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क्या किसान अंदोलन की वजह से अवरुद्घ हो रहा है पंजाब का विकास?

July 11, 2021 By Guest Author

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अजय भारद्धाज

किसान आंदोलन को चलते लगभग सात माह होने जा रहे हैं। समाज के काफी वर्गों के लिए यह एक बहुत भावुक मुद्दा बन गया है, जिसके चलते किसान आंदोलन के दुष्प्रभावों की चर्चा पंजाब में बिल्कुल नहीं हो रही है।

हाल ही में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह को एक ज्ञापन  देकर इस बात पर गंभीर चर्चा की कि  किस तरह से किसानों ने पंजाब में कार्पोरेट आफिस व आउटलेट्स को  बंधक बना रखा है। जिस वजह से कोई गतिविधि नहीं हो रही और लाखों का नुकसान हो रहा है।

आज पंजाब के समक्ष उद्योगों के पलायन और बेरोजगारी की बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है। विभिन्न व्यवसायों के संचालन के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज को अपने परिसर किराए पर देने वाले बिल्डिंग मालिकों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अवगत कराया है कि किसान आंदोलन के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने के साथ युवाओं के समक्ष रोजगार का संकट खड़ा हो रहा है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्टोरों को फिर से खोलना सुनिश्चित किया जाए ताकि उनके द्वारा रिलायंस को दिए गए परिसरों का किराया वापस मिले और उनकी आर्थिक स्थिति बहाल हो सके। उन्होंने सीएम से बताया कि किसानों द्वारा विरोध किए जाने के कारण रिलायंस को किराए पर दिए गए कंपनी के सभी स्टोर पिछले कई महीनों से बंद पड़े हैं। इसके कारण बिल्डिंग मालिकों को घोर आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा भी जो व्यवसायिक एवं सामाजिक गतिविधियां इस आंदोलन के कारण प्रभावित हो रही हैं, उनके बारे में अंदरखाने चर्चा तो जरूर हो रही है  लेकिन कोई इसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं कर पा रहा है। बिल्डिंग मालिकों व पंजाब के स्थानीय नागरिकों ने मुख्यमंत्री को उस गहरे वित्तीय संकट से अवगत कराया, जिसके कारण वे दिवालिएपन की ओर   जा रहे हैं क्योंकि उन्हें पिछले 7-8 महीनों से कोई किराये की आय नहीं मिल रही है। रिलायंस के सभी रिटेल आउटलेट्स विरोध कर रहे किसानों ने जबरन बंद कर दिया।

यह केवल रिलायंस के बारे में नहीं है। यह पूरे कॉर्पोरेट क्षेत्र के बारे में है जो राज्य की खुदरा अर्थव्यवस्था का आधार रहा है और मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को रोजगार प्रदान करता है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, एक अनुमान के अनुसार, विभिन्न उपभोक्ता गतिविधियों में लगे कॉर्पोरेट क्षेत्र, राज्य में लगभग पांच लाख युवाओं को रोजगार प्रदान करते हैं। यदि यही स्थिति बनी रही है तो उनमें से एक बड़े हिस्से को नियत समय में नौकरियों से निकाल दिए जाने की संभावना है।

जानकारी रहे कि रिलायंस के पंजाब में करीब 275 स्टोर हैं और ये सभी बंद हैं। यही हाल अन्य कॉर्पोरेट घरानों का भी है। इसका मतलब यह नहीं है कि किसानों को अपना विरोध बंद करना चाहिए और अपने अधिकारों से पीछे हट जाना चाहिए बल्कि उन्हें यह करते रहते हुए यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि उनके विरोध और आंदोलन के कारण पंजाब की सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था प्रभावित ना हो क्योंकि उन्हीं किसानों के लड़के भी इस दशा में बेरोजगारी के शिकार होंगे। हम मानते हैं कि किसानों को उन सभी का हर तरह से विरोध करना चाहिए जो उनके हित में ना हो, उन्हें विरोध करने का अधिकार प्रदत्त है।

