी बेचने का अवसर मिलेगा। कुल मिलाकर कृषि उत्पादक संगठनों(एफपीओ) के माध्यम से कृषि उद्यमों को प्रोत्साहन मिलेगा।
एफपीओ से किसानों को होंगे ये लाभ –
-बीज खाद कीटनाशक जैसे कृषि निवेशो के लिए एफपीओ पर कृषि विभाग से लाइसेंस प्राप्त कर इनका व्यवसाय कर सकते हैं।
-कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत कलस्टर आधार पर लाभ पा सकते हैं।
-न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीद केंद्र के रूप में एफपीओ को मान्यता मिल सकती है।
-एफपीओ के पास पंजीकरण प्रमाण पत्र उपलब्ध होने की दशा में मंडी शुल्क में छूट का प्रावधान है।
-बीज उत्पादन, गोदाम निर्माण की योजना अंतर्गत एफपीओ को 60 लाख रुपये तक का अनुदान मिलता है।
– इसमें समूह से जुड़े किसानों को न सिर्फ अपनी उपज का बाजार मिलेगा बल्कि खाद, बीज, दवाइयां और कृषि उपकरण खरीदना और भी आसान रहेगा।
– किसानों को बेहतर सौदेबाजी की शक्ति मिलेगी।
आज पूरे देश में 10 हजार से ज्यादा किसान उत्पादक संघ- एफपीओ बनाने का अभियान चल रहा है, उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है। कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी आवश्यकता है गांव के पास ही भंडारण, कोल्ड स्टोरेज की आधुनिक सुविधा कम कीमत पर देश के किसानों को उपलब्ध हो। इसे भी प्राथमिकता दी जा रही है। नए कृषि कानून किसानों के हक में है और किसानों को दशकों से चली आ रही शोषक व्यवस्था से मुक्ति मिलने वाली है। लगभग सभी कृषि विशेषज्ञों की यही राय है। यहां तक की बड़ी संख्या में किसान संगठनों ने इन नए कानूनों को लेकर सरकार को धन्यवाद ज्ञापन भी दिए ही है। किसानों को आतंकवादी या टुकड़े-टुकड़े गैंग कहना किसी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकता, लेकिन देश विरोधी ताकतों ने 26 जनवरी लाल किला घटना के कारण किसानों के मंच को बदनाम कर दिया है, किसान और किसान संगठनों को सुचेत रहने की जरूरत है। किसानों की नजरों में गिर चुके राजनीतिक दल और उनके नुमाइंदें किसानों को गुमराह करने के लिए किसी भी स्तर तक जा रहे हैं। चाहे वो राहुल गांधी एक दिन के फोटो सेशन की अपनी सक्रियता से किसानों के मसीहा बनने का ढोंग हो या वामपंथी द्वारा चलाए ट्वीटर कैम्पेन के दौरान टूल किट से असली चेहरा जनता के सामने आने की बात हो। ये वामपंथी किसानों के कितने हितैषी रहे हैं और आज कितने हैं पूरा देश जानता है।
चाहे हम किसानों के संगठन का नेतृत्व कर रहे हों या जनप्रतिनिधि हों, विद्यार्थी नेता हो, पर याद रहे कि प्रधानमंत्री संवैधानिक पद है, उनके बारे में नए कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर अपमानजनक और आपत्तिजनक शब्द कहना क्या जायज ठहराया जा सकता है? इस तरह के लोग न किसान हैं, न किसान हितैषी। ये राष्ट्र विरोधी ताकते हैं जो भारतीय लोकतंत्र में मिले स्वतंत्रता के अधिकार का घोर दुरूपयोग कर रहे हैं। किसानों की आशंकाओं का निवारण करना सरकार का धर्म है और सरकार अपना धर्म पूरी ईमानदारी से निभाने की कोशिश कर रही हैं। किसानो को समझना चाहिए कि संवाद दुनिया की हर समस्या का श्रेष्ठ समाधान है। समाज का गठन ही संवाद से होता है। भारतीय चिंतन परंपरा में संवाद का व्यापक महत्व रहा है। संवाद भारतीय दर्शन का अत्यंत सहिष्णु पक्ष रहा है जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाया। इतिहास साक्षी है विश्व में जितने भी युद्ध हुए हैं, चाहे पहला विश्व युद्ध हो या दूसरा विश्व युद्ध, दो देशों या दो समुदायों के बीच विवाद या युद्ध, समाधान टेबल पर संवाद से ही निकला है। युद्ध और विवाद स्वयं में समाधान नहीं है। 26 जनवरी के ट्रैक्टर रैली के नाम पर हिंसक विरोध-प्रदर्शन से समस्या का संकट गहरा हो गया है। हमारे यहां किसानी और खेती संस्कृति से जुड़े हुए हैं। हमारी परंपरा और त्यौहार भी किसानी से जुड़े हैं। विपरीत परिस्थितियों में भी किसानों ने रिकॉर्ड उत्पादन किया। पुरानी सोच और पुराने मापदंड कृषि का भला नहीं कर सकते हैं। इसलिए दिल्ली में बैठे किसान संगठनों के नेताओं से निवेदन है कि संवाद के जरिए रास्ता निकालें और कृषि को आत्मनिर्भर कृषि की ओर बढ़ाने मेे पहला कदम बने। एफपीओ के माध्यम से भी कृषि की एक स्थायी उद्यम में कायापलट भी होगी। किसान खेती के साथ आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अपना व्यवसाय प्रारंभ कर सकते है। केंद्र सरकार द्वारा देश में गठित किए जा रहे किसान उत्पादक संगठन भी इसका अहम माध्यम बनने जा रहे है।
(सौरभ कपूर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संभाग संगठन मंत्री व पूर्व प्रदेश मंत्री पंजाब हैं)
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