बच्चों में बढ़ा खतरा: राष्ट्रीय दर से भी कम
22 अप्रैल, 2025 – चंडीगढ़-पंजाब : टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया का खतरा कम हो जाता है। गंभीर हालात में इसके अलावा भी बच्चों का टीकाकरण किया जा सकता है। समय पर इलाज न होने के कारण संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने से दूसरे बच्चों में भी संक्रमण फैल सकता है।
वर्ष 2024-25 में 14 फीसदी बच्चों को पहली व 23.7 फीसदी बच्चों को फाइनल बूस्टर डोज नहीं लगी है। टीकाकरण राष्ट्रीय दर से भी कम है। इस कारण बच्चों में इस बीमारी का खतरा और बढ़ गया है। फिरोजपुर में पिछले साल अक्तूबर में तीन साल की बच्ची को इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी थी। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
टीकाकरण की दर कम
वर्ष 2023-24 के मुकाबले भी सूबे में टीकाकरण की दर कम हो गई है। डिप्थीरिया बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है। इससे बच्चों में गले में दर्द और तेज बुखार होता है। गले में सूजन से सांस नली दब जाती है। दिल पर भी असर होता है। सही समय पर इलाज नहीं मिलने से बच्चे-किशोर की मौत भी हो सकती है।
पंजाब में वर्ष 2024-25 में छह सप्ताह के बच्चों में टीकाकरण की दर 91.2% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में 86% है, जबकि वर्ष 2023-24 के दौरान सूबे में यह दर इससे अधिक 91.2% थी। इस तरह टीकाकरण की दर में पहले से गिरावट आ रही है। वहीं 10 सप्ताह के बच्चों में टीकाकरण की राष्ट्रीय दर 87.3% की तुलना में सिर्फ 83.2% है। इसी तरह 14 सप्ताह के बच्चों में भी 82.8% और 16-24 माह के बच्चों में यह दर सिर्फ 86.9% है।
अगर 5-6 साल के बच्चों में टीकाकरण की बात की जाए तो वर्ष 2024-25 में सिर्फ 76.3% बच्चों को ही टीकाकरण हो पाया है, जिसने सरकार की भी चिंता बढ़ा दी है।
टीकाकरण से बच्चों को बचा सकते
इस बीमारी से सिर्फ टीकाकरण से ही बच्चों को बचाया जा सकता है। नियमित रूप से टीकाकरण बहुत जरूरी है। बच्चे को छठवें, 10वें और 14वें सप्ताह में पेंटावेलेंट्स के टीके लगाए जाते हैं, जबकि 16 से 24 माह पर डीपीटी का पहला बूस्टर और 5 से 6 साल के बच्चों में दूसरा बूस्टर लगाया जाता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया का खतरा कम हो जाता है। गंभीर हालात में इसके अलावा भी बच्चों का टीकाकरण किया जा सकता है। समय पर इलाज न होने के कारण संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने से दूसरे बच्चों में भी संक्रमण फैल सकता है।
डिप्थीरिया के लक्षण
-इस बीमारी के होने पर गला सूखने लगता है।
-गले में झिल्ली पड़ने के बाद सांस फूलना और सांस लेने में दिक्कत होती है।
-गले में दर्द या निगलने में परेशानी होती है।
-खांसी होना, नाक बहना व मांसपेशियों में कमजोरी व सूजन होती है।
-इसके जहरीले पदार्थ किडनी, लिवर और नर्वस सिस्टम को डैमेज कर सकते हैं।
डिप्थीरिया की बीमारी जिन बच्चों में होती है, उनमें मृत्यु का खतरा अधिक रहता है। समय पर टीकाकरण से ही बच्चों को इस बीमारी से बचाया जा सकता है। टीकाकरण अभियान को प्रभारी रूप से लागू करने की जरूरत है। साथ ही माता-पिता को भी इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए कि समय पर अपने बच्चों का टीकाकरण करवाएं। – डॉ. विवनीत सिंह, बाल रोग विशेषज्ञ
सौजन्य : अमर उजाला
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