लेकिन यह बात अवश्य सोचनी चाहिए कि उनके किस तरह के विरोध का असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, खासकर उन युवाओं पर जो कॉर्पोरेट क्षेत्रों में रोजगार के नए रास्ते तलाश रहे हैं? “हम करोड़ों का नुकसान उठा रहे हैं क्योंकि इमारतें बैंकों से ऋण पर हैं और हमें भारी ईएमआई, नगरपालिका कर, बिजली और पानी के शुल्क आदि का बोझ उठाना पड़ता है। इसके अलावा, लाखों श्रमिकों, कर्मचारियों और उनके परिवारों की आजीविका पर संकट है। ”पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन प्रस्तुत करने के बाद एक बिल्डिंग मालिक ने कहा कि “किसान नेताओं ने हमें स्टोर खोलने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। हमने जिला पुलिस और अन्य स्थानीय अधिकारियों से भी संपर्क किया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हम संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेताओं और ‘किसान जत्थेबंदियों’ से भी दो बार मिल चुके हैं और अपनी चिंताओं को उठाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

कंपनी के साथ हुए समझौते के अनुसार, बिलिंग न होने या आंदोलन के कारण स्टोर बंद होने की स्थिति में मालिकों को कोई किराये का भुगतान नहीं किया जा सकता है।

ज्ञापन में कहा गया है, “हम सभी पंजाबी हैं और किसानों का पूरा समर्थन करते हैं, लेकिन दुकानों को जबरन बंद करने से पंजाब को ही नुकसान हो रहा है।” कोई भी कार्पोरेट राज्य में निवेश करने में दिलचस्पी नहीं लेगा यदि उन्हें शांतिपूर्वक काम करने की अनुमति नहीं दी जाती है। जालंधर के स्टोर मालिकों में से एक, निर्मल सिंह ने कहा, “हमने कर्ज लिया है और अपनी सारी मेहनत की कमाई को संपत्तियों में निवेश किया है, लेकिन इस तरह जबरन बंद करना हमें बर्बाद कर रहा है।” उन्होंने कहा कि अन्य सभी राज्यों में स्टोर खुले हैं। पंजाब में, किसान उन दुकानों को भी खोलने की अनुमति नहीं दे रहे हैं जो आवश्यक सेवाओं के तहत हैं, इसलिए हम यहां सीएम से मदद का अनुरोध कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, “हम किसान संघों से भी अपील करते हैं कि वे सरकार के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखें, लेकिन दुकानों को हमेशा की तरह चलने दें।”

तरनतारन के मानव संधू ने कहा, “रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने पहले ही एक नियामक फाइलिंग में कहा है कि उसकी अनुबंध या कॉर्पोरेट खेती में प्रवेश करने की कोई योजना नहीं है, और उसने अनुबंध खेती के उद्देश्य से भारत में कोई कृषि भूमि नहीं खरीदी है। संयोग से, प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा लक्षित कॉरपोरेट घरानों का कृषि बिलों से कोई लेना-देना नहीं है। राज्य में उनके सभी बुनियादी ढांचे विधेयकों के पारित होने से बहुत पहले आ गए थे। और उस बुनियादी ढांचे ने राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास में इजाफा किया, जिसे किसान अब पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात थी जब प्रदर्शनकारियों ने राज्य में चारों ओर मोबाइल टावरों को यह मानकर नष्ट कर दिया कि वे एक विशेष कॉर्पोरेट घराने द्वारा किए गए थे। वर्तमान संदर्भ में जब मोबाइल टावर देश के भीतर ही नहीं बल्कि हमारे मित्र देशों और संबंधियों के साथ संचार का एकमात्र साधन हैं, टावरों का विनाश एक ऐसा प्रतिगामी कदम एक ऐसे राज्य में आ रहा था जिसने हरित क्रांति की शुरुआत की थी और उसे प्राप्त कर लिया था।

यह भी जान लेना जरूरी है कि सड़कों और रेल यातायात को अवरुद्ध करने से पंजाब में कृषि क्षेत्र में निवेश की तलाश कर रहे निवेशकों को भी प्रतिकूल संकेत मिले हैं। खून से लथपथ उग्रवाद के दिनों की पृष्ठभूमि में, इस तरह के विघटनकारी विरोध केवल निवेशकों को दूर रखने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि पंजाब इन्वेस्टर्स समिट के दौरान निवेशक जो भी वादे करते हैं, निवेश के मामले में राज्य में कुछ भी वापस नहीं आता है। इस तरह के सभी घटनाक्रम पंजाब के युवाओं को चौराहे पर छोड़ देते हैं। क्या प्रदर्शनकारी किसान अपने आंदोलन के इस पक्ष को देखेंगे? इस पर चिंतन मंथन करना वर्तमान समय की मांग है।


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