सौरभ कपूर
पिछले कई महीनों से पंजाब में किसान आंदोलन के माध्यम से किसानो के रूप में छिपे राजनैतिक गुंडों ने पंजाब में अलग अलग घटनाओं के माध्यम से पंजाब में लोकतंत्र को सवालों के घेरों में खड़ा कर दिया है। यह तथाकथित किसान अब बहुत ज्यादा अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं, चाहे वह अबोहर में जनप्रतिनिधि अरुण नारंग को निर्वस्त्र करने की घटना हो, चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालयों पर हमले की बात हो और चाहे धनौला में किसानो द्वारा ही फसलों को उखाड़ने की बात हो और चाहे कल राजपुरा में बीजेपी पदाधिकारियो पर मारपीट की बात हो।
इन सब घटनाओं से पंजाब भी अब बंगाल की राह पर चलता दिखाई दे रहा है। क्या पंजाब में सच में अब लोकतंत्र खत्म हो गया है, जो किसानों के रूप में ऐसी घटनाएं गुंडों द्वारा बार बार हो रही है। जिला पटियाला के राजपुरा में पिछले कल दिन में शहीद परिवार के सुपुत्र भूपेश अग्रवाल, नगर निगम के चुने प्रतिनिधि शांति सपरा, विकास शर्मा के साथ मीटिंग के दौरान तथाकथित किसानो द्वारा हुई मारपीट और रात 4 बजे तक 14 लोगो को एक साथ एक घर में नजरबंद कर घर की बिजली काटने की घटना, रात को फिर मारपीट की घटना कड़ी निंदा योग्य है। रात को हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी नजरबंद लोगो को घर से निकलते वक्त बुरी तरह से पत्थरबाजी की गई।
अब सिर्फ राजनीतिक पार्टीयो के दलाल सड़कों पर बैठे हैं और जनता को परेशान कर रहे हैं। असली किसान तो खेत में काम कर रहे हैं। किसान आंदोलन अभी डर और दहशत के दम पर ही चल रहा है। धरने में बंगाल की बेटी के साथ रेप घटनाओं ने भी किसान आंदोलन को नुकसान पहुंचाया है। राजपुरा में भी इस तरह जानलेवा हमला करने वाले यह लोग भी किसान नहीं हो सकते, यह तो पंजाब सरकार के गुंडे है।
BJP delegation meeting CM Punjab
पर यहां सवाल ये भी पैदा होता है की
– तथाकथित किसानो का गुंडागर्दी के रूप में ये कैसा विरोध?
– क्या किसान भी कभी दूसरे किसान द्वारा लगाई गई फसल को नष्ट कर सकता है? (जैसा कि पीछे घटना धनौला में हुई)
– क्यों कल राजपुरा में पुलिस मूकदर्शक बनी रही?
– एसएसपी संदीप गर्ग और डीएसपी टिवाना को मीटिंग की जानकारी होने के बाद भी सुरक्षा नही मिल पाना कुछ और मंशा के बारे में बताता है।
– ये न्याय मांगने का तरीका नही है, पंजाब सरकार मौन क्यों है?
प्रशासनिक जिम्मेवारी एवं कानून व्यवस्था अच्छी देना सरकार का काम, कानून व्यवस्था दुरुस्त करना सरकार की पहली प्राथमिकता होती है। पर पंजाब में अब लगता है कैप्टन सरकार तथाकथित किसानों की गलत नीतियों का भी वोट के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर नाम की कोई चीज नही है। यह बहुत ही दुखद घटना है। पंजाब सरकार इस तरह लोकतंत्र का गला नही घोट सकती। प्रदेश में जब कांग्रेस सरकार नहीं थी तो क्या कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को इसी तरह दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जाता था और पुलिस कार्रवाई नहीं करती थी। मुख्यमंत्री पंजाब कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने दायित्वों को निभाना चाहिए नहीं तो यह उनके लिए बहुत शर्म की बात होगी।
बंगाल में चुनावों दौरान हुआ, यह भी पंजाब विधानसभा चुनावों (2022) के कारण ही हो रहा है। पंजाब को जनता को डर है कि कही बंगाल जैसा माहौल यहां भी ना बन जाए। पंजाब में कांग्रेस के राज में यह लोकतंत्र को हत्या है। किसानी आड़ के दौरान दिन प्रतिदिन गुंडागर्दी बढ़ती ही जा रही है। जिस के लिए सीधे तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब पुलिस जिम्मेवार है। कैप्टन राज के सिर्फ 4 महीने ही बचे है, अगर उनसे लोकतंत्र को नही बचाया जा रहा तो वो अभी तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। इन गुंडों के साथ सख्ती से निपटना चाहिए। देश के ग्रह मंत्रालय और पंजाब के गवर्नर को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए और 307 का मुकदमा दर्ज करना चाहिए। राजपुरा की यह घटना अब गुंडागर्दी की हद है। रात को इस तरह घर में नजरबंद करना और उस घर की बिजली काट देना , पंजाब को इमरजेंसी के काले दिनो की याद दिलाता है।
पंजाब में विरोधी ताकतों को पलने नही देना है। पंजाब की जनता सिर्फ पंजाब का पंजाबियत का ध्यान रखने वालों का भला चाहती है। पंजाब के लोगों को पंजाब का माहौल ठीक रखने के लिए एकजुट होना ही पड़ेगा। ये हमला बुरा तो जरूर है, लेकिन विश्वास डगमगा नहींं सकते। सहनशीलता को कमजोरी समझने वाले भ्रम में जी रहे हैं।
पर समय बलवान है, राजपुरा की यह घटना भी कैप्टन सरकार के ताबूत में आख़री कील साबित होगी। ये गुंडागर्दी भी पंजाब सरकार के कफन की कील साबित होगी।
“देखना खामोशी नहीं, अब तूफान आएगा।
कल फिर हवाओं का रुख कुछ बदला-बदला सा नजर आएगा।”।
(लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) विद्यार्थी संगठन के संभाग संगठन मंत्री हैं)
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